दिखावे का दुःख – विनोद सांखला “कलमदार”

अपने बचपन के मित्र विनय की मम्मी के हार्ट अटेक से अचानक देवलोक गमन की ख़बर सुनते ही रात के 2 बजे पत्नी वर्षा को साथ लेकर विनय के घर पंहुचा तो देखा…!!

वँहा पूरा माहौल गमगीन था।

विनय के पिताजी सोफे पर आँखों में आंसू लिए बैठे है…

विनय और दिव्या भाभी फूट फूट कर रो रहे है..

विनय की माँ ने मुझे भी एक बेटे की तरह ही प्यार दिया था… तो मेरी आँखों से भी अश्रुओं की धारा बह निकली..!!

जैसे तैसे मैंने खुद को और विनय को सम्भालते हुए बाकि परिवार जनों और सभी मित्रों को मोबाईल द्वारा दिन में 11 बजे अंतिम यात्रा के लिए सूचित किया।

अंतिम यात्रा के कुछ मिनट पहले ही घर के बाहर लोगों की भीड़ बढ़ने लगी। समय पर माताजी की अंतिम यात्रा निकाली गई..!!

मुक्तिधाम पंहुचे तो देखा कुछ लोग पहले ही अपने वाहनों से वँहा पहुँच चुके थे।

मुखाग्नि के पश्चात् जो कुछ मैंने देखा वो पहली बार मुझे अच्छा नहीं लगा.. !!

कुछ लोग मोबाईल पर व्यस्त हो गए..!!

कोई वंही से बिज़नेस डील कर रहा है..!!

कुछ लोग ग्रुप बनाकर हँसी मज़ाक करने लगे..!!

कुछ पास के रेस्टोरेंट पर चाय और समौसे का आनन्द लेने चले गए..!!

कुछ लोग समय से पहले ही जा चुके थे..!!

औऱ

कुछ ऐसे भी थे जो सिर्फ औपचारिकता निभाने ही आए थे और बगैर कांधा दिए चले गए..!!

गमगीन यदि कोई था तो सिर्फ विनय का परिवार और कुछ हद तक मैं भी..!! क्योंकि मेरा विनय के साथ एक आत्मिक पारिवारिक सम्बन्ध है..।

यह सबकुछ देखकर मुझे आने वाले भविष्य की धुंधली सी तस्वीर दिखाई दे रही थी..।

जब पडौसी द्वारा हमारे बच्चों से पूछा जाएगा कि…!!

बेटा तुम्हारे पापा दो चार दिन से दिखाई नहीं दिए….??

उस वक़्त हमारे बच्चों का जवाब कुछ इस तरह से होगा…

“अंकल एक महीना पहले ही उनका देवलोक गमन हुआ है”

©विनोद सांखला

#कलमदार

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