दिखावा – अमिता कुचया : Moral Stories in Hindi

जैन साहब की गाड़ी भीड़ के जाम में फंसी हुई थी ,वो जाम खत्म होने का इंतजार कर रहे थे। तभी नेहा डिपार्टमेंट स्टोर से बाहर निकलती है, तो उनके हाथ में चार कैरी बैग के साथ हैंड बैग भी रहता है। उन्हें देखकर जैन साहब नमस्ते नेहा जी…कहते है तभी उनकी आवाज सुनकर उनकी गाड़ी की ओर नेहा की नजर पड़ती है तो वह भी नमस्ते करते हुए आगे बढ़ती है। 

तो उन्हें सामान के साथ देखते हुए वो कहते हैं आइए नेहा जी आपको हम छोड़ देते हैं। 

वह जवाब देती है, जैन साहब मैं चली जाऊंगी। अरे नेहा जी इतने सामान के साथ क्यों परेशान हो रही हो ?मैं छोड़ दे रहा हूं, फिर वो मना नहीं कर पाती और गाड़ी में बैठ जाती है। 

तब जैन साहब कहते हैं अरे नेहा जी आप और इतने सामान के साथ!! चलिए ना… 

तब वह कहती है जैन साहब ये तो मेरा रोज‌ का काम है, मेरे लिए ये कोई बड़ी बात नहीं है। मैं केटरिंग और टिफिन का काम करती हूं। तो मुझे रहे ही आना पड़ता है। 

जैन साहब कहते आज तो बैठ जाइए रोज थोडे़ ही छोड़ूंगा। 

तब वह कहती – अच्छा आप इतना कह रहे है तो बैठ जाती हूं। और वह

जैन साहब की गाड़ी में बैठ जाती है।जैन साहब उसके बेटे के दोस्त के पिता है जो पैरेंट्स मीटिंग पर मिले थे। तब नेहा और जैन साहब ने औपचारिक बातें ही की थी। गाड़ी में और बातें करते हैं जैसे घर में कौन -कौन है, ऐसे ही बातों में बातों में जैन साहब को थैंक्स कहने के लिए कहती है, कि किसी आप लोग हमारे घर आइए ना…. 

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जैन साहब वैसे ही नेहा जी की फैमिली से प्रभावित थे, वो स्वयं चाहते थे कि उनकी फैमिली से मिले। तो उन्होंने बिना देर लगाए एक बार में ही हां कर दिया। और जैन साहब कहते – ठीक है हम लोग आपके यहाँ सैटरडे को डिनर पर आ रहे हैं। वह सोच में पड़ जाती है। जैन साहब इतनी जल्दी कैसे हमारे घर आने के लिए मान गए हैं। वह मन ही मन विचार करती है,,बाप रे बाप इतने बड़े बिजनेस मैन मैं क्षकैसे मैनेज करुंगी, खैर..अब घर जाकर बताती हूं। 

अब घर जैसे ही पहुंचती है तो सासु मां कमला जी को बताती मां अपने यहाँ जैन साहब आ रहे हैं। तब उसकी सासु मां कहती -कौन है जैन साहब…!! 

तब वो बताते हुयी कहती- रोहन के फ्रेंड के पापा है। 

वो बहुत बड़े बिजनेस मैन है। हाई फाई परिवार है, तब उसकी सास कहती -तूने क्यों नहीं कोई बहाना बना दिया।वह कहती मैनें ही ऐसे ही थैंक्स कहने के लिए कह दिया पता नहीं वो कैसे एक बार में ही मान गए। 

मां अब कह दिया है तो वो आएंगे ही ना….अपने यहां मंहगा सोफा भी नहीं है। 

ये सुनकर मां कहती- अपने को दिखावा क्यों करना जो है ,सो है।

तब नेहा कहती- कम से कम मां परदे बदल ले और कारपेट भी निकाल कर बिछा ले। 

तब मां कहती- देख नेहा दिखावा करने की क्या जरूरत है?? 

तब वो कहती- मां जी आजकल दिखावे की दुनिया है। मुझे तो घर का मेक ओवर करना ही पड़ेगा। 

दो घंटे तक सब सामान एक सा व्यवस्थित करती है। 

परदे कुशनकवर, सोफाकवर बदलतीं है कारपेट भी नया बिछाती है। और तो और परदे भी बदल देती है। इससे घर का लुक बदल जाता है। 

सब कुछ चेंज होने से उसे थोड़ा सुकून मिलता है। उसके बेटे रोहन को जब पता चलता है। शुभ की फैमिली आ रही आ रही है वो शाक्ड होता है। वो कहता मम्मी उन्हें मत आने दो। वो अलग ही स्वभाव का है, वो पैसा का दिखावा बहुत करता हैं।शुभ तो बहुत अकड़ू है, सीधे मुंह बात भी नहीं करता है तो उन्हें क्यों बुलाना….!! 

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तब वो कहती रोहन बेटा तेरा शुभ को दिखाना भी है कि तू भी कम न है। तेरी इमेज भी तो बदलेगी। 

इतना सुनकर कहता ठीक है मम्मी अब वो आ रहा है तो ठीक है…. 

अब नेहा उन्हें बुलाने के चक्कर बहुत खर्च भी करती है नमकीन, मीठा ,कोल्ड ड्रिंक, बुके मंगाना, अच्छा स्नैक्स के साथ सलाद फ्रूट पर खर्च कर रही थी। तभी

कमला जी टोंकते हुए बोली -अरे नेहा बहू वैसे तो घर में कितने खर्च लगे रहते हैं, फिर इतना दिखावा करने की जरूरत क्या है, हम जैसे है, वैसे ही रहे ना… 

तब नेहा कहती -मां आप नहीं समझोगी , रोहन के दोस्त शुभ को भी पता चलना चाहिए हम किसी से कम नहीं है, जैन साहब को भी लगे हम भी कितने अच्छे से रहते हैं, हम भी उनसे कम नहीं है। रोहन के पापा नहीं है, फिर भी परिवार को संभाल रही हूं। 

तब कमला जी कहती- देख नेहा तू केवल केटरिंग करती है, अभी कुछ समय पहले ही तेरा काम जमा है, तो भी इतना खर्च क्यों…! 

इतना सुनकर नेहा कहती-देखो मां जी अगर जैन साहब खाने से प्रभावित हो गये तो हमें और कैटरिंग का काम मिलेगा। वो बिजनेस मैन है, उन्हें बताऊंगी। कि कैटरिंग करके अपना बिजनेस बढ़ाना चाहती हूं तो उनके द्वारा कितना काम मिलेगा। ये भी सोचों ना आप.. 

तब सास कमला जी कहती है वो खाने के स्वाद से इंप्रेस होंगे। ना कि फालतू के खर्च से…. 

हाँ मां आप सही कह रही हो, अब जो खर्च हो गया है तो हो गया। अब और खर्च नहीं करुंगी। 

इस तरह शाम को जैन साहब अपनी फैमिली के साथ आते हैं। खाना और आवभगत देखकर एकदम दंग रह जाते हैं, जाते- जाते उनके खाना की तारीफ भी करते हैं। वो और उनकी पत्नी कहते वाह नेहा जी बड़ा स्वादिष्ट खाना खाकर आज तो मजा आ गया। उनका बेटा शुभ भी पापा के दवाब के कारण आता है। उसके घर में आकर उसे समझ आता है। कि रोहन के यहाँ भी किसी चीज की कमी नहीं है। 

वो ये भी महसूस करता है, उसकी अकेली मम्मी ने कितना कुछ किया है। 

अब जैसे ही जैन साहब जाने लगते हैं, और कहते नेहा जी लगता ही नहीं, आप अकेले ही इतना मैनेज कर रही हो। 

तब वह कहती है मैं रोहन के पिता के जाने बाद कमजोर पड़ती तो ये कैसे चलता बस ये चाहती हूँ कि बड़ा काम भी मिलने लगे। 

ताकि अच्छी इनकम हो। तब वो कहते नेहा जी हमारे कलिग के यहां पार्टी होनी है, मैं उससे बात करता हूँ। 

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अब जैसे ही वो जाते हैं तो वह फटाफट बर्तन समेटती है तभी उससे क्राकरी सेट की प्लेटें एक साथ तीन उठाने को करती है, तभी हड़बड़ाहट में प्लेटें टूट जाती है। तभी प्लेटों के गिरने की आवाज से कमला जी वहां पहुंचकर कहती – हो गया ना नुकसान,,कहा था कि दिखावे की जरूरत नहीं है, तभी नेहा कहती-” मां अगर क्राकरी टूट गई तो क्या!!! अगर जैन साहब के जरिए अच्छा काम मिलने लगा और क्राकरी सेट ले लेगें। 

क्राकरी सेट टूटने का दुख मुझे भी है ,क्या करु गलती से फिसल गई और टूट गई। ” तब उसकी सास कमला जी बोली- नेहा मैं तुझे मां बनकर ही समझाती हूं, मेरा बेटा होता तो मुझे कुछ कहने की जरूरत ही नहीं पड़ती। खैर छोडो़ अब क्या हो सकता है!!! 

अगले दिन दोपहर को जैन साहब का फोन आता है वो कहते है मेरे पार्टनर के बच्चे की बर्थडे पार्टी है ,दो सौ लोगों का खाना है । ये काम उनके घर में ही करना होगा,मैं एडरेस और फोन नंबर देता है आप उनसे बात कर लीजिए। तब वह खुश होती है। अपनी सास को बताती है, तब सास कमला जी कहती- हां नेहा बहू तुझे काम मिला ये बहुत अच्छी बात है। 

तब रोहन कहता- देखा दादी मेरी मम्मी का कमाल …अब एक दिन के काम के भी अच्छे पैसे मिलेगें। वो भी हजारों में……..  

इतना सुनकर नेहा कहती- मां जी एक दिन के दिखावे का कितना प्रभाव पड़ा है। मां जी आजकल दिखावे की दुनिया है। 

तब उसकी सास कमला जी कहती ठीक कहा नेहा आजकल दिखावे से ही काम चलता है। तेरे दिखावे से ही जैन साहब प्रभावित हो गये और तुझे ये काम मिल गया।इसी तरह नेहा को जैन साहब के जरिये और काम मिलने लगते हैं। 

नेहा की फैमिली का रहन सहन उच्च स्तर का होने लगता है। और सब खुश रहने लगते हैं। 

 

स्वरचित मौलिक रचना

अमिता कुचया 

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