पैंसठ साल की झुनकी फुआ की आंखों से अनवरत आंसू बह रहे थे.. भतीजे के बेटे की शादी थी… कितना मन था शादी में जाने का…. पर उम्रदराज महिलाओं और पुरुषों को ना हीं घरवाले ना हीं रिश्तेदार चाहते हैं शादी में शामिल हो!!
अखबार में मोबाइल में मातृदिवस और पितृदिवस छाया हुआ है पर वास्तविकता..
झुनकी फुआ अतीत में चली गई.. कितना दुलार और मान सम्मान मायके में मिलता था.. बाबा आजी ने बड़े दुलार से नाम रखा था झुनकी…
बचपन अम्मा बाबूजी और बाबा आजी के प्यार दुलार में कब बीत गया पता हीं न चला.. सत्रह की होते होते। शादी हो गई..
अच्छा संपन्न परिवार नौकरी पेशा सुशील स्वभाव के पति को पाकर झुनकी फुआ कितनी सुखी और संतुष्ट थी.. उनका प्रफ्फुलित चेहरा देखकर कोई समझ जाता..
मायके में छोटे भाई बहनों की शादी में जाती तो खूब रौनक हो जाता… सारी रस्मों में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेती… समय कब बीत जाता पता हीं नहीं चलता… ढोलक पर जब झुनकी फुआ शिव जी के गीत से शुरुआत करती तो पूरा माहौल शिवमय हो जाता.. फिर सोहर झूमर बन्ना.. महफिल में समां बंध जाता.. कन्यादान का ऐसा गीत गाती की पुरुष महिलाएं और लड़कियां सिसकने लगती..
झुनकी फुआ के बच्चे तान्या और तनुल भी बड़े हो रहे थे..
समय गुजरता गया.. झुनकी फुआ सास बन गई.. दामाद और बहु दोनो उतार लिया था…
मायके में भतीजे भतीजियों की शादियां अब शुरू हो गई थी.. नाचने गाने की शौकीन झुनकी फुआ एक सप्ताह पहले मायके के बुलावे पर चली जाती… संझा पराती गाने की कला (बिहार में शादी ब्याह के समय सूर्योदय पूर्व और शाम को गाए जाने वाला पारंपरिक गीत) झुनकी फुआ को अपनी दादी से मिली थी विरासत में…
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इस उम्र में कमर लचका के नाचती तो सब वाह वाह कर उठते. बिहार में लड़के के बारात विदा होने की रात घर की सारी महिलाएं पूरी रात जागकर डोमकच करती हैं.. कुछ महिलाएं पुलिस तो वकील डॉक्टर तो मास्टरनी आदि बनती हैं.. पहनावे और अभिनय देख अच्छे अच्छे लोग धोखा खा जाए.. मनोरंजन भी होता है और चोरों से सुरक्षित भी रहता है घर.. पहले महिलाएं बारात बहुत कम जाती थी.. झुनकी फुआ खूब सक्रिय रहती.. उनके बिना डोमकच की कल्पना भी बेमानी थी.. जिस भूमिका में होती बेजोड़ अभिनय करती..
अब संझा पराती सोहर झूमर डोमकच की जगह डीजे ने ले लिया है.. शादी के रस्मों की जगह ड्रेस और तरह तरह से किया गया फोटो शूट… पहले हल्दी उबटन से निखरी दुल्हन पर खूब सुर्खी चढ़ता था अब ब्यूटी पार्लर से तैयार दुल्हन रंगी पुती स्वभाविकता से कोसो दूर.. खैर ये पुराने समय की बात है..
झुनकीफुआ आस पड़ोस में कहीं शादी ब्याह होता तो बूढ़ी सास और बाल विधवा फूआ सास को भी संभाल के ले जाती थी.. जब बिछावन पर पड़ गई तभी मैं उनके बिना किसी शादी ब्याह में गई.. मैं तो अभी भगवान की दया से ठीक हूं.. टहलती हूं सुबह का नाश्ता बना देती हूं… दूध खटाल से ला देती हूं… साग सब्जी काट लेती हूं और भी घर के छोटे मोटे काम निबटा लेती हूं पर शादी में मैं ले जाने वाले के उपर और रिश्तेदारों के उपर बोझ बन जाऊंगी…
भगवान जब शरीर को बूढ़ा बना देते हैं तो मन को भी वैसा हीं बना देते काश..
मन कितना आहत हो जाता है आज ये रस्म हो रहा होगा… कल वो रस्म ओह… काश कि बूढ़े होते शरीर में एक मन भी होता है ये आज के बच्चे समझ पाते.. बुजुर्ग बोझ नहीं होते.. उनका आशीर्वाद दुआ बहुत फलता फूलता है…
वक्त हर किसी को इस मुकाम पर लाता है जो आज जवान है कल बूढ़ा होगा ये अकाट्य सच समय रहते इंसान कहां समझ पाता..#. धिक्कार #है ऐसे सोच पर.. चाहे ये सोच मेरी हो आपकी हो या किसी और की हो….
हमारे आस पास न जाने कितनी झुनकी फुआ मौजूद हैं शायद इनके दर्द को महसूस कर हम अपना कल सुखद कर ले… संस्कार और परंपराएं हमारी पहचान आन बान और शान है…
✍️🙏🙏❤️❤️
Veena singh..