कहतेहैं कि जब किसी व्यक्ति का अंतिम समय निकटहोता है तो ईश्वर उसे उसके जीवन की पूरी घटनाएं एक पिक्चर की तरह दिखातेहैं। ऐसी ही मरणासन्न स्थिति में अस्पताल के बिस्तर पर पड़े थे मदनलाल और उनकी आंखों में घूम रहा था उनका जीवन।
माता-पिता की इकलौती संतान मदन। दादा दादी का लाडला और चाचा चाची का दुलारा। चाचा और चाची की दो बेटियां थीं। दोनों मदन को ही राखी बांधती थी। अधिक लाड प्यार मिलने के कारण मदन बचपन से ही जिद्दी और बदतमीज हो गया था। और उसकी हर जिद को बचपना कहकर पूरा किया जाता था, इसीलिए वह सिर पर चढ़ गया था। स्कूल हो,घर हो या फिर खेल का मैदान अपने सामने वह किसी को कुछ नहींसमझता था।
स्कूल में बच्चों से मारपीट घर में बहनों से लड़ाई झगड़ा, उसकी आदत बन गई थी। टीचर के पर्स में मरा हुई कॉकरोच डाल देना या फिर टीचरको किसी और तरीके से परेशान करने में उसे बहुत मजा आता था ।पढ़ाई लिखाई में फिसड्डी और शरारतों में नंबर वन। आए दिन स्कूल से शिकायत आती थीं। मां बहुत समझाती और डांटती भी थी लेकिन पिताजी हंस कर टाल देते थे।
थोड़ा बड़ा होने पर बड़ों का अपमान करने लगा और उलटे जवाब देना उसकी आदत बन गई। दादाजी ने एक बार कहा-“बेटा, अपनी इतनी बड़ी दुकानहै ड्राईफ्रूट्स की, तुम्हें ही संभालनी है, जरा पढ़ाई लिखाई करो, हिसाब किताब सीखोगे, तभी तो दुकान चला सकोगे।”
मदन-“आप बूढ़े हो चुके हैं, शांति से रहिए, मुझे कुछ मत सिखाइए, मैं अपनी पढ़ाई अपने आप देख लूंगा।”
बचपन में मदनको लाड लड़ाने वाले दादाजी मायूस होकर चुप हो गए।
एक बार दादी जी ने कहा -“बेटा उस दिन जो तुम्हारे दोस्त घर पर आए थे, वह मुझे कुछ ठीक नहीं लगे, उन्हें आगे से घर पर मत बुलाना। घर पर तुम्हारी दो बहने भी है।”
मदन-“अच्छा अच्छा ठीक है, भाषण देने की जरूरत नहीं है। आप लोगों को बस एक मौका मिलना चाहिए और उपदेश शुरू।”
ऐसे ही वह कभी पिता का, कभीमां का, कभी चाचा चाची का, अपमान करदेता था। उसके पिता को अब लगने लगा था कि जरूरत से ज्यादा लाड प्यार, पैसा और आजादी देकर उन्होंने गलती कर दीहै। अब मदन पूरी तरह कंट्रोल से बाहर हो चुका था। थोड़ा और बड़ा होने पर सिगरेट और शराब भी पीने लगा था। पिता के कहने पर अपनी दुकान पर जाने लगा था, और वहां से पैसे चुराने लगा था। पिता ने बहुत समझाया, पर नतीजा ढाक के तीन पात।
दादी पुराने जमाने की थी सो बोली -“शादी करवा दो, जिम्मेदारी पड़ेगी तो सुधर जाएगा।”
मदन के माता-पिता इस बात के लिए बिल्कुल तैयार न थे। उनका कहना था कि “किसी और की लड़की के जीवन को क्यों खराब करें और वैसे भी इसे अपनी लड़की देगा ही कौन?”
दादी ने कहा-“गांव में मेरी एक सहेली है जानकी, उनकी पोती राधा बहुतसुंदर है। बहुत नेक लड़की है। मैं बात करती हूं।”
दादी ने जानकी से बात की और रिश्ता तय हो गया क्योंकि उन लोगों को पता नहीं था कि लड़का शराब पीता है। कुछ समय बाद दोनों का विवाह संपन्न हुआ। राधा का स्वभाव बहुत अच्छा था।
कुछ दिनों तक मदन ने कोई हंगामा नहीं किया। दादी खुश थी कहने लगी-“देखा, मैंने कहा था ना की जिम्मेदारी आएगी तो सुधर जाएगा। कैसे राधा बहू के साथ खुशी-खुशी रह रहा है और शराब से भी दूर है। समय से दुकान भी जा रहा है।”सभी बहुत खुश थे।
खुशी कुछ समय की थी। अगले दिन मदन को कुछ दोस्त मिल गए, खास तौर पर राकेश, सब ने कहा शादी करने गांव चला गया। अब शादी की पार्टी दे। और सब ने मिलकर खूब शराब पी। रात को घर जाकर नशे में छोटे-छोटे बातों पर हंगामा करने लगा। राधा बेचारी हैरान परेशान थी, कि यह सब क्या हो रहा है। उसे समय तो नशे में डूबा मदन सो गया। सुबह राधा ने उसे बहुत समझाया। मदन भी लज्जित था। उसने राधा से वादा किया कि अब कभी शराब नहीं पिऊंगा। पर शाम ढलते ढलते वादा शराब की बोतल में डूब गया और नशेमें डूबे मदन को जब राधा ने उसका वादा याद दिलाया तो उसे बेचारी को मार भी खानी पड़ी। घर के सभी लोग लज्जित थे।
मदन रात को नशे में सो कर, सुबह वादा करता और शाम को भूल जाता। रोज सुबह राधा उसे समझाती। एक दिन राधा ने फिर से कोशिश करते हुए कहा-“अब तो आप पापा बनने वाले हैं, अब तोपीना छोड़ दीजिए।”
मदन यह सुनकर बहुत ज्यादा खुश हो गया और बोला अपने होने वाले बच्चे की खातिर मैं शराब पीना छोड़ दूंगा।”
राधा के गर्भवती होने की खबर सुनकर घर वाले बहुत खुश थे और साथ ही साथ चिंतित थे कि मदन आगे क्या करेगा।
शाम को मदन के घर आने पर चिंतित अवस्था में राधा ने दरवाजा खोला। आज मदन शराब पीकर नहीं आया था। उसे बहुत खुशी हुई। छ सात दिन चैन सेबीत गए। लेकिन पीने वाले को शराब की या जिस नशे की उसे आदत हो, उसकी तलब लगती ही है। और उसेकंट्रोल करने के लिए बहुत हिम्मत और सब्र की जरूरत होती है। वह एक दिन फिर सेपीकर आ गया।
राधाने हिम्मत नहीं हारी। उसने मदन को समझाया-“अपने 7 दिन बिना पिएगुजार दिए, यह बहुत बड़ीबात है मुझे यकीनहै कि आप कोशिश करेंगे तो हमेशा के लिए नशे को छोड़ सकेंगे। अपनी संतान की खातिर आप इतना तो कर ही सकते हैं।”
मदन ने फिर कोशिशकी, इस बार उसने 15दिन निकालदिए। धीरे-धीरे उसकी आदत कमहो रही थी।
धीरे-धीरे समय बीता। राधा ने एक प्यारी सी बेटी को जन्म दिया। जिसका नाम उन्होंने रखा, ज्योति। उसके होने के बाद मदन दुकान से सीधा घर आ जाता था।
ज्योति से खूब प्यार करता, उसकेसाथ
खेलता, उसके लिए ढेर सारे खिलौने और कपड़े खरीद कर लाता। इस बीच उसका दोस्त राकेश भी शहर छोड़ कर चला गया था। घर वाले इस बात सेभी खुश थे।
मदन के दादा दादी गुजर चुके थे। ज्योति 10 साल कीहो चुकी थी। वह अपने दादा-दादी और मम्मी-पापा को बहुत प्यार करती थी, पर सबसे ज्यादा अपने पापा को।
एक दिन फिर मदन को अपना पुराना दोस्त राकेश मिल गया और वह उसे घर ले आया। राधा को उसका आना बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। दोनों छत पर चले गए। राधा को जिस बात का डर था वही हुआ। राकेश बोतल लाया था और मदन को पीने के लिए कह रहा था। मदन कोई नासमझ छोटा बच्चा तो था नहीं,कि उसे कोई जबरदस्ती पिला दे, उसका भी मन था पीने का,सो पी ली।
सुबह ज्योति ने कहा-“पापा, वह अंकल मुझे बिल्कुल अच्छे नहींलगे, उन्हें मत बुलाया करो।”
मदन-“अच्छा ठीक है मेरी बिटिया रानी ”
थोड़े दिन बाद राकेश अपने आप फिर से आ गया। दोनों छत परचले गए। मदन ने उसे पीने से साफ मना कर दिया। मदन छत से नीचे आया और राधा को बोला चाय बना दो और ज्योति से बोला कि बेटा जाकर अंकलको पानी दे आओ। मैं अभी आता हूं।”ऐसा कहकर वह वॉशरूम चला गया। ज्योति पानी का गिलास लेकर छत पर गई।
राकेश ने छोटी बच्ची को गलत ढंग से अपनी बाहों में फंसा लिया और चूमन की कोशिश करनेलगा। ज्योति छटपटा रही थी और कह रही थी अंकल मुझे छोड़ो। आखिरकार ज्योति ने राकेश के हाथ पर जोर से काट लिया और भागी। यह सब कुछ मदन ने देख लिया था, उसने राकेश को मार मार कर लहू
लुहान कर दिया और ज्योतिको लेकर नीचे जाने लगा तभी अचानक राकेश ने एक ईट उठाकर मदन के सिर पर दे मारी। मदन के सिर से खूनकी धारा बह निकली।
ज्योति चिल्लाने लगी। मम्मी, दादाजी यहां आओ, पापा को बचाओ। उसके चिल्लाने के कारण पड़ोसी भी बाहर आ गए और भागते हुए राकेश को पकड़ लिया। पूरी बात का पता लगते ही उसे पुलिस के हवाले कर दिया। मदन के पिता उसे अस्पताल ले गए। डॉक्टर ने सिर फट जाने के कारण और अधिक खून बह जानेके कारण 24 घंटेका खतरा बताया। सब प्रार्थना कर रहे थे कि मदन ठीकहो जाए। चौबीस घंटे बाद होश में आने पर सारी बातें मदन कीआंखों के सामने घूम रही थी औरउसे लग रहा था कि मैं अब नहीं बचूंगा। उसके आंसू बह रहे थे और वहखुद से कह रहाथा कि धिक्कार है मेरे जीवन पर। मैंने किसी को कोई सुख नहीं दिया। मैंने सिर्फ सबको परेशान ही किया है। यहां तक कि मैं अपनी ज्योतिके लिए भी कुछ नहीं कर पाया। मेरे जैसे व्यक्ति का मर जाना ही उचित है।”उसने अपनी आंखें बंद कर ली।
थोड़ी देर बाद डॉक्टर साहबने आकर कहा -“मदन अब खतरे से बाहर है। लगता है भगवान ने आपकी बिटिया की प्रार्थना सुन ली है, उधर देखिए।”
मदन नेदेखा कि ज्योति अस्पताल के कमरे के कोने में चादर बिछा कर गणेश जी की मूर्ति हाथमें लेकर प्रार्थना कर रही है”मेरे पापा को ठीक कर दो भगवान जी, वह बहुत अच्छे हैं, उनकी कोई गलती नहीं है, मैं उनको बहुत प्यार करती हूं। प्लीज भगवान जी। ”
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली