धोखा – कुमुद चतुर्वेदी

 

      “सुनो आज फिर हॉस्पिटल से फोन आया था “पति मुकेश के मुँह से यह सुन चंदा पूरी बात सुने बिना ही बोल पड़ी”ऐँ फिर से,तो तुमने क्या कहा?”मुकेश गहरी साँस लेकर बोला”क्या कहता?चुपचाप सुनता रहा और वही फिर से कह दिया कि अभी घर पर मैं अकेला ही हूँ कृपया कुछ समय की मोहलत और दे दी जाये।” यह सुन चंदा ने भी एक गहरी साँस ली मानो राहत मिली हो। 

      मुकेश जब रात को लेटा तो नींद अब कोसों दूर थी,दिमाग में जीवन के वे कटु और पीड़ादायक अतीत के दिन आँखों के आगे नाच रहे थे।वह उठकर बालकनी में जाकर कुर्सी पर अधलेटा हो सोचने लगा।

          उस समय पिताजी रेल्वे में गार्ड थे और ड्यूटी पर तीन,चार दिन या कभी- कभी तो पूरे हफ्ते ही बाहर बीत जाता  था। घर पर माँ और मुकेश के अलावा छोटी बहन माला भी थी।माँ के साथ दोनों भाई,बहन आराम से पिताजी के जाने के बाद रह जाते थे क्योंकि माँ का कठोर  अनुशासन और प्यार दोनों को ही समान रूप से मिलता था।होश सँभालने से ही उन दोनों ने यही रुटिन देखा था घर का और अब अभ्यस्त हो गये थे।  जीवन आराम से गुजर रहा था कि अचानक आये तूफान से सब तितर बितर हो गया। 

        एक दिन पिताजी ड्यूटी पर गये और लौटकर उनका निर्जीव शरीर ही आया,पता चला हार्टफेल हो गया था।वे  हॉस्पिटल पहुँच ही नहीं सके थे।अब माँ के सामने सबसे बड़ी समस्या थी पैसा और घर।अब जैसे तैसे पेंशन और पिताजी के बैंक एकाउंट से गुजर हो ही रही थी,माँ ने रेल्वे में आश्रित के कोटे के जॉब के लिये मेरा नाम भी दे रखा था।मैं ग्रेजुएशन की पहली साल में था और बहन माला तो आठवीं में ही थी।हमारे पड़ोसी और पिताजी के मित्र ने उस वक्त हमारी बहुत मदद की और हमें क्वार्टर नहीं छोड़ना पड़ा।सारी कागजी कार्यवाही हमारे पड़ोसी कपूर अंकल ने ही पूरी की थी।माँ और हम दोनों भाई,बहन भी कपूर अंकल  के यहाँ बचपन से आते जाते थे।उनके भी दो बेटे थे एक मेरे ही साथ पढ़ता था और दूसरा अभी तीन साल का ही था।माला उनके छोटे बेटे को खिलाने अक्सर उनके घर चली जाती थी। माँ ने कभी हम लोगों को रोका नहीं था और कपूर अंकल व आंटी भी हम दोनों को प्रेम से अपने घर बुलाते थे।सब कुछ ठीक चल रहा था।मेरा भी अब इसी साल ग्रेजुएशन होने वाला था और मुझे नए साल से जॉब भी मिलने को थी।इसी बीच ऐसी घटना घट गई कि हमारी पूरी जिन्दगी ही बदल गई।




          हमेशा की तरह एक दिन माला माँ से कहकर कपूर अंकल के यहाँ गई पर जब काफी देर तक नहीं लौटी तो माँ ने मुझे देखने भेजा।मैं उनका बंद दरवाजा खटखटाता रहा पर  किसी ने  दरवाजा नहीं खोला,तब मैंने वापिस घर आकर माँ को बताया।माँ और मैं दुबारा वहाँ गये तो घर पर ताला लगा था। हमने आसपास खोजा और घर आकर देखा कि हमारे घर  के बाहर माला बेहोश पड़ी थी।हम जल्दी से उसे अंदर ले गये और माँ तो उसकी हालत देख घबड़ाकर रोने लगी।माँ ने माला का मुँह साफ कर कपड़े बदले।मैं बाहर खड़ा था।दिमाग कुछ समझने की स्थिति में नहीं था तभी माँ की आवाज सुन भीतर गया तो माला मुझे देख डरने और चिल्लाने लगी।मैं डॉक्टर को लेकर आया तब उसने जो बताया उसे सुन माँ और मेरे होश उड़ गये।डॉ.ने बताया माला के साथ किसी दरिंदे ने हैवानियत की थी जिससे वह मुझसे भी डर रही थी।माला के शरीर के घाव तो धीरे धीरे भर गये पर उसके दिमाग पर इतना गहरा असर पड़ा कि वह बोलना ही भूल गई,गुमसुम सी बैठी रहती जो कहो कर देती चुपचाप।कभी कभी इतनी आक्रामक हो जाती कि कमरे में बंद करना पड़ता। कपूर अंकल  पूरे परिवार सहित रातों रात जाने कहाँ गये किसी को आज तक नहीं मालूम।बाद में पता चला उन्होंने दो दिन के अंदर ही ट्रांसफर करा लिया था और हमसे बिना मिले ही चले गये।हम तो अपनी परेशानी में ही उलझे थे उस समय कहीं और ध्यान ही नहीं था।बहुत दिनों बाद ही हमारी समझ में पूरा मामला आ पाया पर फिर क्या हो सकता था?चुप ही रहना पड़ा माँ ने भी यही राय दी थी।

         अब माँ भी माला के ग़म से साल के अंदर ही चल बसीं। इस बीच मेरी भी शादी हो गई परंतु माला पाँच साल बाद भी वैसी ही है।मैंने माला को माँ के जाने के बाद एक रिहैबिलीटेशन सैंटर में एडमिट करा दिया था और वहीं से फोन आया था उसे वापिस ले आने के लिये। तभी अचानक लगा मानो माँ ने मेरे सिर पर हाथ रखकर मुझे पुकारा,मैंने आँखें खोलीं तो सामने चंदा खड़ी थी और कह रही थी “अब चलो सो जाओ सुबह जल्दी उठकर माला को लेने चलना है न।”

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