निशिता का ऑपरेशन हुआ था।वो अस्पताल में थी।साथ में थे पति(तन्मय),बड़ी ननद और बच्चे।
ननद बच्चों को संभालने के लिए आई हुई थी,,क्योंकि बेटी 3 ही महीने की थी।उसे किसी के पास छोड़ने का निशिता सोच भी नहीं सकती थी।
ननद ने अचानक उससे कहा_”जरा अपना फोन देना एक कॉल कर लूं,मेरे फोन में रिचार्ज खत्म हो गया है”
निशिता ने फोन दे दिया।वो फोन लेकर बाहर चली गई।निशिता की भी आंख लग गई।
करीब एक घंटे बाद किसी के तेज़ बोलने की आवाज से उसकी नींद खुली तो देखा उसकी ननद तन्मय (निशिता के पति )यानी अपने भाई से कह रही थी “मैं यहां तेरे बच्चों का मुंह देखकर आ गई वरना मुझे कोई मतलब नहीं तेरी बीवी कल मरने वाली आज मर जाए।”
तन्मय ने भी आज पलटकर जवाब दे ही दिया था “दीदी अगर आपको इतनी अक्ल भी नहीं है कि किस वक्त क्या बोलना चाहिए और क्या नहीं,तो कैसी बहन है आप? मैं आपसे हाथ जोड़कर विनती करता हूं मत खाइए तरस मेरे बच्चों पर और चली जाइए अभी यहां से!
जो होना होगा मेरे साथ होगा,वैसे भी आपके दिल का सच जानकर मैं अपने बच्चों के लिए भी आप पर एक मिनट का विश्वास नहीं कर सकता।
जो इंसान एक रिश्ता न होने के कारण इतना गिर सकता है वो और न जाने मौका देखकर कितना गिर जाए।”
इतना सुनते ही दीदी ने अपना बैग उठाया और अहंकार में बोली “अब आएगी तुझे समझ में जब खुद सब करना पड़ेगा तो,आज से तेरे और हमारे रिश्ते खत्म।”और निकल गई रूम से।
निशिता को समझते देर नहीं लगी कि वजह केवल तन्मय से शादी करना है वो भी प्रेमविवाह।
तन्मय और निशिता की शादी के लिए घरवाले राजी नहीं थे,क्योंकि इशिता एक महाराष्ट्रीयन परिवार से थी और तन्मय यदुवंशी।
अंतर्जातीय विवाह ऊपर से गांव के परिवेश में पली बढ़ी और पढ़ लिखकर नौकरी करने वाली लड़की थी।वो एक स्कूल में शिक्षिका थी।
तन्मय भी उसी स्कूल में अतिथि शिक्षक के रूप में कार्यरत था।
बात ये थी कि तन्मय के परिवार वाले चाहते थे कि यही दीदी को आई थी उनकी ननद की बेटी का रिश्ता हो तन्मय से।ताकि दीदी ज़िंदगी भर अपनी ननद को झुका कर रख सके उनकी बेटी का वास्ता देकर।और दहेज भी अच्छा ही मिलता।
मगर तन्मय ने साफ कह दिया था वो इशिता से ही शादी करेगा।बस इसलिए ही सबको चिड़ थी इशिता से।
इशिता ने तन्मय की ओर और फिर बच्चों की ओर देखा उसकी सूनी आंखें बता रही थी उसे कितना कष्ट हुआ है। क्योंकि उसका नॉर्मल ऑपरेशन तो था नहीं,उसका ऑपरेशन था ब्रेस्ट कैंसर का।एक गांठ बन गई थी आंचल में जो कैंसर की थी।और उसी के चलते आज वो अस्पताल में थी,उसका पूरा एक तरफ का आंचल निकालना पड़ा था इस वजह से।
वो तो शुक्र था कि समय पर पता चल गया था, स्तिथि नियंत्रण में थी।मगर ये सब देखकर आज जैसे वो टूटने को थी।
तभी तन्मय उसके पास आया और बोला”मैं हूं ना,,मैं देखभाल करूंगा तुम्हारी और अपने बच्चों की। ये वक्त भी गुजर जाएगा।हमारे साथ बुरा ही इसलिए हुआ है ताकि सबके चेहरे से नकाब उठ सके।
धिक्कार है ऐसे रिश्तों पर जो खून के तो है मगर एहसास मर गए है,अहंकार वश। चलो एक और खोखला रिश्ता खत्म हुआ।”
और वो माहौल को खुशनुमा करने के लिए अपनी तीन महीने की बेटी को इशिता की गोद में देते हुए और खुद चार साल के बेटे को गोद में लेते हुए बोला “एक हैप्पी फैमिली सेल्फी हो जाए”
और उसने ये पिक स्टेटस पर लगाते हुए कैप्शन लिख दिया “गेट वेल सून बैकबोन ऑफ अवर फैमिली”।
#धिक्कार है।
साप्ताहिक कहानी
स्वरचित रचना
प्रेमलता माथनकर
ग्वालियर