ढलती सांझ – नीलम शर्मा : Moral Stories in Hindi

रिया मेरा टिफिन तैयार हो तो जल्दी दो मुझे ऑफिस के लिए देर हो रही है। रिया…क्या आज भी आप पापा से मिले बिना ही ऑफिस चले जाओगे। वह आपके पापा हैं, अगर उन्होंने आपको कुछ कह भी दिया तो क्या हुआ। लेकिन रवि रिया की बात का कुछ भी जवाब दिए बिना चुपचाप घर से निकल गया। 

राधा जी भी बेटे को जाते हुए देख रही थी। उनकी आंखों में आंसू का धुंधलका छा गया। आज चार दिन हो गए थे रवि को अपने पापा देवेश जी से बात किए हुए।

राधा जी को रवि का बचपन याद आने लगा। कितनी मन्नत और दुआओं से शादी के दस साल बाद उन्हें ईश्वर ने माता-पिता बनने की खुशी दी थी। देवेश जी और राधा जी को तो जैसे कोई खिलौना मिल गया था। उन्हें उसके साथ हंसते-खेलते समय का पता ही ना चलता। रवि का पहले स्कूल फिर कॉलेज यूं ही दिन बीत रहे थे। रवि बहुत समझदार था। ना कभी और बच्चों की तरह किसी बात की जिद करता, ना कभी अपनी मम्मी-पापा की कही कोई बात टालता। 

वह उनका बहुत सम्मान करता था। देवेश जी भी उसे बहुत प्यार करते थे। लेकिन उन्हें गुस्सा बहुत आता था जो जितनी जल्दी आता था उतनी ही जल्दी उतर भी जाता था। वे गुस्से में कुछ भी बोल जाते थे, जिसके लिये उन्हें बाद में पछतावा भी होता था। इतनी उम्र होने के बाद भी वे अपने स्वभाव में बदलाव नहीं ला सके थे।

यही तो हुआ था चार दिन पहले, जब रवि अपने दोस्तों के साथ घर आया था। देवेश जी उस समय आराम कर रहे थे। रवि और उसके दोस्तों के जोर-जोर से हंसने बोलने से उनकी नींद टूट गई। गुस्से में बाहर आकर उन्होंने रवि और उसके दोस्तों को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया। रवि के दोस्त बोले जब तुम्हारे घर वालों को पसंद नहीं था, तो हमारा अपमान करने के लिए तुम क्यों लाए। हम कहीं बाहर मिल लेते। आज रवि को देवेश जी पर बहुत गुस्सा आया। और इसी वजह से चार दिन से उसने अपने पापा से बात नहीं की।

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राधा जी अपने आंसू पोंछ कमरे में गई तो देखा देवेश जी उनका इंतजार कर रहे थे। बहुत बेचारगी से उन्होंने राधा जी की तरफ देखा। रवि आज भी मुझसे मिले बिना ही ऑफिस चला गया, वे बुदबुदाए। राधा क्या बच्चे बड़े हो जाते हैं तो मां-बाप और उनके रिश्ते का स्वरूप भी बदल जाता है? मैं मानता हूं कि मुझसे गलती हुई है। मैं उससे और उसके दोस्तों से माफी मांग लूंगा। पर मैं इस उम्र में अपने बेटे की बेरुखी नहीं झेल सकता, वे फफककर रो पड़े। 

राधाजी ने उन्हें समझाया कि आप क्या सोचते हैं, आपका बेटा आपसे ज्यादा दिन बात किए बिना रह सकता है। देखना वह शाम को आपसे आकर जरूर बात करेगा। राधा जी ने अपने मन में सोच लिया था कि वें शाम को रवि से बात करेंगी। 

शाम को रवि के ऑफिस से आने के बाद वे सरसों का तेल लेकर रवि के पास गयी। बेटा बहुत दिन हो गए ला तेरे सिर में तेल लगा दूं। तेल लगाते-लगाते राधा जी रवि से बोली बेटा देख मैं मानती हूँ कि तेरे पापा की गलती है। जिसका उन्हें पछतावा भी है। वे तेरे दोस्तों तक से माफी माँगने को तैयार हैं। पर क्या तू उसके बाद अपने आप से नजरें मिला पाएगा। हम दोनों तो अस्सी (उम्र) पार कर चुके हैं। हमारी तो ढलती सांझ है बेटा। पता नहीं कब हमारा साथ छूट जाए। तब तुम्हें कोई कुछ कहने वाला नहीं रहेगा। ना सही, ना गलत। तब तुम इसी डांट-फटकार को भी तरसोगे बेटा। 

रवि जो अब तक चुप बैठा था, अपनी मां की गोद में सिर रखकर रोने लगा। क्योंकि चार दिन से वह भी अंदर ही अंदर बहुत परेशान और दुखी था। राधा जी ने उसे अपनी छाती से लगाया और बोली जा बेटा, अपने पापा के पास जा। रवि भाग कर अपने पापा के पास गया और उनसे लिपट गया। देवेश जी ने उसके सिर पर हाथ फेरा।

और बोले बेटा तू मुझसे कभी इस तरह बोलना मत छोड़ना। मैं इस उम्र में ही सही अपनी इस गंदी आदत को बदलने की पूरी कोशिश करूँगा। नहीं पापा आप जैसे हैं वैसे ही मेरे लिए अनमोल हैं। अगले दिन रवि और उसके दोस्तों की महफिल में देवेश जी भी मौजूद थे। और सबसे तेज ठहाकों की आवाज उन्हीं की थी। रसोई में चाय-नाश्ते की तैयारी करती सास-बहू भी बहुत खुश थी।क्योंकि घर की बोझिलता आज ठहाकों में बदल गई थी।

नीलम शर्मा

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