” दीदी पता है राजीव हम सबको नैनीताल ले जा रहे है !” आरती ने वैशाली से खुश होते हुए कहा।
” अरे वाह ये तो बहुत अच्छी बात है तुम्हारा कबसे मन था कही घूमने का चलो अच्छा है अब मौका आ ही गया !” वैशाली उसकी खुशी मे खुश होते हुए बोली।
” हाँ दीदी उन्होंने बहुत मुश्किलों से ये पैसा इकट्ठा किया होगा हम जानते है बच्चे भी खुश है बहुत !” आरती बोली।
ये है आरती और वैशाली कहने को दोनो का कोई रिश्ता नही बस दोनो पड़ोसन है पर वैशाली बड़ी है इसलिए आरती उसे दीदी बोलती है । आरती और राजीव ने आज से आठ साल् पहले प्रेम विवाह किया था आरती एक अनाथ लड़की है जबकि राजीव एक अच्छे खासे नामी व्यपारी का बेटा जिसे आरती से शादी करने पर उसके घर वालों ने बेदखल कर दिया था तब अपने घर से दूर यहां राजीव ने किराये का घर और दुकान ले अपनी ग्रहस्थी बसाई थी। चुंकि जल्दी ही वो पिता के व्यापार मे लग गया था इसलिए पढ़ा लिखा ज्यादा था नही जो नौकरी करता बस अपने बैंक मे जमा पैसे ही उसके थे जिन्हे उसने दुकान मे लगाए । पड़ोसी होने के नाते वैशाली और आरती तथा राजीव और वैशाली के पति अरुण की आपस मे अच्छी दोस्ती हो गई थी। आरती वैशाली को दीदी और अरुण को जीजाजी बोलती थी।
थोड़ी देर बाद आरती बच्चो को लेने स्कूल चली गई। और वैशाली काम मे लग गई। आरती नैनीताल की तैयारी करने मे लगी थी। बच्चो की गर्मियों की छुट्टियां भी पड़ गई थी । पंद्रह दिन बाद की टिकट थी। सब कुछ कितना अच्छा था वैशाली भी आरती के लिए खुश थी क्योकि जबसे शादी हुई तबसे अपने मन की तो कुछ कर ही नही पाई आरती राजीव बस इतना कमा लेता था की किसी तरह परिवार का खर्च चल जाता था फिर कैसे सिमित कमाई मे वो अपने शौक पूरे करते। लेकिन आरती ने कभी इसकी शिकायत भी नही की क्योकि वो भी जानती थी राजीव उसके लिए सारे ऐशो आराम ठुकरा कर आया हैं।
सब् कुछ सही चल रहा था कि नैनीताल जाने से एक हफ्ते पहले नियति ने ऐसा खेल खेला कि आरती का घूमने का सपना ही नही टूटा बल्कि उसकी तो जिंदगी लुट गई। राजीव सुबह अपनी दुकान के लिए दूध लेने जाता था अपनी स्कूटी से आज जब वो दूध लेकर लौट रहा था तो पीछे से किसी अज्ञात वाहन ने उसकी स्कूटी को टक्कर मार दी । टक्कर इतनी जोरदार थी कि राजीव कई फ़ीट दूर जा कर गिरा और मौक़े पर ही दम तोड़ दिया किसी राहगीर द्वारा पुलिस को खबर की गई और राजीव के मोबाइल मे मिले नंबर से आरती के पास खबर आई चीख पुकार मच गई उसके घर । वैशाली क्योकि बिल्कुल पड़ोस मे रहती थी तो वो और अरुण भागे गये ये देखने की माजरा क्या है और वहाँ जाकर पता लगा आरती का सब लुट गया ।
” दीदी वो चले गये हमें छोड़कर !” आरती वैशाली को देखते ही रोते हुए उससे लिपट गई। बेचारे मासूम बच्चे मा को रोता देख रो रहे थे। अरुण कुछ पड़ोसियों को लेकर अस्पताल की कार्यवाही पूरी करने निकल गया। जो घर कल तक आबाद था वो बर्बाद हो गया। कल तक जिस आरती के चेहरे पर नैनीताल जाने की खुशी थी आज वैधव्य के गम की परछाई थी।
दोपहर तक राजीव का पार्थिव शरीर घर वालों को सौंप दिया गया सब तैयारी पड़ोसियों ने ही की आरती के कहने पर राजीव के घर वालों को भी सूचित किया गया। वो आये भी अंतिम संस्कार मे पर उन्हे अपनी बहू और पोते पोती से कोई सरोकार नही था लिहाजा अंतिम संस्कार की रस्म खत्म होते ही वो वापिस लौट गये। अब आरती के पास बस वैशाली और कुछ पड़ोसी ही थे उसका दर्द बांटने को।
” भैया ये टिकट कैंसिल करवा दीजिये !” आरती अंदर से नैनीताल के टिकट लेकर आई और अरुण को देते हुए बोली। फिर एक दम पछाड़ खाकर गिर गई और फूट फूट कर रो दी।
” नियति ने क्या खेल खेला है बेचारी के साथ पहली बार एक छोटी सी खुशी मिल रही थी पर वो मिलने से पहले ही नियति ने जिंदगी भर का दर्द दे दिया !” वैशाली उसे संभालते हुए बोली।
रिश्तेदार कोई था नही पड़ोसी भी कुछ दिन आये फिर अपने अपने कामो मे लग गये एक वैशाली ही थी जो रोज आरती का गम बांटने आ जाती और थोड़ा बहुत उसे कुछ खिला जाती । राजीव को गये एक हफ्ता बीत गया था। सब काम जल्दी ही निपटा दिये गये थे उसके।
” अरुण जल्दी से दूध ला दो आपका चाय नाश्ता बना मुझे आरती के घर जाना है !” एक सुबह वैशाली पति से बोली।
अरुण बाइक ले दूध लेने आया उसे दूर से ही राजीव की दुकान खुली दिखी वो हैरान रह गया पास आने पर देखा तो आरती दुकान की सफाई कर रही थी।
” आरती तुम यहाँ क्या कर रही हो ?” अरुण ने पूछा!
” जीजाजी दुकान की सफाई कर रही हूँ आज से ये दुकान मैं ही चलाऊंगी !” उदास आरती बोली।
” पर आरती अभी तो राजीव को गये एक हफ्ता ही हुआ है इतनी क्या जल्दी है तुम खुद इतना दुखी हो ऐसे मे दुकान कैसे चलाओगी।” अरुण बोला।
” जीजाजी दुख तो जिंदगी भर का है । नियति अपना खेल खेलकर निकल गई जाने वाला चला गया अब मुझे उसको नही जो है उन्हे देखना है अपने बच्चो की परवरिश करनी है एक माँ के साथ बाप बनकर भी तो दुकान तो खोलनी होगी ना । जुड़ा हुआ पैसा तो है नही जिससे महीनों खाया जा सके । नैनीताल को रखा पैसा पहले ही खर्च हो गया। इसलिए मैने सोचा दुकान खोल ही लूं अब घर का दुकान का किराया भी देना है फिर दुकान मे रखा सामान भी खराब हो जायेगा !” आरती बोली।
” आरती तुम धन्य हो सच मे अपना गुम भूल अपने बच्चो की सोचना एक माँ ही ये त्याग कर सकती है। इस बड़े भाई के लिए कोई काम हो तो बता दो मुझे खुशी होगी !” नम आँखों से अरुण बोला।
” आपने ओर दीदी ने जितना साथ दिया वो ही इतना ज्यादा है ओर क्या कहूं आप तो सगे से बढ़कर है हमारे लिए बस अपनी इस छोटी बहन के लिए दुआ कीजियेगा नियति ने जो उसके सामने परीक्षा की घड़ी लाई है उसमे वो पास हो जाये और अपने बच्चो की बेहतर परवरिश कर सके !” आरती बोली।
अरुण ने उससे दूध के साथ और भी काफी सामान खरीद लिया क्योकि वो एक स्वाभिमानी माँ की मदद करना चाहता था सामान ले आरती के सिर पर आशीर्वाद का हाथ रख नम आँखों से अरुण घर को हो लिया ” धन्य है मेरे भारत की माँ जो खुद का गम भुला अपने बच्चो का सोच रही !” अरुण के मुंह से निकला।
घर आकर उसने वैशाली को सब बताया क्योकि वैशाली और अरुण के बच्चे बाहर रहकर पढ़ रहे थे तो वैशाली ने आरती से अपने बच्चो को उसके घर छोड़ जाने को कहा जिससे उनकी देखभाल मे कोई कमी ना आये। काफी ना नुकुर के बाद आरती इसके लिए तैयार हुई। अब हर सुबह आरती निकल जाती है नियति और किस्मत से दो दो हाथ करने क्योकि वो एक माँ है।
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल
( स्वरचित )
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