धर्म बेटी – डा. मधु आंधीवाल

वृद्धाश्रम का एक कमरा एक सौम्य ,शालीन वृद्ध महिला चुपचाप गीता का पाठ कर रही थी । अपनी मौन साधना में खोई हुई । देखने से लगता था बहुत सम्पन्न घर की होगी पर पता ना किन परिस्थितियों में यहाँ पहुँच गयी । लविका एक रिसर्च स्कालर थी समाज शास्त्र की । वह महिलाओं पर शोध कर रही थी जिनका सब कुछ होते हुये इन वृद्धाश्रम में आश्रय था । लविका का बचपन बहुत कठिन परिस्थितियों में गुजरा 

था ।  बाप शराबी मां कमला चार बच्चों का लालन पालन घरों के बर्तन साफ करके करती थी । लविका कमला के साथ अक्सर रमा आंटी के यहाँ आती थी । रमा आंटी के पति शहर के नामी डाक्टर थे । चार बेटों की मां को लड़कियाँ बेहद प्यारी थी क्योंकि उनके बेटी नहीं थी और वह भी मां बाप के अकेली थी ।रमा बहुत प्यारी और पढ़ने में बहुत होशियार थी । रमा कमला से कहती इसको इस काम में मत लगा इसको पढ़ने दे । कमला कहती  दीदी पेट भरने को तो पैसे नहीं पढ़ाई के लिये कहां से लाऊं । रमा ने लविका की पढ़ाई का पूरा खर्चा अपने ऊपर ले लिया । रमा के चारों बेटे उच्च शिक्षा के लिये विदेश चले गये क्योंकि रमा के पति का सपना था की चारों बेटे विदेश में उच्च शिक्षा प्राप्त करें जिससे उनकी ख्याति और बढ़े । सब बेटे शिक्षा पूरी करके अपने देश आना नहीं चाहते थे । अचानक डा. साहब का देहान्त हो गया । रमा जी तो बिलकुल टूट गयी बेटे विदेश से आये मां को लगा सब सही हो जायेगा पर बेटों ने कहा मां सम्पत्ति को बेच कर सब को दो और हमारे साथ चलो रमा ने कहा मै कुछ नहीं बेचूगी ना जाऊंगी । लविका रमा जी को बहुत प्यार करती थी पर उसको रमा जी ने हॉस्टल में आगे की शिक्षा के लिये भेज दिया था । बेटों ने वकील से मिलकर सब सम्पति का बंटबारा करवा दिया जिस कोठी में वह रहती वह भी बेच दी । रमा जी को पता ही नहीं लगने दिया बिना बताये विदेश चले गये । जब कोठी खाली कराने के लिये खरीद दार आया और रमा जी को निकाल दिया तब कुछ समझदार लोगों ने उन्हें वृद्धाश्रम भेज दिया । लविका ने बहुत पता लगाया  उसे पता नहीं लगा । आज जब वह वृद्धाश्रम आयी तब रमा को देख कर बोली मां मैने सबसे पूछा आप नहीं मिली और अब इस जगह चलो मां मेरा ये जीवन आपका ही है । मै यह कर्ज साथ जन्म नहीं चुका सकती । बेटा नहीं आपकी बेटी तो है रमा जी आज लविका को देख कर गले लगा फूट फूट कर रो रही थी । सब महिलायें आगयी रमा जी बोली मै अब जा रही हूँ मेरी धर्म बेटी आ गयी ।

स्वरचित, अप्रकाशित

डा. मधु आंधीवाल

अलीगढ़

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