“धैर्य ” – मनीषा सिंह : Moral Stories in Hindi

 “महेश बाबू की शादी के 15 साल हो गए और पत्नी सुनीता इन 15 साल में चार बार गर्भवती हुई पर, हर बार उनका गर्भपात हो जाता । 

 कितना भी पूजा पाठ और कितनी भी मन्नतें मांगी पर वो कहते हैं ना कि सब कुछ समय से ही निर्धारित होता है समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता। 

 उम्र के 40 वा पार करने के बाद भगवान ने आखिरकार एक दिन सुनीता की सुन ही ली ।

“महेश बाबू और सुनीता” के घर एक बहुत ही ‘प्यारी बच्ची’ का जन्म हुआ! 

 नाम राधा रखा गया। राधा जन्म से ही बहुत संस्कारी थी ।उसके आते ही पिता की कारोबार दुगनी रफ़्तार से चलने लगी।

 माता-पिता की इकलौती संतान होने की वजह से उसे बहुत लाड प्यार से पाला गया ।उसकी हर ख्वाहिशें पूरी की जाती ।

वह जिस चीज की मांग करती महेश बाबू कभी भी उसके लिए सोचते नहीं थे।

 धीरे-धीरे समय बीतता गया समय के साथ-साथ राधा भी बड़ी होती गई और अब वह शादी योग्य हो गई। पिता महेश बाबू अब बेटी की शादी के लिए सुयोग्य वर ढूंढने में लग गए ।आखिरकार उन्हें राधा के लिए एक शिक्षित होनहार लड़का मिल गया।

” लड़का– तो काफी होशियार और पढ़ा-लिखा है— वैसे तो शिक्षक है पर वह आगे और कुछ बनना चाहता है–! इसके लिए वह सिविल सर्विस की तैयारी कर रहा है पहले भी उसके दो बार निकल चुके थे– पर साक्षात्कार में रह गया अब ये उसका तीसरा चांस  है शायद इस बार राधा के भाग्य से वह निकल जाए हो मुझे पूरी उम्मीद है कि वह निकाल भी लेगा महेश बाबू लड़का को देखने आने के बाद ,पत्नी सुनीता को  विस्तार पूर्वक जानकारी देते हुए  बोलें । 

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   ‘मां-बाप नहीं रहे उसकी परवरिश भैया और भाभी ने मिलकर की हैं–अपने बेटे की तरह। तो हमें अगर वहां शादी करनी है तो राधा उन्हीं के पास रहेगी ।

कोई बात नहीं इतना अच्छा लड़का है मुझे– तो रिश्ता अच्छा– लगा । सुनीता महेश बाबू से बोलीं ।

हां—- तो फिर ठीक है “मैं कल ही जाकर रिश्ता पक्का कर आता हूं! ” अगले ही दिन महेश बाबू रिश्ता पक्का कार आएं ।

 एक अच्छा दिन और मुहूर्त देखकर उन्होंने राधा और गौरव की शादी करा दी।

विदाई के बाद:-

 “कितनी मन्नतों के बाद हमारे घर बेटी हुई हमारे सुने आंगन में खुशियां लेकर आई । और आज– इसी आंगन को फिर से सुना कर, हमें छोड़ चली गई। सुनीता महेश बाबू की आंखों से आंसू पोंछते हुए बोली।

 हां क्या करें–अब दुनिया की यही रीत है जिंदगी भर हम अपनी बेटी को अपने पास रख तो नहीं सकते थे ना–? एक न एक दिन उसको जाना ही था कहते हुए महेश जी अपने कमरे में चले गए। सुनीता समझ गई कि अभी वह बहुत ही सदमे में है जब तक वह जी भर कर रो नहीं लेंगे तब तक शांत नहीं होंगे ।

राधा का ससुराल में प्रवेश:-

 राधा के “जेठ दीनानाथ जी और जेठानी सावित्रीजी बिल्कुल बहू की तरह ही राधा का स्वागत किया ।

सब कुछ एकदम बढ़िया चल रहा था । गौरव  भी” सिविल सर्विस” के लिखित परीक्षा में एक बार फिर पास कर गया। तुम जब से मेरी जिंदगी में आई हो– मेरा सब कुछ अच्छा चल रहा है–! गौरव राधा को चुमते हुए बोला।

भगवान इस बार आपकी जरूर सुनेंगे !

अब साक्षात्कार की तैयारी में गौरव  जोर- शोर से लग गया । से पूरा विश्वास था कि इस बार वह पक्का निकल जाएगा 

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“आज जब साक्षात्कार का परिणाम आया तो— गौरव बहुत दुखी हुआ इस बार भी वह रह गया। घर में सभी मौन थे राधा गौरव को समझाने में लगी हुई थी। ” जितना भगवान ने हमें दिया है–बस काफी है ! पर गौरव इस बार बहुत बड़े सदमे से गुजर  रहा था वह चाह के भी इससे बाहर नहीं आ पा रहा था। 

भैया-भाभी ने भी बहुत समझाया, पर कुछ दिन के बाद से ही गौरव मानसिक रोग से ग्रसत होने लगा दिन पर दिन उसकी समस्याएं बढ़ने लगी।

” अब वह अकेले में ही रहना ज्यादा पसंद करने लगा, अपने आप से बातें करने लगा ।

  सावित्री जी गौरव की इन हरकतों को देखकर, सोचने लगी कि जरूर इस पर भूत- प्रेत का साया  है ।

“हमें किसी ओझा से गौरव को दिखाना पड़ेगा–।

 लेकिन– दीदी इन्हें किसी ओझा की नहीं बल्कि मनोचिकित्सक की जरूरत है।

 राधा लक्षणों को देखकर समझ गई थी कि गौरव मानसिक रोग से ग्रसित हो गया है।

 उसने जेठानी को पंडित जी के पास ले जाने से मना किया तथा  मानसिक चिकित्सक से सलाह लेने के बारे में सोचने लगी।

  राधा भी गर्भवती थी घर का माहौल गौरव के तबीयत की वजह से ,एकदम खराब हो चुका था।

 “बेटा तू कुछ दिन के लिए हमारे यहां “रामपुर”आ जा। 

 जमाई जी की वजह से तु आराम भी नहीं कर पाती, जब तक तेरी डिलीवरी नहीं हो जाती तब तक हम सबके पास ही रह। महेश बाबू भावुक होते हुए बोले।

”  नहीं पापा—  जिंदगी सुख दुख का संगम है हमें घबराना नहीं चाहिए ! जब भगवान ने मुझे खुशियां दी थीं तब तो मैं इनके पास थी और अब– जब  ये मानसिक रूप से बीमार है तो– “मैं कैसे इन्हें छोड़ दूं–? 

राधा फिर आगे बोली–” मैंने कल ही इन्हें मनोचिकित्सक को दिखाया वह बोले कि गौरव ठीक हो जाएंगे–! बस इनक इलाज सही ढंग से हो तो–  और साथ में उनके मनोबल को भी हमें बढ़ाना होगा। बिना मेरे– इनका कुछ भी संभव नहीं है। अगर इनको अच्छी तरह से सही इलाज मिल गया तो मुझे पक्का विश्वास है कि यह एक दिन बिल्कुल ठीक हो जाएंगे—!   और बच्चे के आ जाने से क्या पता गौरव ठीक हो जाए—!

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 भगवान तुझे हिम्मत और शक्ति दे बेटा—!

 तू इतनी समझदार है मुझे तुझ पर गर्व है कि– ऐसी विषम परिस्थितियों में भी तू डटकर आत्मविश्वास के साथ गौरव के लिए खड़ी है ।बेटा— किसी भी मदद की जरूरत हो तो बिना हिचकीचाय मुझे बताना–! महेश बाबू बेटी को हिम्मत और हौसला देते हुए, फोन रख दिए—। 

 महेश बाबू से बात करने के बाद पता नहीं राधा में कहां से इतनी हिम्मत आ गई कि– अब इसका एक ही लक्ष्य था– कैसे भी गौरव को ठीक करना और 

 उसकी पिछली जिंदगी वापस लानी ।

मनोचिकित्सा की देखरेख में गौरव का इलाज शुरू हो गया। इधर राधा भी बच्चे को जन्म देने के लिए तैयार थी और उधर गौरव की भी मानसिक स्थिति पहले से ठीक होती जा रही थी।

” एक दिन राधा ने प्यारी बेटी को जन्म दिया!

  समय-समय पर राधा बेटी को लेकर अस्पताल जाया करती और गौरव से मिलवाती बेटी को देखते ही गौरव पर जैसे टॉनिक का असर हो जाता। वो 

ठीक होता चला गया। 

” राधा अब गौरव 90% ठीक है बाकी का 10% 15से 20 दिन  लगेंगे उसके बाद तुम इन्हें घर ले जा सकती हो–!और हां– यह पहले की तरह अपनी नौकरी फिर से ज्वाइन कर सकता हैं– !”

 धन्यवाद डॉक्टर–! 

 राधा घर आने के बाद बहुत खुश थी उसने ये खुशखबरी अपने जेठ- जेठानी को भी सुनाई! वे लोग भी बहुत खुश हुए और  गौरव के घर आने का इंतजार करने लगे।  

“रात के खाना-वाना खाने के बाद जब सब अपने कमरे में सोने चले गए तो—करीब 1:30 पर किसी ने  राधा के दरवाजे पर  दस्तक दी राधा बेटी को एक और सुलाकर   दरवाजा खोली तो सामने अपने जेठ के बेटे “बबलू “को देखा–। क्या बात है बबलू जी—? कुछ चाहिए आपको–?

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 बिना जवाब दिए बबलू अंदर आकर बोला “चाची जब से चाचा की मानसिक स्थिति खराब हुई है— तब से आपको देख मुझे तरस आता है— वैसे” मैं रिश्ते में आपका कुछ भी लगु पर आपसे उम्र में तो बड़ा हूं ना—!  आपकी जरूरत को ‘मैं समझ सकता हूं’ क्यों ना हम दोनों एक हो जाए–!

 क्या बकवास कर रहे हो आप—? अभी के अभी निकल जाओ इस कमरे से–! शर्म नहीं आती आपको ऐसी बातें करते हुए–! अरे चाची हूं मैं आपकी—!  राधा का गुस्सा देख बबलू उसे समय तो चला गया पर जब भी मौका मिलता उसके साथ गलत व्यवहार करने से पीछे नहीं हटता।

 राधा ने एक दिन ठान लिया कि उसकी इस हरकतों को वह बर्दाश्त नहीं करेगी और अपनी जेठानी को बताएगी ।

 सुबह जब किचन में दोनों लंच तैयार कर रहीं थीं तो– इस समय राधा ने सारी बात अपनी जेठानी को बता दी जेठानी सावित्री जी ने हंसते हुए कहा कि अरे पगली—! “देवर जैसा है ! मजाक कर रहा होगा— तुझसे—!

 सावित्री जी के इस जवाब से  राधा को बहुत गुस्सा आया। सावित्री जी की बेटी “संगीता” से राधा का संबंध दोस्त की तरह था राधा ने जब उसे सारी बात बताईं तो–उसे अपने भाई की इन हरकतों पर बहुत शर्म आया फिर बोली–” चाची क्यों ना हम किस बात को पापा को बताएं–! क्योंकि मां कभी भी ये बात  पापा को पता नहीं चलने देगी–! मुझे विश्वास है कि पापा कुछ अच्छा ही निर्णय देंगे—! समय रहते ही सारी बात जेठ दीनानाथ जी को राधा ने बता दी!

 सुनते ही उन्होंने बबलू की ऐसी हरकतों को बढ़ावा देने के लिए तथा उसे नहीं समझाने के लिए सावित्री जी को फटकार लगाई! और बबलू को धमकाते हुए कि अब ऐसी हरकतें की तो सीधा पुलिस तुमसे बात करेगी—। उस दिन के बाद से बबलू सचेत रहने लगा।

  जब गौरव ठीक होकर घर आया तो इन लोगों ने भी जेठ-जेठानी का घर छोड़ , अपना अलग फ्लैट लेकर रहने लगे–! अब सब कुछ पहले जैसा हो गया गौरव ने भी अपनी स्कूल जॉइन कर ली !

 राधा की ” हिम्मत और धैर्य ” से एक बार फिर उसे अपना खोया हुआ परिवार वापस मिल गया!

 इसलिए सुख का समय एक सा नहीं रहता जिंदगी है तो सुख-दुख का संगम तो होना ही है बस हमें सब्र और हौसले की जरूरत है। दोस्तों अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज इसे लाइक शेयर और कॉमेंट्स जरूर कीजिएगा धन्यवाद। 

#सुख दुख का संगम 

मनीषा सिंह

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