धोखा – प्रेम बजाज 

 अम्बाला शहर, अब्दुल मियां सुबह-सुबह चाय पी रहे थे, बेटे राशिद का फोन आया ।

” हेलो,  हां बेटा कहो”

“आपने आज अखबार देखा?

“नहीं, चाय पी रहा हूं, अभी पढ़ता हूं,  क्यों? कोई खास खबर ?

“आप जल्दी से अखबार देखिए, फूफी की फोटो छपी है”

” सावित्री बहन की? क्या हुआ सावित्री बहन को”

“देखिए तो”

अब्दुल ने अखबार देखा,”सावित्री की फोटो के नीचे लिखा था, 

यह औरत अंबाला  रेलवे स्टेशन पर मिली, जो कोई इसे या इनके बेटों को जानता हो, इत्तिला करें,  यह यमुनानगर के वृद्धाश्रम में है।

              फोन नं ०००००००००

खबर पढ़कर अब्दुल मियां के पैरों तले जमीन निकल गई। 

अब्दुलमियां उसी समय यमुनानगर अपने एक दोस्त को फोन मिलाते हैं।

” हैलो राशिद मियां, कैसे हो”

 “मियां बहुत दिनों बाद याद किया, सुबह-सुबह कुछ खास बात है?

“क्या यमुनानगर में मेरा घर नाम का वृद्धाश्रम है?

“हां है, क्यों? क्या हुआ?

 “वहां का रहन-सहन, खानपान कैसा है बुजुर्गो को ठीक से रखते हैं ना”

 “बहुत अच्छा है, वृद्धाश्रम के संचालक मेहरा पति-पत्नी है, उनका दुनिया में कोई नहींं, इसलिए उन्होंनेे अपने घर को वृद्धाश्रम बना लिया, जो भी कोई बुजुर्ग बेसहारा या बच्चों को सताया होता है यहीं आता है। सब एक परिवार की तरह रहते हैं। लेकिन हुआ क्या? 

“कुछ नहीं,  और फोन रख देते हैं,

फिर चार दिन  बाद यमुनानगर वृद्धाश्रम में फोन पर सावित्री बहन के बारे में पूछने पर  पता चला कि कोई उसे लेने नहीं आया, और वृद्धाश्रम सावित्री बहन को लेने चल पड़ते हैं।



“वृद्धाश्रम के संचालक को फोटो दिखा कर “भाई साहब यह औरत यहीं हैं?

 मेहरा साहब, “जी हां।आप कौन?

 “मैं उनका भाई, उन्हें लेने आया हूं” 

“आप अब्दुल मियां हैं”

“जी हां, मगर आपको कैसे पता चला, और आपको सावित्री बहन कैसे मिली?

“मैं अपने दोस्त को कटरा के लिए अंबाला रेलवे स्टेशन पर छोड़ने गया, तो देखा एक औरत सबसे बहस कर रही है, मैंने वहां के चाय वाले से पूछा तो उसने बताया,  उसका बेटा उसे छोड़कर चला गया,सुबह से भूखी यहीं बैठी है कि उसका बेटा आकर उसे ले जाएगा, लेकिन सब कह रहे हैं कि वो नहीं आएगा,मैं मामला समझ गया और इन्हें बहाने से कि उनका बेटा बुला रहा है, अपने साथ आश्रम लाया,

“सावित्री बहन ने बताया एक उनके भाई अब्दूल  मियां और दो उनके बेटे, बस यही उनके रिश्तेदार हैं”  

लेकिन 4 दिन से अभी तक ना किसी बेटे का फोन आया और ना ही कोई नहीं लेने आया। कह रही थी एक बेटा दिल्ली, एक  पुणे रहता है” दिल्ली वाला बेटा अपने साथ ले जाने आया था, स्टेशन पर बैठाकर टिकट लेने गया अभी तक नहीं आया”

अब्दुल मियां,”  वह नहीं आएंगे,  धोखा दे गए इसे”

 “क्या आप मुझे इनके बारे में बता सकते हैं?

 “सावित्री बहन, रामनाथ भाई और हम, सब एक ही मोहल्ले में रहते हैं,

इनका  प्रेम विवाह हुआ था, लेकिन बहुत छोटी उम्र में रामनाथ भाई की कैंसर से मृत्यु हो गई,  माता पिता पहले ही गुजर चुके थे। 



सावित्री बहन अकेली रह गई,  3 साल का बड़ा बेटा राम और 1 साल का छोटा बेटा लखन।  कैसे पालती?

  रिश्तेदार मदद  के लिए आगे तो आए मगर बदले में जिस्म की चाहत।  नाजायज संबंध बनाना चाहते, शादी कोई नहीं करना चाहता, रखेल बनाकर रखना चाहता था हर कोई, लेकिन सावित्री बहन ने सब को मुंहतोड़ जवाब दिया। 

“सावित्री बहन की हिम्मत को देखकर मैंने सावित्री बहन से कहा,  “जो किराने की दुकान रामनाथ भाई चलाते थे आप उसे चलाओ, मैं सामान लाने लेजाने में आपकी मदद करूंगा”

 मैं सावित्री बहन की थोड़ी बहुत मदद कर दिया करता,  सावित्री बहन ने उस  दुकान को फिर से चलाना शुरू किया और अपने बलबूते पर अपने दोनों बच्चों को पाला, पढ़ाया लिखाया। इस काबिल बनाया,  एक बेटा पुणे,  दूसरा दिल्ली में अच्छे ओहदे पर नौकरी करने लगे तो मां को दुकान बंद करने की सलाह दी, मैंने भी सावित्री बहन से कहा कि अब बच्चे कमाने लगे हैं अब तुम आराम करो।

उसके बाद सावित्री बहन ने दुकान बेचकर दोनों बेटों की शादी की।

लेकिन शादी के बाद 6 महीने एक  और 6 महीने दूसरा बेटा रखता, मुफ्त की नौकरानी जो मिली थी, लेकिन कोई भी  हमेशा के लिए मां को नहीं रख सकता,  मां बोझ लगने लगी। जब तक जरूरत थी तब तक मां को रखा। अब अपने बच्चे पल गए, नौकरानी की जरूरत अब नहीं तो छोड़ दिया।

मेहरा,”लेकिन इनका अपना घर तो है?

“नहीं रहा, बहुओं ने कहा मां हम दोनों शहर में किराए पर रहते हैं आप यहां हमारे साथ हो तो अंबाला का पुश्तैनी मकान बेचकर हम दोनों ही शहर में अपना मकान खरीद लेते हैं।

 “मैंने सावित्री बहन को बहुत रोका कि मकान मत बेचे, क्योंकि मैं उनके बेटों को जान गया था कि वो इसे धोखा देंगे, लेकिन सावित्री बहन ममता में अंधी नही समझ पाई। 

15 दिन पहले ही मकान बेचा। लेकिन अभी पूरी पेमेंट नहीं मिली थी, 4 दिन पहले पूरी पेमेंट मिली। दिल्ली वाला लड़का मां को साथ लेकर आया सारे पैसे लेकर मां को टिकट लेने के बहाने स्टेशन पर बैठा कर खुद चला गया।

जबकि वह  दिल्ली से कार में आया था।  आप ही बताइए जो कार में आया,वो ट्रेन में क्यों जाएगा।  सावित्री बहन ममता में अंधी इतना ना समझ पाई उसका खून धोखा दे रहा है। मैंने पहले  दिन यह खबर पढ़ी थी,  लेकिन 4 दिन इसलिए नहीं आया कि शायद किसी बेटे को शर्म आ जाए और लेने आ जाए।

मेहरा साहब,”अब्दुल मियां सावित्री बहन को बुलाते हैं, अगर वो जाना चाहे तो हमें कोई एतराज़ नहीं, लेकिन अगर वो यहां रहना चाहें तो ये उन्हीं जैसे लोगों का घर है, सबका अपना घर, हमने इश्तिहार केवल उनके कहने पर दिया था।

 जब यह दोनों बातें कर रहे हैं तो अचानक सावित्री बहन आ जाती है और कमरे के बाहर खड़ी सब बातें सुन लेती है, उसकी आंखें भरी हुई हैं और अंदर आकर अब्दुल भाई से,”अब्दुल भाई मुझे किस्मत ने धोखा दिया था, बर्दाश्त कर लिया था इन बच्चों के लिए, लेकिन अब तो अपना खून दग़ाबाज़ निकला, अपने खून द्वारा धोखा  बर्दाश्त नहीं होता, और इतना कहते ही सावित्री वहीं दम तोड़ देती हैं।

 नहीं सह पाई वह अपने खून का धोखा।

प्रेम बजाज ©®

जगाधरी ( यमुनानगर)

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