“मां भाभी को आज मेन रोड पर देखा था कैसे कपड़े पहने हुए थे उन्होंने। तुम उन्हें कुछ नहीं कहतीं। उन्हें तो जरा सी भी शर्म लिहाज नहीं है। ससुराल में कैसे रहना चाहिए उनकी मां ने तो उनको कुछ सिखाया ही नहीं पर तुम कैसे उन्हें ऐसे बाहर जाने देती हो?
कितने जान पहचान वाले लोगों ने देखा होगा उन्हें वैसे खुला सिर रखे। आपकी और भाई की इज्जत का ख्याल तो रखना चाहिए ना उनको। अच्छा वैसे कहां जा रहीं थीं वो? तुमको बता कर गई थी या बिना बताए ही शॉपिंग करने चली गई थी महारानी जी?”
रैना रोज शाम की तरह अपने मायके आई और मां को बैठक कमरे में बैठा देख , आते ही लगातार बोलती ही जा रही थी।
सुहानी मंद मंद मुस्कुरा रही थी। फैमिली ड्रामा जो शुरू हो रहा था। आज भी उसी को निशाना बनाया है बड़ी दीदी जी ने। उम्र और रिश्ते दोनों में बहुत बड़ी हैं उससे , उसके पति की सबसे बड़ी बहन जो है।
सुहानी भी मन से बहुत आदर करती है पर उनकी कड़वी जबान और तीखे बाण से आहत हो जाती है। शाम का यह समय रोज नई आफत ही लाता है उसके जीवन में।
जो सासूमां दिन भर शांत रहतीं हैं और अपना सारा काम उससे करवातीं हैं। वो अपनी बेटी के आने पर उसकी बुराई ही करती रहती है।
सुहानी दिन भर अपनी सास की और परिवार के हर सदस्य की जरूरत का ध्यान रखते रखते खुद के लिए समय ही नहीं निकाल पाती।
उसने दिल्ली युनिवर्सिटी से एम कॉम और बीएड किया था। शादी से पहले स्कूल में पढ़ाया करती थी। यहां भी उसके जेठजी और पति ने कहा दिया था कि तुम नौकरी करना चाहो तो कर सकती हो।
उसकी सांस भी तो कितना खुश होकर बोली थी हां हां क्यों नहीं, इतनी पढ़ी लिखी बहू आई है तो नौकरी तो करेगी ही मुझे कोई दिक्कत नहीं है। बेटों के सामने पर उनके जाने के बाद उसे सुनाते हुए बोली थी…
वैसे भी तेरे आने से पहले भी घर का सभी काम होता ही था और समय पर सब खाना खाते ही थे। तुझे क्या लगता है तूं खाना नहीं बनाएगी नौकरी करने के बहाने तो हम सब भूखे मर जाएंगे। मेरे हाथ पैर अभी सही सलामत हैं। तुझसे पहले दोनों बहुओं को बिठाकर खिलाया है इतने साल ।वो तो अब बेटा लोग रसोई में काम करने से मना करता है वरना मुझे किसी की जरूरत नहीं है।
उनकी बातों का अर्थ सुहानी समझ ही नहीं पाती थी कि आखिर सासूमां कहना क्या चाहती है मुझे नौकरी करनी चाहिए या नहीं।
सुहानी वो बातें याद कर रही थी जिसके बाद ही उसने मन को दृढ़ किया और फैसला लिया कि उसे नौकरी करनी ही है।
रैना अपनी मां से सुहानी के बारे में ही बोल रही थी आज दोपहर को ही बेटे के साथ बिग बाजार से आते वक्त उसने सुहानी को देखा था तब ही सोच लिया था आज शाम को नया विषय मिल गया सुहानी की शिकायत करने का और मां के उसके खिलाफ कान भरने का।
उसकी मां कमला वहीं सोफे पर बैठी अपनी बेटी की सभी बातें सुन रही थीं और सुहानी रसोईघर में काम कर रही थी। ननद की आवाज सुनते ही चाय का पानी चढ़ाया गैस पर फिर फ्रिज से ठंडे पानी की बोतल निकाल गिलास में डाल कर अपना आंचल सिर पर रख ठंडा पानी अपनी ननद के लिए लेती आई।
“दीदी बैठिए ना। लीजिए एकदम चिल्ड वाटर लाई हूं आपके लिए। आपको ठंडा पानी पसंद है ना।”
रैना सुहानी के हाथों से पानी का गिलास ले एक घूंट में ही पी कर धप्प से सोफे पर अपनी मां के पास बैठ जाती है।
“अब काहे सिर ढक रहीं हों जब मेन रोड पर बिना सिर ढके घूम रही थी तब ध्यान नहीं आया कि लोग क्या कहेंगे।”
“दीदी आपने मुझे देखा था क्या ? तो आवाज क्यों नहीं लगाई। दरअसल मैं आज डी ए वी नन्दराज स्कूल में इंटरव्यू के लिए गई थी और मेरा सिलेक्शन हो गया, अगले हफ्ते से ही ज्वाइन करना है।”
“ज्यादा मत उछलो, कोई जरूरत नहीं है स्कूल ज्वाइन करने की। “
फिर मां की तरफ देखकर रैना बोली..
“बोलो ना मां इसको घर से बाहर काम करने जाने की कोई जरूरत नहीं है। हमारे भाई लोग कमाते हैं। यह भूखे तो नहीं मर रही है यहां पर बिना नौकरी के जो नौकरी करने का भूत सवार हुआ है इसके सिर पर।
तुम चुप्पी क्यों साधे बैठी हो।”
“मैं क्या बोलूं अब बेटे लोग के आगे मेरी चलती ही कहां है। वैसे नौकरी करेगी तो पैसे घर में ही आएंगे यही सोचकर मैं चुप हूं।”
कमला जी सिर पर हाथ रखकर बोली, “वैसे मैंने तो इस मामले में अब मौन धारण करना ही उचित समझ रखा है। मैं परिवार को जोड़कर रखना चाहती हूं। अपने बेटे की खुशियों में ही मेरी खुशियां मैं हमेशा ढूंढती हूं।तू परेशान मत हो , बेकार में हम दोनों मां बेटी बुरी क्यों बने। इन्हें जो करना है करने दो।
“मां तुम पछताओगी अपने इस फैंसले पर। बहू नौकरी करेगी और तुम घर में झाडू पोंछा बर्तन कपड़े खाना इसी सब में लगी रहना। अब बहू आई है तो तुमको आराम मिलना चाहिए या अभी भी काम ही करती रहोगी।”
सुहानी अपनी ननद के पास बैठते हुए कहती हैं,
“दीदी आप चिंता मत कीजिए सब मैनेज हो जाएगा। मैं सुबह नाश्ता ,दोपहर का खाना बनाकर और घर की साफ सफाई करके ही जाऊंगी। डेढ़ दो बजे तक तो घर आ ही जाऊंगी। कोई दिक्कत नहीं होगी मां को और फिर आपका घर भी तो पास में ही है आप देख लीजिएगा कभी मां को ज़रूरत पड़े तो।”
“अच्छा जी तो अब मैं अपना घर संभालूं या यहां आकर तुम्हारा घर संभालूं। मेरे पास फालतू समय नहीं है जो मैं यहां आकर भी काम करूं।”
“दीदी आपको काम करने के लिए कौन कह रहा है । वैसे यह घर पहले आपका है और हमेशा आपका ही रहेगा।”
“अब सिर्फ बातें ही करती रहेगी या मेरी बिटिया के लिए चाय-नाश्ता भी लाएगी। थककर आई है, घर का सारा काम करके मुझसे मिलने पैदल ही आ जाती है।”
सुहानी को याद आया कि वो चाय चढ़ा कर आई है।
“हां मां अभी लाई चाय और पकौड़े।”
“किस चीज के पकौड़े बनाए हैं, आलू वाले हों तो मेरे लिए मत लाना।”
“नहीं दीदी आलू के नहीं हैं,पनीर के बना रही थी वो तो आपकी आवाज सुनकर आपके लिए पानी लेकर आ गई।”
पकौड़े छानकर प्लेट में रखे साथ में तीखी और मीठी दोनों चटनियां रखते वक्त सुहानी के मन में यही चल रहा था कि काश सबके मन की कड़वाहट दूर हो मिठास भर जाए और उसे नौकरी करने से रोका ना जाए।
#बेटियां जन्मदिवस प्रतियोगिता
कविता झा ‘अविका’