विधि जब से उस विवाह समारोह से लोटकर आई है, तभी से उसका मन बहुत विचलित है। उसके कानों में रह रह कर वो बातें गूंज रही है जो उसके करीब बैठी महिलाऐं आपस में कर रही थी, विधि उन्हें पहचानती नहीं थी और न शायद उन महिलाओं को यह ज्ञान था, कि वे किसके सामने बात कर रही है। विधि का विवाह अभी चार माह पूर्व राजीव के साथ हुआ। राजीव के माता पिता नहीं थे। परिवार में सिर्फ भैया भाभी और दो भतीजे थे। विवाह समारोह दिन में था। निकट की रिश्तेदारी थी, राजीव के ऑफिस में जरूरी मिटिंग थी, इसलिए राजीव ने कहा था कि विधि तुम विवाह समारोह में चली जाना। इसलिए वह अकेली आई थी। वह सोच रही थी कि राजीव से यह बात कहें या न कहें? क्या राजीव से यह बात छिपाना ठीक होगा? क्या राजीव उसकी बात पर विश्वास करेगा? जिन भैया भाभी को वह माता पिता से भी बढ़कर समझता है, उन्होंने धोखे से पिताजी की सारी जायदाद अपने नाम करवा ली है यह सुनकर राजीव को कितना दु:ख होगा। कान में महिलाओं के वे ही शब्द गूंज रहै थे। ‘बेचारा राजीव अपने भाई भौजाई को कितना प्यार करता है। उनकी आज्ञा का निरादर नहीं करता । उसके साथ राकेश और विभा ने अच्छा नहीं किया। वह बाहर गाँव नौकरी कर रहा है, पर रामेश्वर बाबू की संपत्ति पर तो दोनों का समान अधिकार है।’ किसी ने कहा -‘पता नहीं बेचारे को मालुम भी है या नहीं।’ इसी तरह की कानाफूसी चल रही थी, जो विधि ने सुनी।
शाम को जब राजीव घर पर आया तो विधि ने उसके साथ भोजन किया। मगर जब मन परेशान होता है तो चेहरे के भाव अलग ही हो जाते हैं। रात को उसने विधि से पूछा- ‘बहुत परेशान नजर आ रही हो, क्या कारण है?’
विधि ने कहा-‘समझ में नहीं आ रहा है कि आज जो मैंने शादी में सुना वह आपको बताऊँ या नहीं? ‘
‘तुम भी हद करती हो यार! चार महिने हो गए हमारे विवाह को। अभी भी इतना संकोच करती हो, मुझे कुछ बताने में। अच्छा, अब बताओ क्या बात है?’ विधि ने राजीव को सारी बातें बताई तो वह बोला ‘विधि! हो सकता है कि जो लोग हम भाइयों के प्रेम को देखकर जलते हैं,तुम्हारे सामने इस तरह की बात कर रहे होंगे, तुम परेशान मत हो। मुझे मेरे भैया भाभी पर पूरा विश्वास है। तुम आराम से सो जाओ।’ विधि को मालुम था कि वे महिलाऐं विधि को नहीं पहचानती थी। मगर फिर भी उसने राजीव से कहा ईश्वर करे ऐसा ही हो। दोनों सो गए।
चार दिन बाद राजीव बाजार से कुछ सामान खरीद रहा था, तो उसे अपने गाँव के पड़ोस में रहने वाला मित्र सौरभ मिला, राजीव ने पूछा -‘सौरभ मेरे भैया भाभी के क्या हालचाल है?’तो वह बोला-‘मजे है तुम्हारे भैया-भाभी के पूरी जायदाद के अकेले मालिक जो बन गए हैं।’ राजीव को फिर भी यकीन नहीं हुआ वह बोला-‘क्यों मजाक कर रहै हो, तुम्हें कैसे मालुम हुआ?’सौरभ ने कहा -‘यह मजाक नहीं है भाई! सच है, तू बहुत भोला है, अगर तुझे विश्वास न हो तो विनय से पूछ ले उसी ने सारी कार्यवाही की है, और पक्के कागज तैयार किए है, तुम्हें कुछ नहीं दिया है। सुना है अगले महिने से मकान की दूसरी मंजिल उठवा रहे हैं, उनका कहना है कि दोनों बेटों के दो हिस्से हो जाऐंगे।’ राजीव का मन भारी हो गया, उसने सौरभ को घर आने के लिए कहा, मगर उसे जल्दी थी, और वह गाँव चला गया। विनय राजीव का मित्र था। राजीव ने विनय से फोन लगाकर पूछा तो सारी स्थिति स्पष्ट हुई। विनय बता रहा था कि उन कागजों पर तुम्हारे हस्ताक्षर थे, इसलिए मुझे वे पत्र बनाने पढ़े। राजीव के पैरों के नीचे से जैसे जमीन खिसक गई, वह बड़ी मुश्किल से घर आया और विधि को सारी बात बताई। विधि ने कहा -‘तुम पहले मन को शांत करो। तुम हमेशा कहते हो ना कि भैया भाभी के मुझपर बहुत एहसान है। अगर वे मुझसे कुछ मांगेंगे तो मैं कभी मना नहीं करूँगा फिर इतना परेशान क्यों हो रहै हो? हम कमाऐंगे और दूसरा मकान बना लेंगे।’ ‘विधि तुम समझ नहीं रही हो, मुझे दु:ख इस बात का नहीं है कि जायदाद उनके नाम हो गई, मुझे दु:ख इस बात कि है कि उन्होंने मुझपर विश्वास नहीं किया, मुझे पराया कर दिया। धोखे से यह काम किया, और समाज में अपनी छवि बिगाड़ी। अगर वे मुझसे कहते तो मैं स्वेच्छा से दे देता। विधि, मैंने भाभी को मॉं का दर्जा दिया था, उनपर भैया से भी ज्यादा विश्वास किया था। तो क्या उनका सारा प्यार दिखावा था? एक दिन उन्होंने झूठ बोलकर मुझसे कुछ कागज पर मेरे हस्ताक्षर करवाए थे, कि भैया को उनके व्यापार के सिलसिले में जरूरत है, मैंने कर दिए मुझे भाभी की नीयत पर जरा भी संदेह नहीं था, और आज उन्होंने मेरे विश्वास का मुझे यह सिला दिया।’ कहते-कहते राजीव बहुत भावुक हो गया, उसकी ऑंखें डबडबा गई थी। विधि ने बहुत समझाने की कोशिश की मगर उसका मन शांत नहीं हो रहा था। विधि ने कहा ‘तुम्हारे मन में जो भी आ रहा है अपनी भाभी को एक पत्र में लिख दो’ ‘उससे क्या होगा’ ‘तुम लिखो तो सही मेरी बात मानकर देखो’ उसने एक कागज और पेन राजीव को लाकर दिया।
राजीव के मन के भाव कागज पर अंकित होते गए और अश्रु ऑंखों से बहते रहै। उसका मन धीरे-धीरे शांत हो रहा था। उसने लिखा-
‘भाभी, अब सिर्फ आपको भाभी कहूँगा। मेरी भाभी मॉं के संबोधन से मैंने ‘मेरी’ और ‘माँ’ दो शब्द हटा दिए है। आपको मैंने माँ का दर्जा दिया था।मैं बहुत छोटा था तभी माँ मुझे छोड़ कर चली गई, मैं ने तो आपको ही अपनी मॉं की तरह पूजा। आपकी हर आज्ञा का पालन किया। मेरी गलती कहाँ है,मैं समझ नहीं पा रहा हूँ। भाभी आपको मुझ पर जरा भी विश्वास नहीं था, अगर आप कहती तो मैं खुद सबकुछ आपके नाम कर देता, मैंने सच्चे मन से आपको माँ माना था। मुझे जायदाद का मोह नहीं था भाभी, मेरी दौलत तो आप और भैया थे, आपने वह दौलत मुझसे छीन ली। मैं समझ ही नहीं पाया की आपका प्यार एक दिखावा था। अब समझ में आया है, अब और कोई दिखावा मत करना बस यही विनती है,मैं इस दिखावे की दुनियाँ से दूर फिर सम्हलने की कोशिश करूँगा। ‘
राजीव का मन अब धीरे-धीरे शांत हो रहा था। उसकी भाभी पर उस पत्र का क्या असर हुआ उसने यह जानने की कोशिश भी नहीं की। उसने अपनी मेहनत के बलबूते पर दिखावे की दुनियाँ से दूर एक आशियाना बनाया और विधि ने हमेशा उसका साथ दिया।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित