सूरज और किशोर बचपन से ही एक साथ ही खेलकूद कर बड़े हुए।
दोनों के ही परिवार शुरू से ही एक दूसरे के सुख दुख में साथ रहते हुए, एक अच्छे पड़ोसी होने का धर्म निभाते रहे ।
सूरज और किशोर की उम्र बराबर होने के कारण ,दोनों दिनभर एक साथ खेलते रहते ।
सूरज के पिता गांव में खेती करते और किशोर के पिता विद्यालय में अध्यापक रहे।
विद्यालय में पढ़ते हुए दोनों अच्छे नंबरों से पास होते ।
अच्छे मित्र की तरह अपने मन की बात आपस में दोनों छुपा कर ना रखते सूरज और किशोर ।
गांव का स्कूल दसवीं कक्षा तक ही था, दोनों ने दसवीं कक्षा तक अच्छे नंबरों से परीक्षाएं पास की। दसवीं कक्षा के बाद सूरज अपने पिता के साथ सुबह के समय खेती के कामों में उनकी सहायता करता और प्राइवेट पढ़ाई करने लगा ,बस उसको परीक्षा देने के लिए ही शहर के स्कूल में जाना होता था।
पर किशोर के पिता ने उसका एडमिशन शहर के बड़े स्कूल में करवा दिया ।
धीरे-धीरे दोनों के बीच दूरियां बढ़ने लगी ,किशोर को अब सूरज गांव का गंवार नजर आता।
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किशोर सूरज से कहता ,तुम तो गांव के गंवार ही रह गये।
जब भी किशोर घर आता तो सूरज की मजाक उड़ाता ।
कभी उसके बात चीत करने के तरीके पर कमी निकालता ,कभी उसके कपड़ों की मजाक उड़ाता। किशोर की मां किशोर को जब ऐसा करते देखती ,तो उसे कहती कभी किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए ,पता नहीं आज जिस का मजाक उड़ा रहे हैं कल उससे ही सहायता लेनी पड़ जाए ।
सूरज हमेशा कहता ,किशोर तो मेरा बचपन का दोस्त है तो दोस्त की बात का क्या बुरा मानना और जब भी किशोर गांव आता तो उससे मिलने जरूर जाता।
किशोर अपने पिता की इकलौती संतान था, तो पिताजी भी उसकी सारी इच्छाएं पूरी करते ।
कभी उसे रुपए पैसे की कमी ना होने देते ।
किशोर अपने दोस्तों पर अपना रौब जमाने के लिए उन पर खूब पैसे खर्च करता ।जब किशोर बड़ा होने लगा तो दोस्तों को महंगे महंगे गिफ्ट देता हर मौके पर पार्टी देता और किशोर के दोस्त भी उसके आगे पीछे घूमते रहते। गांव में किशोर जब भी आता ,तो उसके आने की खबर पाकर सूरज भी मिलने अाता ,तो किशोर कहता लो आ गया मेरा गवार दोस्त और अपने सभी दोस्तों के बारे में बताया करता कि मैं तो अपने दोस्तों को अपने प्रभाव में रखता हूं ,
उन्हें महंगे महंगे तोहफे देता हूं, उनके खाने-पीने के शौक पूरा करता हूं ,मेरे आगे पीछे घूमते रहते हैं मेरे दोस्त ।
हां सुन सूरज मेरे यह कुछ कपड़े आज के फैशन के नहीं रह गए ,तो तुम्हारे लिए ले आया पहनोगे तो तुमको भी पता चलेगा कि फैशन क्या चीज होती है।
सूरज भी किशोर के कपड़ों को मित्र के द्वारा किए गए तोहफे के रुप में ले लेता ।
सूरज के पिता जब भी खेत में फसल कटती तो गांव के मंदिर में छोटा सा भंडारा करते और कुछ गरीबों को कपड़े भी देते और प्रभु से अपने परिवार में सुख शांति रहे यही आशीर्वाद मांगते ।
यह संस्कार सूरज में भी आ गए ,वहअपने जन्मदिन पर दोस्तों के साथ पार्टी करने की जगह , गरीबों को खाना खिलाने के लिए घर से खाना बनवा कर ले जाता और गरीबों में बांट देता ।
सूरज के इस तरह जन्मदिन मनाने को देखकर उसका बचपन का दोस्त मजाक उड़ाता और कहता ,
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अरे सूरज कुछ दोस्तों पर भी खर्चा किया करो ,बिना दोस्तों के जिंदगी बोरियत से भरी होती है। सूरज हमेशा ही कहता मेरा एक दोस्त ही काफी है ,मैं तो तुझे ही अपना दोस्त मानता हूं ,अब मैं तेरे जैसा नहीं हूं पर हूं तो तेरे बचपन का दोस्त ।
किशोर हमेशा सूरज का मजाक उड़ाया करता पर सूरज कभी बुरा नहीं मानता ।
सूरज के पिता ने सूरज को बचपन से ही कहानियों के द्वारा समझाया था कि अगर तुम्हारे पास अधिक पैसा है तो जरूरतमंद पर खर्चा करोे ,दुआएं कमाओ, जब खजाना खाली हो जाता है तो दुआएं ही सबसे बड़ी सहायक बनती हैं।
यही बात सूरज ने मन में बैठा ली।
सूरज की इस बात का भी किशोर बहुत मजाक उड़ाता , और कहता
देखूंगा जब जरूरत पड़ेगी तो तेरी कौन सी दुआ सामने आकर कहेगी ,क्या हुकुम है मेरे स्वामी। देखो मेरी दोस्ती बड़े घरों के बच्चों से है ,मैंने उनको महंगे महंगे गिफ्ट से खुश रखा हुआ है, जब कभी जरूरत पड़ेगी तो सभी रुपए पैसों के साथ हाजिर हो जाएंगे ।
धीरे-धीरे समय के साथ सूरज और किशोर भी बड़े हो गए ,उन पर भी अपने-अपने परिवारों की जिम्मेदारियां आ गई ।
सूरज की पत्नी भी सूरज की तरह संतोषी स्वभाव वाली थी ।
सूरज की मेहनत की कमाई से घर में कोई कमी ना थी ,बच्चे भी पढ़ाई लिखाई में होशियार थे। सूरज की पत्नी का चेहरा सबकी आवभगत करके प्रसन्नता से चमका रहता।
सूरज की जब अपने गांव के डाकघर में नौकरी लगी ,तो उसने गांव के दो बच्चों की पढ़ाई का खर्चा स्वयं पर ले लिया ,उसको यह करके बहुत आत्म संतुष्टि लगी ।
इधर किशोर ने शहर में बिजनेस शुरू कर दिया ।
उसकी पत्नी आधुनिक रहन-सहन वाली रही ,किशोर के बच्चे भी शहर के महंगे और बढ़िया स्कूल में पढ़ने लगे।
धीरे-धीरे समय आगे बढ़ता जा रहा था, किशोर अब गांव कम ही आता पर जब आता तो सूरज को अपने पैसों की चमक जरूर दिखाता ,पर सूरज किशोर की बातें केवल सुना ही करता।
एक दिन अचानक किशोर को व्यापार में बहुत बड़ा नुकसान हो गया, घर के खर्चे के लिए भी मुश्किलें आनी शुरू हो गईं। किशोर जैसे तैसे बच्चों के स्कूल की फीस देता ,पर हार कर अगले क्लास की पढ़ाई के लिए किशोर ने बच्चों का एडमिशन सरकारी स्कूल में करवा दिया ।आधुनिक रहन-सहन वाली पत्नी भी गरीबी में रहकर खुश ना रही ,अपनी जरूरतें पूरी ना होने पर अक्सर किशोर से झगड़ा करने लगी ।
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किशोर को बड़ी उम्मीदें थी कि जिन दोस्तों को मैंने अपने रुपए पैसे से खुश किया ,वह तो उसका साथ देंगे ,पर सभी ने अपनी-अपनी परेशानियां बताकर सहायता करने से मना कर दिया ।आज किशोर को दिखावे भरी जिंदगी बदरंग सी लगने लगी थी।
किशोर को अपने बचपन वाले दोस्त सूरज की बातें अब बहुत याद आ रही थी ,और अपने द्वारा किए गए सूरज के प्रति व्यवहार पर शर्म भी आ रही थी ।सूरज का मित्र किशोर व्यापार में आए घाटे के कारण मानसिक परेशानियों में जकड़ कर बीमार सा रहने लगा।
अब किशोर को अपने मित्र की बहुत याद आ रही थी मन की शांति के लिए उसने शीघ्र ही अपने मित्र सूरज के पास जाने का मन बना लिया ।
सूरज की संपत्ति तो लोगों से मिली दुआएं ही थी।
सूरज के बच्चे पढ़ने में बहुत होशियार थे,लोगों के आशीर्वाद से सूरज के घर में सुख शांति थी। अपने मन को शांति देने के लिए वह सूरज के पास उसके घर गया सूरज अपने मित्र को परेशान देखकर परेशान हो गया उसकी परेशानी सुनकर , सूरज ने कहा मित्र मैं तुम्हारी पैसों से तो सहायता नहीं कर सकता पर मेरी कुछ दुआएं हैं उनकी सहायता से मैं तुम्हारी कुछ सहायता अवश्य ही करूंगा ।
सूरज ने जिन बच्चों को पढ़ाया था वह आज अच्छे पदों पर पहुंच गए थे और सूरज को एक आदर्श पिता की तरह
बहुत सम्मान देते थे ,उनकी सहायता से किशोर ने अपना काम फिर से शुरू किया और सूरज के खजाने में संचित दुआओं से किशोर भी धीरे-धीरेउन्नति के रास्ते पर चलने लगा था ।आज किशोर ने भी संपत्ति से ज्यादा दुआओं की शक्ति को पहचानना शुरू कर दिया था, अब वह दिखावे से ज्यादा जरूरतमंद की सहायता करने पर विश्वास करने लगा ,अब उसको भी जीवन में किसी की सहायता करके ही सुख प्राप्त होता है यह जीवन का मूल मंत्र समझ में आने लगा था।
जया शर्मा प्रियंवदा