शैलजा और उनके पति उमेश जी धर्म-कर्म में बहुत विश्वास रखते थे ।दान धर्म करना, वृद्धाश्रम में बुजुर्गो की सेवा करना , असहाय कमजोर लोगों को भी भरसक मदद करते रहते थे। लोग बच्चों के जन्मदिन पर या अपने जन्मदिन या शादी के सालगिरह पर पार्टी करके लाखों रूपए उडा देते हैं , लेकिन उमेश जी को ये सब पसंद नहीं था। बच्चे छोटे थे तो कभी कभार पार्टी वगैरह उमेश जी के घर हो जाया करती थी लेकिन जबसे बच्चे बड़े हुए दो बेटे हैं उमेश जी के ,सब बंद कर दिया है ।अब इस समय बच्चे विदेश में रह रहे हैं । यहां पति पत्नी अकेले रहते हैं। रिटायर मेंट के बाद उमेश जी पूरी तरह से ऐसे ही कामों में व्यस्त हो गए हैं।
आज शैलजा और उमेश जी की शादी की पैंतीसवीं सालगिरह है तो दोनों ने बाजार से खाने के कुछ पैकेट बनवाए और वहां रहने वाले बुजुर्गो के लिए कपड़े भी खरीदें और सब लेकर व। वृद्धाश्रम की ओर चल पड़े । वहां खाना कपड़े बांटे देते थे और वृद्धाश्रम के मैनेजर को कुछ सहयोग राशि भी दे आते थे । इन सब कामों में उमेश जी की पत्नी शैलजा भी पूरा साथ देती थी।
वृद्धाश्रम में जब खाना और जरूरत के मुताबिक कपड़े दे रही थी तो वहां मौजूद सभी लोग खुशी खुशी सब सामान ले रहे थे लेकिन वही किनारे बैठी एक आंटी काफी शांत और चुपचाप सी उदास बैठी थी और उन्होंने साड़ी लेने से मना कर दिया कि मेरे पास कपड़े है ।
उनके चेहरे पर कोई खुशी कोई हंसी नहीं थी वैसे भी घर से दूर अपनों से दूर बच्चों से दूर होकर कैसे कोई खुश रह सकता है । शैलजा ने बाहर आकर वृद्धाश्रम के मैनेजर से पूछा भाई साहब वो जो माता जी उधर बैठी है वो कुछ नहीं ले रही हैं मना कर रही है उनकी आंखों में एक अजीब सी उदासी है क्या बात है।
वो मैनेजर बोला वो माता जी अभी एक महीने पहले ही आई है , किसी संभ्रांत परिवार की है । उन्होंने तो खुद इस आश्रम को डोनेशन दिया है तो उनको कैसे अच्छा लगेगा किसी से कुछ लेना-देना । इनके बच्चे इन्हें छोड़ने नही आए थे ये खुद अपने आपसे ही आ गई थी शैलजा बोली अच्छा ।
घर आकर शैलजा उन आंटी के बारे में ही सोचती रही । यही कोई सत्तर के आसपास होगी ।गोरा रंग सलीके से पहनी गई साड़ी रूआब दार व्यक्तित्व , आंखों में चश्मा ,कानों में छोटा सा बुंदा ,कुल मिलाकर एक आकर्षक व्यक्तित्व था उनका ।
कुछ समय बाद जब दूसरी बार वृद्धाश्रम जाने का समय आया तो शैलजा ने उमेश जी को बोला कि आज भी उसी आश्रम में चलते हैं जहां पिछली बार गए थे । क्यों कि हर बार अलग-अलग आश्रम में जाते थे । उमेश जी बोले क्यों उसमें तो पिछली बार गए थे लेकिन शैलजा जी बोली इस बार भी वही जाना है ।
आश्रम पहुंच कर शैलजा सभी माताओं से मिलने के बाद उन्हीं आंटी के पास बैठ गई जाकर और बात करने की कोशिश करने लगी । शैलजा ने उन आंटी के हाथ पर अपना हाथ रखकर कुछ तसल्ली देनी चाही तभी कुछ बूंदें आंसू की शैलजा के हाथों पर गिरा , शैलजा ने देखा तो आंटी रो रही थी लेकिन कुछ बोल नहीं रही थी ।
शैलजा ने उनको अपने से चिपका लिया शैलजा का भी गला भर आया । इसी तरह शैलजा तीन चार बार उसी आश्रम में गई और उन्हीं आंटी के पास बैठकर समय पास करती ।अब वो आंटी धीरे धीरे खुलने लगी ।आज शैलजा के स्पर्श पर आंटी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान फैल गई शैलजा को अच्छा लगा ।अब तो शैलजा जब भी आती आंटी के पास बैठती कि अब आंटी थोड़ी बात करें तो उनका मन हल्का हो जाएगा।
आज जब शैलजा आईं तो आंटी बोली आइए आइए, आंटी को बोलते देख शैलजा दोगुनी खुशी से उनके गले से लिपट गई । शैलजा ने कहा आंटी आप अपने बारे में कुछ बताइए आपको कहकर अच्छा लगेगा । यहां कैसे आई , कौन-कौन हैं आपके घर में आपके पति कहां है वगैरह वगैरह।
फिर आंटी आज पहली बार बोलीं शांति नाम है मेरा , मेरे पति गुजर गए हैं दस साल हो गए , एक बेटा है , रूपये पैसे की कोई कमी नहीं है मैं अपनी मर्जी से यहां आई हूं ।दस साल पहले पति गुजर गए थे तब बेटे की शादी नहीं हुई थी पढ़ रहा था । अभी पांच साल पहले बेटे की शादी हुई है अपने संग पढ़ने वाली सहपाठी के संग ब्याह किया है ।एक पोता है तीन साल का ।बहू को मैं फूटी आंख नहीं सुहाती , बात बात में मुझको ज़लील करती है । हर वक्त ताने देती है कि मुसीबत बनकर बैठी है मेरे सिर पर जाओ कहीं और रहो ।
एक दिन मेरे हाथ से उसके मछली पालने का वो क्या कहते हैं उसका बर्तन जिसमें मछली रहती है , टूट गया तो उसने बहुत बातें सुनाई और कहने लगी चली जाओ यहां से ।हम लोगों का जीवन अजाव बना दिया है।बेटा भी बहू को कुछ नहीं बोलता वो भी मुझपर चिल्लाने लगता है । पोते को पास नहीं आने देती शैलजा ने पूछा क्यों , क्यों कि अस्थमा की वजह से मुझे थोड़ी खांसी आती है , बहू कहती हैं मेरा बंटे को भी खांसी लग जाएगी । उससे आप बात मत किया करो।
शैलजा बोली और आपकी प्रापर्टी वगैरह है घर मकान , हां मकान था एक दिन धोखे से स्टाम्प पेपर पर साइन कराकर अपने नाम करा लिया तभी तो कहती हैं मकान मेरा है आपका कुछ नहीं है जाओ यहां से ।इनका रवैया देखकर मैं सचेत हो गई पति का जो पेंशन है वो मैंने देने से मना कर दिया । कहीं वो सब पैसा भी न छीन ले इसलिए मैं अपनी मर्जी से यहां आ गई हूं। नहीं तै पेंशन के पैसे भी धोखे से निकलवा ले ।अब उसी पैसे से कुछ पैसे आश्रम को देकर यहां रहने लगी । इतना ज़लील होकर रहने से क्या फायदा ।
शैलजा आंटी की बातें सुनकर हतप्रभ रह गई । हतप्रभ क्या होना आजकल सब तरफ यही कुछ चल रहा है ।जब से बच्चे बुजुर्गो का मान सम्मान करना भूल गए हैं वृद्धाश्रमों की बाढ सी आ गई है ।एक तरह से अच्छा ही है वृद्धाश्रम न होते तो अपनों से दुत्कारे गए मां बाप कहां जाते। शैलजा बोली धिक्कार है ऐसे बच्चों पर जो अपने ही पालनकर्ता मां बाप को इस हाल में पहुंचाते हैं ।
कोई नहीं शांति आंटी अब आप अच्छे से यहां रहिए , यहां कोई तकलीफ़ नहीं होगी ।और ऐसी औलादों के बारे में क्या सोचना ।आप दुखी न हो एक परिवार छूटता है तो ईश्वर दूसरा परिवार दै देता है ऐ भी तो एक परिवार है ।जो बच्चे मां बाप को बुढापे में सहारा नहीं दे सकते दो रोटी नहीं दे सकते । धिक्कार है ऐसे बच्चों को ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
20 मार्च