ढोलक बजाने वाला- मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi

अबे हेमन्त तू यहां मंदिर में और कबसे तू ढोलक बजाने लगा वे अभय और उसके दो दोस्तों ने हेमंत को मंदिर में ढोलक बजाते हुए देखकर बोले । सामने अभय को देखकर हेमन्त सकपका गया।

                    अभय और हेमंत साथ में पढ़ते थे । सब उसको जमादार, जमादार कहकर चिढ़ाते थे क्योंकि उसके पिता जी झाड़ू लगाया करते थे सडक पर और लोग कहते थे कि टायलेट भी साफ़ करते थे घरों में। हेमंत उन्हीं हरीराम का बेटा था ।छोटे से ही सब बच्चों को स्कूल जाते देखता था हेमंत तो हरी राम से जिद करने लगा कि बापू मैं भी स्कूल जाऊंगा मैं भी पढ़-लिख कर बड़ा अफसर बनूंगा फिर आपको ऐ काम नहीं करना

पड़ेगा।तो हरीराम ने उसका नाम भी सरकारी स्कूल में लिखवा दिया था।अभय भी सरकारी स्कूल में पढ़ता था क्योंकि उस समय इतने पैसे तो होते नहीं थे और अंग्रेजी स्कूल भी नहीं होते थे इतने। सभी एक साथ सरकारी स्कूल में ही पढ़ते थे।बस क्लास के बच्चों को पता लग गया कि हेमन्त के पिता जी सड़क पर झाड़ू लगाते हैं तो सब लड़के उसे जमादार जमादार कहकर चिढ़ाते थे।

                 आज अभय पढ़-लिखकर एक अच्छी नौकरी कर रहा है और अपने घर पर दीवाली की छुट्टियों में आया था ।घर के सभी लोग मंदिर गये थे दर्शन करने को तो अभय भी साथ गया जहां उसको हेमंत दिखाई दे गया। हेमंत भी अब सरकारी नौकरी में था । करीब पच्चीस साल बाद अचानक से अभय और हेमंत की मुलाकात हो गई ।इन पच्चीस सालों में अभय घर से बाहर रहा पहले पढ़ाई के सिलसिले में फिर नौकरी में। ऐसा नहीं है कि अभय इस बीच घर नहीं आया लेकिन कभी हेमंत से मुलाकात नहीं हुई।

                 हेमंत ढोलक बहुत अच्छी बजाता था । मंदिर में जब भी आरती या भजन संध्या होती या किसी के घर पर भी होती तो ढोलक बजाने को हेमन्त को ही बुलाया जाता। बहुत अच्छी ढोलक बजा लेता था इसलिए भजन का कोई भी कार्यक्रम हो हेमंत के बिना पूरा ही नहीं हो सकता था।

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                    अभय के घर में सब बताते थे कि हेमन्त के पिता जमादार थे ऐसा अभय ने भी सुन रखा था । इसलिए अभय जब भी हेमंत को देखता जमादार जमादार कहकर चिढ़ाता था। बरसों बीत गए इस बात को अब तो हेमंत के पिता हरिराम भी नहीं रहे ।और अब उनके घर से कोई झाड़ू वगैरह का काम नहीं करता । हेमंत दो भाई और दो बहनें थीं बहनों की शादी हो गई और भाई सब्जी की दुकान चलाता है । मां भी अब नहीं रही ।

               दूसरे दिन जब भजन कीर्तन का समय हुआ तो हेमंत नदारत था सब पूछने लगे भाई हेमंत नहीं आया अब ढोलक कौन बजायेगा ।दूसरै ने कहा आजतक ऐसा नहीं हुआ कि हेमन्त समय पर न आया हो।सब चिंता करने लगे।अभय दूसरे दिन फिर मंदिर गया तो देखा वहां हेमंत के न आने से सब परेशान थे ।

अभय ने पूछा क्यों पंडित जी आज आरती नहीं हो रही है पंडित जी बोले अरे बेटा आज ढोलक बजाने वाला हेमंत नहीं आया तो अभय बोल पड़ा अरे पंडित जी आप घोर अनर्थ कर रहे हैं एक जमादार से आप ढोलक बजवा रहे हैं ।सारा धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं ।अभय थोड़ा घमंडी इंसान था और कुछ पढ़ाई लिखाई और अच्छी नौकरी का रौब आ गया था । किसी को नीचा दिखाना उसके लिए बहुत आसान था। अपने आगे वो किसी को कुछ समझता न था।अभय की बात सुनकर मंदिर में उपस्थित सभी के चेहरों पर अजीब भाव आ गए सब एक-दुसरे का मुंह देखने लगे।

                   दो दिन हो गए मंदिर में सन्नाटा खिंचा था जहां ढोलक की थाप से सारा मंदिर प्रांगण गुंजायमान होता था।आज मंगलवार था सुंदर काण्ड का पाठ होना था लेकिन समस्या ये कि कौन ढोलक बजाने ।ढूंढे से कोई मिल नहीं रहा था। हेमंत अभय के डर से घर में बैठ गया था कहीं सबके बीच में अभय उसका अपमान न कर दे ।

              आज मंदिर में बैठकर सभी ने निर्णय लिया कि क्या किया जाए । राधेश्याम जी जो वहां के सम्मानित व्यक्ति और मंदिर के ट्रस्टी भी थे , भाइयों मेरी राय तो ये है कि हेमन्त को बुला लिया जाए ।मानते हैं कि उसके पिता जी झाड़ू लगाते थे , लेकिन समय के साथ उनके परिवार ने एक काम बंद कर दिया है ।और अब तो हरीराम भी जिंदा नहीं है । हेमंत अच्छा पढ़-लिख कर सरकारी नौकरी कर रहा है ।सब ईश्वर कै बनाए बंदे हैं ।अब मेरे ख्याल से तो हेमंत से नफ़रत करने की कोई वजह नहीं है ।आप लोग बताइए आप सबकी क्या मजी है । थोड़ी देर मौन के बाद सबने अपनी सहमति दूं दी । क्यों कि दूसरा कोई विकल्प नहीं था।

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                   फिर मंदिर से किसी एक व्यक्ति को हेमन्त के घर भेजा गया उसे बुलाने को। हेमंत थोड़ा सकुचा रहा था आने से । लेकिन उस व्यक्ति ने हेमंत को आश्वस्त किया आप परेशान न हों मंदिर में सभी लोगो की सहमति से ही आपको लेने आया हूं ।

              हेमंत थोड़ा सकुचाते हुए आया मंदिर लेकिन सबने उसका खुशी से स्वागत किया तो फिर हेमंत में भी हिम्मत आ गई ।और दोगुनी खुशी और जोश से हेमंत ने ढोलक पर थाप दी ।श़मा बंध गया मंदिर में भजनों का सभी झूम उठे सब भूल गए कि कौन ढोलक बजा रहा है। सभी श्रोता भजन में ऐसे खोए गए कि भूल ही गए कौन और किस जाति वर्ग का बंदा ढोलक बजा रहा है। कोई अर्थ अनर्थ नहीं होता सब हमारे मन का वहम है ।

आपको कैसी लगी मेरी कहानी बताइएगा ।

मंजू ओमर

झांसी उत्तर प्रदेश

22 अप्रैल

#ये क्या अनर्थ कर दिया

2 thoughts on “ढोलक बजाने वाला- मंजू ओमर : Moral Stories in Hindi”

  1. हेमंत ने गलती करि अभय के गालों को ढोलक समझ के बजा देना था मामला खत्म।

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