ढलती सांझ – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi

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पार्थ के जीवन की ढलती सांझ इतनी खुशनुमा और प्यारी होगी उसने सोंचा भी नहीं था।  उसे तो लगता था जब यौवन में  कोई सुख नहीं मिला तो  सांझ तो सन्नाटे और वीरानी का पर्याय होगी ही। अचानक कुछ ऐसा हुआ कि उसका पूरा जीवन ही बदल गया।‌

विवाह की शहनाइयों की गूॅज धीमी होने के पहले ही गाण्डीव के आगमन की आहट सुनकर पार्थ से अधिक अम्मा और बाबूजी खुशी से बावले होने लगे – ” पार्थ के जन्म के इतने वर्षों बाद यह खुशी मेरे घर पर दस्तक दे रही है।” अम्मा ने खबर सुनने के बाद मानवी पर लाड़ भरे चुम्बनों की बरसात कर दी। 

” समझ नहीं आ रहा कि इतनी बड़ी खुशखबरी देने के लिये तुझे क्या दूॅ? अपनी सबसे मूल्यवान वस्तु पार्थ तो तुझे पहले ही दे चुकी हूॅ।”

अपने उत्साह में अम्मा ने मानवी के चेहरे पर अधिक ध्यान नहीं दिया लेकिन पार्थ सोंच रहा था कि ऐसा न हो कि मानवी अम्मा से कुछ ऐसा कह दे कि अम्मा और बाबूजी का दिल टूट जाये। 

उसने आगे बढ़कर अम्मा से कहा – ” अम्मा, मानवी थकी हुई, उसे आराम करने के लिये अपने कमरे में जाने दो।”

” हॉ, ले जाओ। मैं तो खुशी के कारण भूल ही गई थी।”

कमरे में आकर मानवी पार्थ पर बरस पड़ीं – ” तुम्हें आते ही ढिंढोरा पीटने की क्या जरूरत थी। मुझे अभी इतनी जल्दी यह बच्चा नहीं चाहिये। मेरी सारी जिन्दगी, खुशियॉ, आजादी इस बच्चे के कारण बरबाद हो जायेंगी।”

” कैसी बातें करती हो मानवी? बच्चे के आने से तो दाम्पत्य सम्बन्ध और अधिक मजबूत होते हैं। वैसे मैं भी अभी बच्चे के लिये तैयार नहीं था लेकिन यदि ईश्वर ने हमारी झोली में यह खुशी डालने का निर्णय कर ही लिया है तो हमें ईश्वर के इस वरदान का प्रसन्नता पूर्वक स्वागत करना चाहिये। क्या फर्क पड़ता है थोड़ा जल्दी ही सही। देखो, अम्मा और बाबूजी कितने खुश हैं।”

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” अभी हमारी शादी के सिर्फ पॉच महीने हुये हैं। सोंचा था कि खूब घूमूंगी – फिरूंगी, अपने सारे अरमान पूरे करूॅगी लेकिन तुमने इस मुसीबत में डाल दिया। तुम्हारे लिये कहना आसान है लेकिन भुगतना तो मुझे पड़ेगा। पूरे नौ महीने इस अनावश्यक बोझ को ढोना पड़ेगा। नहीं…मुझे बच्चे अच्छे नहीं लगते। तुम डॉक्टर से बात करो, मैं इसे हटा दूॅगी।”

बड़ी मुश्किल से पार्थ उसे मना पाया – ” तुम चिन्ता मत करो। बस… थोड़े दिनों की बात है, आसानी से कट जायेंगे। तुम्हारी आजादी में कोई बाधा नहीं आयेगी। हम लोग तुम्हारा और बच्चे का पूरा ध्यान रखेंगे।  अम्मा और बाबूजी के सामने कुछ भी ऐसा अशुभ मत कहना।”

” ठीक है, अगर तुम चाहते हो कि मैं इस‌ बच्चे को जन्म दूॅ तो तुम मेरी हर बात मानोगे, मुझे कुछ भी करने से मत रोकना।‌ तुम लोगों को बहुत शौक है ना बच्चे का तो मैं पैदा करके तुम्हें दे दूॅगी। तुम्हीं लोग पालना।”

अम्मा मानवी को किसी नाजुक फूल की तरह सहलाती रहतीं। उसका सारा काम अपने हाथों से करतीं। घर में पूरे समय काम के लिये एक बाई भी रख ली। पार्थ भी उसका पूरा ख्याल रखता। 

विवाह की खुमारी उतरते ही पार्थ के सामने मानवी की असलियत आने लगी थी। कभी कभी तो पार्थ को लगता कि मानवी के अहंकार और जिद के साथ पूरा जीवन कैसे बितायेगा लेकिन उसके मन में आशा और उम्मीद के दिये जल उठते कि सन्तान का मोह और दायित्व मानवी में स्वत: ही परिवर्तन ला देगा।

मानवी अक्सर अपने कोख में पलते उस पुष्प को कोसती रहती  – ” जाने कब इस मुसीबत से छुटकारा मिलेगा।” पार्थ का मन करता कि मानवी से आने वाले बच्चे के बारे में ढेरों बातें करे, उसके उभरे उदर को सहलाकर अपने बच्चे को महसूस करे लेकिन मानवी उसे अपने आप को छूने भी नहीं देती – 

” तुम्हारे कारण ही मुझे इस मुसीबत को सहन करना पड़ रहा है। तुम तो बहुत खुश होगे मेरी स्वतन्त्रता छीनकर। अपना बेडौल शरीर देखकर चिढ़ होती है मुझे।”

कभी मानवी चिड़चिड़ाहट में अम्मा के सामने कुछ अनर्गल कह देती तो अम्मा पार्थ को ही समझाते हुये कहतीं- ” हर स्त्री के जीवन में यह समय बहुत कठिन होता है। एक चंचल बहती नदी सी लड़की पर पहले विवाह फिर संतान का दायित्व आ गया तो चिड़चिड़ाहट, गुस्सा स्वाभाविक है। इस समय मनोदशा बदलती रहती है। चिन्ता मत करो, बच्चे के बाद सब ठीक हो जायेगा।”

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धीरे धीरे वह समय भी आ गया जब मानवी ने एक सुंदर स्वस्थ पुत्र को जन्म दिया। पूरे परिवार में खुशी की लहर दौड़ गई। मानवी भी खुश थी कि उसे अनचाहे बोझ से छुटकारा मिल गया।

बच्चे के जन्म नक्षत्रों के अनुसार उसके नाम का अक्षर 

” ग” आया तो बाबूजी ने उसका नाम ” गाण्डीव” रख दिया।

गाण्डीव के सवा महीने का होते ही मानवी ने उसे स्तनपान कराने से मना कर दिया। अम्मा के मना करने के बाद भी पार्थ ने गाण्डीव के दिन भर के कामों के लिये आया रख ली। रात में उसे अम्मा अपने पास सुलाया करतीं।धीरे धीरे अम्मा पर भी मानवी की असलियत खुलने लगी‌।

जब दो महीने के गाण्डीव को अम्मा और आया के सहारे छोड़ कर पहली बार मानवी घर से बाहर जाने लगी तो अम्मा ने टोंक दिया – ” किसी काम से जा रही हो क्या? अभी तुम्हारा शरीर भी कच्चा है और गाण्डीव भी बहुत छोटा है। इतना छोटा बच्चा बिना मॉ के कैसे रहेगा?”

” आप लोगों को ही बहुत शौक था बच्चे का तो मैंने पैदा करके दे दिया है। अब आप लोग ही पालिये, मुझे नहीं अच्छे लगते बच्चे – कच्चे।”

बच्चों में ही अपनी खुशी ढूंढने वाली अम्मा को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई मॉ अपने दुधमुंहे बच्चे को छोड़कर ऐसे कैसे जा सकती है? वह अवाक सी उसे देखती ही रह गई।

बोतल के दूध, आया और अम्मा के सहारे गाण्डीव पलने लगा। मानवी को घर,परिवार, बच्चे से कोई मतलब नहीं रह गया। रोज वह तैयार होकर घर से निकल जाती। कहॉ जाती है, किसके साथ जाती है – किसी को बताने की कोई जरूरत नहीं थी।

पार्थ का अच्छा खासा वेतन मानवी के शौक, इच्छायें और अरमानों के लिये कम पड़ने लगा – ” जब पत्नी की इच्छायें और शौक पूरी करने लायक कमाते नहीं थे तो शादी करने की क्या जरूरत थी? पत्नी क्या केवल भोगने और बच्चा पैदा करने के लिये ही है?”

” किस चीज की कमी है तुम्हें। पूरा वेतन तो तुम खर्चा कर डालती हो, उसके बाद भी सन्तुष्ट नहीं होती तो मैं क्या करूॅ? तुम्हारे आने के बाद अपने और घर वालों के लिये एक रुमाल तक नहीं खरीद पाया। गाण्डीव का भी सारा खर्चा पापा ही करते हैं।”

” इतने थोड़े से पैसों में मेरा गुजारा नहीं होता।”

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घर में एक तनाव और चुप्पी जैसा वातावरण छा गया। पार्थ ने मानवी के मम्मी पापा से भी इस संबंध में बात की तो उन्होंने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया – ” यह तुम्हारी और तुम्हारे घर की समस्या है, हम इसमें क्या कर सकते हैं? वह तो न यहॉ आती है और न फोन पर बात करती है। जिद्दी तो वह थी ही, सोंचा था कि जिम्मेदारी पड़ेगी तो परिवर्तन आ जायेगा। अब उसे सही रास्ते पर लाना तुम्हारी जिम्मेदारी है।”

” हम लोग तो खुद बहुत परेशान हैं, कुछ गलत सही हो जाये तो हमें कुछ मत कहियेगा।”

अम्मा और पार्थ ने मानवी को प्यार से, दोनों परिवारों की इज्जत और गाण्डीव के प्रति ममता का वास्ता देकर समझाने का बहुत प्रयत्न किया लेकिन मानवी को न मानना था और न ही वह मानी बल्कि अब तो उसने रातों को भी देर से आना शुरू कर दिया।

फिर आया वह मनहूस दिन जब मानवी रात भर घर नहीं आई, सबको चिन्ता हो गई क्योंकि मानवी कभी रात में घर से बाहर नहीं रही थी। पार्थ ने मानवी के मायके में फोन करके बताया – ” हम लोगों को उसके दोस्तों के बारे में कुछ पता नहीं है, कहॉ जाकर ढूंढूं?”

” देख लो, शायद सुबह आ जाये।” मानवी के पापा ने कहकर फोन रख दिया लेकिन पार्थ के घर में उस रात किसी ने पलक भी नहीं झपकाई।

दूसरा पूरा दिन बीत गया तो पार्थ ने मानवी के पापा के साथ रिपोर्ट लिखाई। पहले तो पार्थ को ही संदेह की दृष्टि से देखा गया लेकिन मानवी के पापा के कहने और पार्थ के ऊॅचे पद के कारण रिपोर्ट तो लिख ली गई साथ ही सब-इंस्पेक्टर ने पार्थ को ऊपर से नीचे तक देखते हुये कहा – ” क्या बात है साहब, लगता है बीबी को सन्तुष्ट नहीं कर पाये तो भाग गई किसी के साथ।”

पार्थ तिलमिला कर रह गया लेकिन चुप रह गया। धीरे धीरे पॉच साल बीत गये। गाण्डीव को बता दिया गया कि उसे जन्म देते समय उसकी मम्मी की मृत्यु हो गई थी। 

ऑफिस से आने के बाद मम्मी पापा के साथ पार्थ भी टेलीविजन पर समाचार देख रहा था कि अचानक मादक वस्तुओं के विक्रेता का एक गिरोह जो हैदराबाद में पकड़ा गया था दिखाया जाने लगा। हालांकि सभी के मुॅह पर कपड़ा बंधा था लेकिन एक लड़की को देखकर अम्मा के साथ पार्थ भी चौंक पड़ा – ” पार्थ, देखो बेटा। यह लड़की मानवी जैसी लग रही है।”

पार्थ भी पहचान गया – ” लगता तो है, वह देखो उसकी बॉह पर जले का निशान।”

पुलिस ऑफिसर सभी अपराधियों के नाम बता रहे थे। जब मानवी का नाम उन्होंने पल्लवी बताया तो सभी समझ गये कि अपराध की दुनिया में कदम रखकर मानवी ने अपना नाम भी बदल लिया था।

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अम्मा बाबूजी के जोर देने और अपने दिल के हाथों विवश होकर मानवी के पापा के साथ हैदराबाद गया लेकिन मानवी ने मिलने से इंकार करते हुये कहला दिया कि उसका इस दुनिया में कोई नहीं है।

मानवी और उसके साथियों को दस – दस साल की सजा हो गई लेकिन इस सजा के दो साल बाद ही एक खबर ने पूरे परिवार को स्तब्ध कर दिया। पल्लवी नाम की अपराधी महिला ने जेल के बाथरूम में अपनी साड़ी से फॉसी लगाकर आत्महत्या कर ली।

पार्थ का मन बुरी तरह से चकनाचूर हो गया। उसे शादी, प्यार, दाम्पत्य आदि शब्दों तक से नफरत हो गई। अम्मा बाबू, मानवी के मम्मी पापा ने भी विवाह के लिये बहुत दबाव डाला लेकिन पार्थ ने किसी की बात नहीं मानी।

गाण्डीव के दस साल के होते होते अम्मा और बाबूजी ने भी साथ छोड़ दिया। पार्थ की पूरी दुनिया गाण्डीव में सिमट गई।

गाण्डीव भी एम० बी० ए० करके मल्टीनेशनल कम्पनी में नौकरी के लिये चला गया। गाण्डीव जानता था कि उसके जाने के बाद उसके पापा कितने व्याकुल रहा करेंगे। उसके बचपन की आया मीता ही उसके घर के सारे काम करती थी। गाण्डीव बड़ा हो गया तो मीता को अम्मा ने जाने नहीं दिया। कुछ दिन तो पार्थ बहुत व्याकुल रहे फिर अपने मन को समझा लिया कि चिड़िया के बच्चों को उड़ान भरने के लिये घोंसला तो छोड़ना ही पड़ेगा।

गाण्डीव ने जब सहकर्मी वेदिका को पसंद किया तो पार्थ ने उन दोनों के विवाह में देर नहीं लगाई। वेदिका की मम्मी दिव्यता ने पति के निधन के बाद उन्हीं के ऑफिस में नौकरी करके अकेले ही बेटी को पाला था।

विवाह के बाद गाण्डीव और वेदिका जब वापस अपनी नौकरी के लिये जाने लगे तो उन्होंने पार्थ और दिव्यता से कहा – ” हम लोग दूसरे शहर में हैं लेकिन आप लोग इसी शहर में हैं। इसलिये एक दूसरे से मिलते रहियेगा, एक दूसरे के दुःख – सुख को देखते रहियेगा।”

पहले कुछ दिन तो संकोच में बीत गये लेकिन वेदिका के बहुत कहने पर दिव्यता का पार्थ के पास फोन आया और उसने रविवार के दिन पार्थ को लंच के लिये बुलाया। फिर तो बातों की ऐसी झड़ी लगी कि दोनों को लगा कि शायद वर्षों बाद उन्होंने किसी से इतनी और खुलकर बातें की हैं यहॉ तक दिव्यता ने उन्हें रात का खाना भी खिलाकर भेजा।

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चलने के पहले पार्थ ने दिव्यता से यह वादा ले लिया कि अगले रविवार को वह उनके घर आयेगी। फिर तो जैसे दोनों को रविवार की प्रतीक्षा रहने लगी। या तो पार्थ दिव्यता के घर चले जाते या दिव्यता पार्थ के घर चली जाती। दोनों ने ही अपना अतीत एक दूसरे के सामने खोलकर रख दिया। कभी कभी पार्थ मीता को भी दिव्यता के घर लिवा ले जाते। दोनों में बहुत अच्छी दोस्ती हो गई। कई बार पार्थ हॅसते हुये कह भी देता – ” आप मिलीं भी तो ढलती सॉझ में। काश! पहले मिलतीं।” 

” तो क्या हुआ, दोस्ती तो किसी भी उम्र में हो सकती है। उसके लिये ढलती सॉझ हो या सुनहरा प्रभात।”

एक दिन पार्थ रक्तचाप की दवा खाना भूल गया और दूसरे दिन जब उसकी तबियत बहुत खराब हो गई तो मीता ने घबराकर दिव्यता को फोन किया। दिव्यता तुरन्त आ गई और पार्थ को लेकर डॉक्टर के पास ले गई। डॉक्टर ने कहा कि पार्थ को कुछ दिन ऑफिस नहीं जाना है। यदि अच्छी तरह देखभाल न की गई तो अस्पताल में भर्ती करना पड़ेगा। 

दिव्यता ने भी ऑफिस से छुट्टी ले ली और पार्थ की देखभाल का जिम्मा ले लिया। पापा की खराब तबियत जानकर गाण्डीव और वेदिका भी भागे हुये आये। दिव्यता को पूरे मनोयोग से पार्थ की सेवा करते देखकर दोनों सन्तुष्ट हो गये। 

दोनों लौट तो गये लेकिन वेदिका के मन में एक अलग ही उथल पुथल मच गई थी। इस संबंध में उसने गाण्डीव से बात की – ” तुम्हारी बात सही है लेकिन इसके लिये दोनों में से कोई भी तैयार नहीं होगा। पापा दो साल बाद सेवानिवृत्त हो जायेंगे। कहेंगे कि ढलती सॉझ में यह उचित नहीं है।” 

” जिद, प्यार, नाराजगी जैसे भी हो, उन्हें समझाना तुम्हारा काम है और मम्मी को मेरा। मैं जानती हूॅ तुम्हारे पापा को समझाना तो फिर भी आसान है लेकिन मम्मी को समझा पाना तो आसमान से तारे तोड़ने जैसा कठिन है। हमें यह करना ही होगा गाण्डीव।”

होली के तीन दिन पहले दोनों छुट्टियों में घर आ गये। गाण्डीव अपने घर और वेदिका अपने घर चली गई। वेदिका की बात सुनकर एकदम से दिव्यता ने मना कर दिया – ” पागल हो क्या? जीवन की इस ढलती सॉझ में यह अच्छा लगेगा क्या? जब समय था तब तो किया नहीं और अब……।”

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” हॉ मम्मी, जानती हूॅ कि आपने मेरी अच्छी परवरिश के लिये पापा के बाद किसी को जीवन में आने नहीं दिया लेकिन अब तो यह कारण खतम हो गया है। आप दोनों का साथ हो जायेगा तो हम भी निश्चिंत रहेंगे। छुट्टियों में आने पर गाण्डीव को अपने घर और मुझे अपने घर भागना नहीं पड़ेगा‌।”

” लोग क्या कहेंगे? जिद मत करो, जैसा चल रहा है, चलने दो।”

आखिर दोनों बच्चों की जिद के आगे पार्थ और दिव्यता तो झुकना पड़ा। उन दोनों की स्वीकृति मिलते ही दोनों बच्चों ने आर्यसमाज मंदिर में जाकर अपने अपने मम्मी पापा की शादी करवा दी।

पार्थ के बगल में पत्नी रूप में दिव्यता को देखकर गाण्डीव भावुक हो उठा – बचपन से दूसरे बच्चों के मम्मी पापा को देखकर सोंचा करता था कि काश! मेरे मम्मी पापा भी युगल रूप में होते। आज मेरी वह अभिलाषा पूर्ण हो गई है। “

वेदिका भी आकर पार्थ से लिपट गई – ” आप दोनों ने बहुत दुख उठाये हैं। पूरी जिन्दगी तड़प तड़प कर नीरवता और सन्नाटे के साथ बिताई है। ईश्वर आप दोनों को हमेशा खुश रखे।

दिव्यता के चेहरे पर दुल्हनों जैसी लाज की लाली बिखरी थी।

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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