ढलती सांझ – रंजीता पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

हेलो ,हेलो कनक ,बोलो  कुणाल ,अब किस लिए कॉल किया है? कनक  दो दिन बाद हमारा तलाक हो जाएगा । हमको पता है कुणाल ,मै टाइम से पहुंच जाऊंगी । नहीं नहीं मै कह रहा था क्या कल का दिन हम दोनो एक साथ गुजार सकते है? कनक ने बोला क्यों? किस लिए? वो बस ऐसे ही,ठीक है देखूंगी ।बोल के कनक ने फोन रख दिया ।

कुणाल ने ऑफिस से छुट्टी ले लिया , और कनक के आने का इंतजार करने लगा । कनक ने सोचा नहीं जायेगी ।लेकिन जैसे जैसे दिन बीत रहा था ,उनका मन बहुत बेचैन होने लगा ,ना चाहते हुए भी वो कुणाल से मिलने चली गई । 

कुणाल ,कनक को देखते ही बहुत खुश हुआ । बोला थैंक्स कनक मै सुबह से ही तुम्हारा इंतजार कर रहा था ।मुझे विश्वास था की तुम जरूर आओगी। कनक की आंखों में आंसू थे ।उसने मन ही मन सोचा ,जितने खुश आज हो उतना अगर पहले हुए होते तो, ये दिन नहीं देखना पड़ता मुझे ।

कनक कहा खो गई । कही नहीं । बैठो कनक । कनक बैठ गई । कुणाल उसका हाथ अपने हाथों में  ले के उसके पास बैठ गया । कनक बहुत ही भावुक हो गई । ओर कुणाल का हाथ जोर से पकड़ लिया ।  कनक ने बोला ,तुम अपना ध्यान नहीं रखते क्या? देखो कितने दुबले हो गए हो? बाल भी नहीं कटवाया?

क्या हो गया है? पहले तो पूरे हीरो बन के रहते थे, कुणाल हसने लगा, चेहरे पे हंसी और आंखों में आंसू था । कनक ने कुणाल से  हाथ छुड़ाते हुए बोला और कुछ बोलना है कुणाल तो बोलो ,नहीं तो मै घर जाऊ। नहीं रुको कनक मै तुमको घर छोड़ दूंगा । कनक मन ही मन सोचती की काश ये “ढलती सांझ” यही रुक जाती । कुणाल की ये बाते खत्म ना होती । काश,,,,

रुको कुणाल मै खाना बना देती हु तुम्हारे लिए ,चलो मै भी तुम्हारी मदद करता हूं। कनक रसोई में गई। रसोई देख दंग रह गई । चारों तरफ बिखरे बर्तन , पूरे ।गैस चूल्हे पर गिरी चाय ,ये सब देख कनक ने सोचा मै कितने अच्छे से रसोई रखती थी । और मेरे जाते ही क्या हाल हो गया। कनक ने पहले सफाई किया ,रोटी सब्जी बनाया ।

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कुणाल भी उसके साथ ही था । और पुरानी प्यार भरी बाते कर रहा  था ! कनक को बहुत अच्छा लग रहा था । “सांझ ढल”  गई. और कनक के प्यार के चंद पल भी खत्म होने वाले थे । कनक की नजर घड़ी पर पड़ी । ओह दस बज गए। कुणाल तुम खाना खा लेना मुझे घर जाना चाहिए । रुको तुम भी खा लो । नहीं कुणाल मै बच्चों के बिना खाना नहीं खाती । आज खा लो मेरे साथ कुणाल ने धीरे से बोला । कनक अब बर्दास्त नहीं कर पाई बोली नहीं कुणाल । अब नहीं ।।।।।

दस सालों तक मै तुम्हारे साथ ही खाना चाहती थी ,लेकिन तुम नहीं खाना चाहते थे तुमको अपने दोस्तों के साथ पीने से ही  फुर्सत नहीं थी ,। दस साल मैने तुम्हारे कितना ख्याल रखा ,लेकिन तुमने मेरा कभी ख़्याल नहीं रखा । आज तुम इतने गंदे घर में रह रहे हो? कैसे कुणाल कैसे?

पिछले दस सालों   घर  में थोड़ी भी गंदगी तुम नहीं देख सकते थे ,कई बार सिर्फ  सफाई के लिए  ,तुमने मुझे कितना बुरा  भला बोला ,याद करो कुणाल । कुणाल बोला मुझे माफ कर दो ,नहीं कुणाल मै नहीं कर सकती । आज हमारी जिंदगी की आखिरी सांझ है । इस “ढलती सांझ “के साथ मै अपनी  रोती बिलखती जिंदगी भी खतम करना चाहती हूं। 

मै अपनी जिंदगी में नया सवेरा  चाहती हूं।

 ऐसे पति के होने का क्या फायदा ,जो अपनी पत्नी का सम्मान ना करे,उसपे बार बार हाथ उठाए,अपने बच्चों की जरूरत ना पूरी करे,इससे अच्छा अलग ही हो जाए ।कनक अपने घर चली गई । और कुणाल से तलाक ले लिया। अब वो अपने बच्चों के साथ खुश थी ।

 

रंजीता पाण्डेय

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