बर्फ से ढकी कश्मीर की वादी अपने पूर्ण सौंदर्य की छटा बिखेर रही थी।सैलानी ठंड से बेफिक्र हाथों से बर्फ के ढेले बना बना कर एक दूसरे पर फेंक रहे थे।अजीब मस्ती का आलम था।रितेश और अखिलेश आज ही गुलमर्ग पहुचे थे।वहां के दृश्य देख उनका मन झूम उठा।
रितेश एक सामान्य परिवार का लड़का था,जब से उसकी जॉब लगी तो घर मे बरकत दीखाई देने लगी थी।कुछ माह पूर्व ही उसकी शादी भी एक सामान्य से परिवार की लड़की सपना से उसके माता पिता की मर्जी से हो गयी थी।सपना सुंदर व सौम्य लड़की थी।परिवार के प्रति समर्पण भाव की शिक्षा उसे अपने घर से मिली थी।उसके पिता नही थे,मां भी अपने भाई के पास रहती थी।
सपना के मामा का रितेश के पिता से जान पहचान थी।एक दिन किसी कारणवश रितेश के पिता को सपना के मामा के घर जाना पड़ गया,वहां उन्होंने सपना को देखा।सपना उन्हें एक नजर में ही भा गयी।उन्हें रितेश पर भरोसा था,सो उन्होंने सपना को रितेश के लिये तभी मांग लिया।उत्साहित हो उन्होंने घर आकर सब घटना क्रम बताया।रितेश ने भी अपने पिता के विश्वास की पूरी लाज रखी और सपना से शादी के लिये हाँ कर दी। रितेश का एक छोटा भाई सोनू भी था,जो जॉब की तलाश में था।
रितेश और अखिलेश दोनो ही बचपन के गहरे दोस्त थे।प्रारंभ से वे दोनो साथ साथ पढ़ते,खेलते,लड़ते झगड़ते,साथ साथ घूमने फिरने भी जाते।एक बार रितेश कॉलेज की फीस नही भर पाया था तो अखिलेश ने अपनी घड़ी बेच कर रितेश की फीस भर दी थी,बिना उसे बताये,वो तो रितेश को बाद में पता चला।
अब तो रितेश और अखिलेश दोनो ही जॉब करते थे,आर्थिक परेशानी अब नही रह गयी थी।बैठे बैठे दोनो ने बर्फ गिरना देखना और स्कीइंग करने का अभ्यास करने हेतु कश्मीर जाने का कार्यक्रम बना लिया।अखिलेश की शादी हुई नही थी सो सपना को साथ न जाने का निर्णय हुआ और दोनो दोस्त कश्मीर चले गये।
जबसे धारा 370 हटी है,कश्मीर में पर्यटकों की संख्या में अच्छा खासा इजाफा हो गया है,यह वहां प्रत्यक्ष दिखायी पड़ रहा था।दोनो अगले दिन गुलमर्ग पहुंच गये।चारो ओर बर्फ ही बर्फ देख वे खूब आनंदित हो रहे थे।नवयुवक थे सो स्कीइंग की भी ट्राय करने लगे,उसमें रोमांच के साथ मजा भी आने लगा।जोश जोश में कुछ आगे निकल गये।लौटना भी है ध्यान ही नही रहा।दुर्भाग्य वश वहां एवलांच(बर्फीला तूफान)आ गया।जिसमें दोनो फंस गये।बर्फ की फुहार तेज हवा के साथ बढ़ती जा रही थी,कैसे वापस जाये सम्भव नही था।बर्फ में दब कर मौत निश्चित सामने खड़ी थी,दोनो मित्र बिछड़ गये थे।शरीर बर्फ में दबते जा रहे थे।जिंदगी की जंग जारी थी।
जैसे ही अखिलेश को होश आया तो उसने अपने को हॉस्पिटल में पाया।हेलीकॉप्टर से रेस्क्यू किया गया था। रितेश के बारे में पूछने पर उसे कुछ फोटोज दिखाये गये।उनमें रितेश का फोटो था,लेकिन उसकी मौत हो चुकी थी।अखिलेश चीख पड़ा, कैसे वापस किस मुँह से जायेगा?
किसी प्रकार अखिलेश वापस आया,सरकार ने रितेश के शव को भेजने की व्यवस्था कर दी थी।रितेश के घर मे कोहराम मच गया था।सबसे बुरी स्थिति उसकी पत्नी सपना की थी।उसका सबकुछ उजड़ चुका था।नवविवाहिता विधवा हो चुकी थी।
अखिलेश अक्सर रितेश के घर जाता रहता,हालचाल लेने।इस बीच उसे लगा सपना कुछ उदास और बेचैन सी है।उसने पूछा भी पर सपना ने टाल दिया,पर अखिलेश से आँखों मे छलके आंसुओ को न छिपा सकी।अखिलेश की भी मर्यादा थी वह उससे अधिक नही बढ़ सकता था,बस इतना ही कह सका सपना कोई भी परेशानी हो तो मुझसे छिपाना मत,बता जरूर देना।
एक दिन अखिलेश के पास सपना का फोन आया,रोते रोते बदहवास सी सपना बोल रही थी,अखिलेश मुझे बचा लो अखिलेश। थोड़ा सामान्य होने पर सपना ने बताया कि रितेश की मृत्यु के बाद उसके छोटे भाई सोनू की निगाहें बदल गयी है,पहले छेड़छाड़ और अब हरकत जबर्दस्ती तक बढ़ गयी है।सास ससुर भी असहाय अपने को पा रहे हैं, कहने लगे है कि उसके साथ बैठ जा।तुम्ही बताओ अखिलेश क्या मेरा आत्मसम्मान नही,गरीब मां की बेटी हूँ तो क्या सोनू की रखैल बन जाऊं?किसी प्रकार अब तक इज्जत बचा पायी हूँ, पर कब तक?मुझे भी रितेश के पास ही जाना होगा।
अखिलेश ने सपना को दो तीन दिन के लिये अपनी माँ के पास जाने को बोल दिया और सपना को आश्वस्त किया कि वह कोई ना कोई राह जरूर निकाल लेगा।सपना अपनी मां के पास चली गयी,जहां वह अधिक दिन नही रह सकती थी,यह अखिलेश जानता था।अब समाधान क्या हो यह विचारणीय था?काफी सोच विचार कर अखिलेश ने सपना से शादी करने का निर्णय कर लिया।यह आसान नही था,विधवा विवाह को घर समाज कैसे स्वीकार करेगा,यह प्रश्न उसके सामने मुँह बाये खड़ा था।भले ही समाज खिलाफ रहे तो भी कुछ तो करना पड़ेगा ही।
अखिलेश ने अपनी माँ से सारी स्थिति बताते हुए सपना से शादी की अनुमति मांगी।मां तो बिफर पड़ी,अरे नासपीटे क्या घर मे विधवा को लेकर आयेगा?दुनिया क्या कहेगी कुछ तो सोचा होता।माँ को न मानना था सो न मानी।अखिलेश ने फिर हिम्मत करके पिता से भी सब बात कह ही दी।अखिलेश के पिता सुलझे विचारों के थे,उन्होंने बस इतना कहा, देखो अखिलेश तुमने जब सपना से शादी की ठान ली है तो तुम करोगे ही,आत्म निर्भर हो,हम रोकना चाहे तो भी नही रोक सकते।बस एक बात समझ लेना बेटा, शादी करोगे तो निभाना,समाज के डर से सोनू मत बन जाना।यदि समाज के ताने सुनने का साहस हो जीवन भर सपना का साथ निभाने का मादा हो तो मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है।अखिलेश अवाक हो पिता का मुँह देखता रह गया।जीवन की कितनी बड़ी सीख पिता ने दे दी थी।अखिलेश ने आगे बढ़कर पिता के चरण स्पर्श कर लिये।
सपना ने भी हिचक और भविष्य की स्थिति को भांप कर अपनी रजामंदी दे दी।अखिलेश ने सपना को आश्वासन दिया कि सपना, मैं समाज की कुदृष्टि से बचाने को तुम्हे अपना नाम दे रहा हूँ,तुम्हारे शरीर को मैं छूने का प्रयत्न भी नही करूँगा,ये मेरा वचन है।
अखिलेश ने अपना वचन निभाते हुए कभी भी सपना की ओर पत्नी रूप में नही देखा।समाज की निगाह में ही वे पति पत्नी थे।अखिलेश सपना को पूरा सम्मान देते हुए उसका पूरा ध्यान रखता।सपना सब कुछ देख रही थी समझ रही थी।एक दिन अपने बिस्तर पर सोया अखिलेश की अचकचा कर आंख खुल गयी उसने देखा कि सपना अपना सिर उसके सीने पर रखे हुए है।
बाहर वर्षा हो रही थी,बिजली कड़क रही थी,लेकिन खुली खिड़की से आ रही बौछार दोनो को सरोबार कर रही थी,आज दोनो इससे बेखबर थे।
बालेश्वर गुप्ता, पुणे
मौलिक एवं अप्रकाशित