“भैया देखो ऐसा है बैंड का हमें ना पता लेकिन ढोल जरूर होना चाहिए।हमारे भैया की शादी में।वरना हम दूसरा इवेंट वाला कर लेंगें”
सेठ ने बाल खुजाते हुए इवेंट मैनेजमेंट वाले को कहा।इवेंट मैनेजर आश्वासन देकर चला गया।
वह एक बस्ती में पहुंचा वहां जाकर एक झुग्गी में आवाज लगाई
“मोनू.. मोनू..”
एक 20 वर्षीय युवक गमछा लपेटे निकला कोठरी में अंधेरा ज्यादा रोशनी कम थी।एक छोटी सी लालटेन अपनी पूरी शक्ति से उस अंधेरे राक्षस को हटाने के लिए जोर लगा रही थी। तभी अंदर से खांसते हुए बूढ़ी आवाज आयी।
“अरे मोनू …कौन है? तू किस्से बात कर रहा?
“कोई नही अम्मा साहब है आरहा अभी”
“जी साहब हुक्म करो मोनू ने मैनेजर से कहा”
तब मैनेजर बोला
“देख भाई मेरी नैया तेरे हवाले है
।अब पार्टी को ढोल चाहिए वो भी बेहतरीन।और इस इलाके में तुझसे बढ़िया कोई नही बजाता,तू ही मेरी इज्जत बचा सकता है।तुझे तो पता ही है कितनी मुश्किल से ये शादियों का सीजन आया है वरना दो साल से तो खाने के ही लाले थे”
इस बात पर मोनू मुस्कराकर अपनी झोपड़ी की तरफ देखा और बोला
“सच कह रहे साहब जब आप जैसे लोग भूखे मर रहे थे तो हमारा तो बस ऊपर वाला ही साँस दे रहा। खैर आप चिंता ना करो मैं आजाऊंगा”
काफी दिनो बाद काम मिला था मोनू को अंदर से खांसी की आवाज तेज होती गई।
शादी का दिन आ गया बारात चढ़ने लगी।लोगों की डिमांड आ गई ढोल की एक रिश्तेदार आया मोनू की तरफ और अपनी टाई को सूंड बनाये मुंह में दबाये हाथ में नोट लिये बोला
“बजा बे बजा जोर से बजा “
मोनू ने समा बांध दिया फिर तो रिश्तेदार बावले हो गये
कोई पतला सांप बन गया कोई मोटा अजगर लोट लगाने लगे नोट उड़ाने लगे।
फिर औरतें लड़कियां भी ठुमके लगी ढोल की थाप पर। माहौल खुशनुमा हो गया मोनू ढोल की थाप पे थाप बिना रूके पूरी धुन में बजा रहा था।
तभी उसके दोस्त भागता हुआ और उसके कान में कुछ कहा।
मोनू की आँखो में आँसू आ गये थे जो ढोल पर गिरते जा रहे थे। लेकिन हाथ नही रूके थे। वो बजाये जा रहा था लगातार आंसुओ की गति और ढोल की थाप तेज होती गई। शादी के बाद बदहवास सा मोनू झुग्गी पहुंचा झुग्गी वाले एक साथ बोलने लगे देर कर दी मोनू
“तेरी माँ चली गई तुझे छोड़कर”
अब मोनू का सब्र टूट चुका था
और रोते हुए बोला
“माँ मैं बहुत नाकारा बेटा था आपका ईलाज के लिए पैसे नही थे इतने दिनों बाद काम मिला सोचा अच्छे से ईलाज कराऊंगा ,जब ढोल बजाते तेरे जाने की खबर मिली तो हाथ नही रूके मेरे यही सोचकर अच्छे से ईलाज नही करा पाया तेरा तो कम से कम ,अच्छे से विदा कर दूँ आज मिले इन रूपयों से”
उसकी बातें सुनकर सारे झुग्गी वाले रो उठे।बादल आ चुके थे आसमान में बारिश होने लगी। आज ऊपर वाला भी रो रहा था।
-अनुज सारस्वत की कलम से
(स्वरचित एवं मौलिक)