देवकन्या (भाग-9) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

मृगनयनी “

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मदनिका जैसे जैसे वस्त्र हटाती जा रही थी,

वैसे वैसे सौंदर्य बढता  जा रहा था ,जलराशी मे जैसे   चंद्रमा आज खुद उतर आया”””

कुवांरी  हमने अबतक आपसे सुन्दर युवती नही देखी, चपला

अमरा,की ओर उन्मुख होकर बोली””

वो रूपराशि  के चक्कर में,द्धार बंद करना  भूल गयी””

चंदन और सुन्दर गंध से मिश्रित लेप मदनिका  अम्बापाली के तन पर लगा रही थी”

उसके हाथ धीरे धीरे देह पर मचल रहे थे!

पानी की बूदें तन पर ठहर कर ऐसी चमक रही थी जैसे हीरे की चमक को अमरा के तन पर फैला दिया गया हो””

अचानक  हाथ फिसला “”

आह ,मदनिका  बस “””

क्षमा कुंवारी  अंजाने”””

अमरा””” पुरूष की आवाज से चपला चौंकी,वो द्धार की ओर लपकी “”‘तभी कुणिक ने अंदर प्रवेश किया, वो भूल गया जनाना स्नानगार है””

कुवंर रूकिऐ”””

चपला रोक न पायी””कुणिक तेजी से अंदर आ गया “”

अमरा,  तुम ठीक  हो””

रूकों कुंवर बिना  मेरे आदेश के अंदर आना  सही नही था “

वो भी जब एक कुंवारी स्नान कर रही हो

चपला मुझे एकबार अममरा को देख लेने दो,जो भी सजा होगी ,भुगतान  कर लूंगा “””

एकांत””””मेरा आदेश है”

जैसी आपकी  इच्छा “”

धीरे धीरे चपला मदनिका के साथ स्नानगार से बाहर चली गयी!

कुणिक और अमरा के सिवा वहां कोई न बचा””

सामने सौंदर्य का जीता जागता परमात्मा द्धारा निर्मित जीवंत

रूप ,जो कामदेव को भी लुभा ले””स्वयं कुणिक कामदेव रूप”

 कुणिक “”, कुंवारी के नजदीक जलराशि मे उतर गया ,अमरा मृगनयनी के सामान उसकी और बढी और उससे लिपट गयी, ,

कुणिक पर जैसे कोई नशा चढ रहा  हो वो कोमल देह मे खोता जा रहा था “”

अचानक  से उसके चेहरे पर जल की बौंछार पडी उसने नेत्र खोलें,अमरा  जलक्रीडा मे मग्न अबोध बच्चों सी खिलखिला रही थी!!

अमरा  की मासूमियत  से देव, का मन भी बाल अवस्था  मे चला  गया,वो भूल गया की वो भटकने वाला  था”””

काफी समय तक जलक्रीडा करने के बाद दोनों थककर चूर हो गये,,,

अब  अमरा से खडा होते नही बन रहा था,,

कुणिक समझ चुका था की कुंवारी को गर्मी की अवश्यकता है”” वो कुंवारी  को,बाहों मे उठाकर कक्ष की ओर बढ  गया, उन दोनो के तन पर नाम मात्र  के वस्त्र थे!

कक्ष मे जाकर ताली बजाते ही मदनिका भाग कर अंदर आयी

कुंवारी के वस्त्र  बदल दो ,

जो आज्ञा  कुंवर”””

मदनिका धुले वस्त्र  के  साथ अंदर आयी,उसकी नजरें झुकी हुई थी”

मदनिका को देखकर हर्षदेव बाहर चला गया!

कुंवारी के तन को सुखाते हुऐ मदनिका सोच रही थी कही कुंवारी “””” नही नही कुंवर ऐसे नही है”””

वो सदाचारी है बस वो अमरा के प्रेम मे है,वो कुंवारी को पीडा नही पहुंचा सकते””

अमरा, पर नशा सा चढा था “

उसकी पलकें भारी थी!

कुंवारी एक बात पूछूं ,सखी समझकर जबाब देना “”

हा पूछो,

कुंवर ने आपके साथ”””‘

बहुत  मजा आया जलक्रीडा मे काश तू भी साथ होती””

अब मुझे सोने दे”””मै थक चुकी हूं”

कुंवारी सच मे आप इतनी सुंदर  है की बाहर निकलते ही सब आपकों नोचकर खा जाऐगे ,

आपके अंदर कस्तूरी विद्यमान है,आपको शायद पता  नही””

इस राज्य की सच्चाई””‘

लम्बी सांस भरकर बोली मदनिका “”” जिसे सुनने वाला वहां कोई न था!

शाम का समय ,गली और भवन की अट्टालिकाएं  रोशनी से जगमगा रही थी”””

दो राहगीर   आपस मे चर्चा कर रहे थे”””

सुना है पुरी के धनाढ्य साहूकार एकमत होकार  बाहर के व्यापारियों को आकर्षित करने के लिऐ उत्सव करवा रहै है””

हा मैने भी सुना है””दूसरा राहगीर  बोला””

उस उत्सव मे नर्तकी का रंगारंग प्रदार्शन भी होगा “””

वाह फिर तो मजा  आ जाऐगा,

एक युवा  राहगीर  उनके साथ शामिल होते हुऐ बोला “”

बस वज्जिसंघ मान जाऐ,,

उसी के लिऐ कल पूरे संघ की कार्मकारिणी के पदाधिकारियों को आंमत्रित  किया गया”””

अच्छा “””

और हा एक बात और सुनने मे आयी ,है की,देवी तिलोत्तमा ,का कार्यकाल पूरा हो चुका है ” “इसी उत्सव मे  जो युवती चयनित  होगी उसे ,ही नगरवधू  बनाया जाऐगा “””

कौन होगी वो सुन्दरी, अभी तो  देवी  तिलोत्तमा से सुंदर कोई भी युवती पुरी मे नही,है”””

श श श अभी ये खबर अंदुरूनी है””

एक बात और सुनने मे आयी है,कि कुछ घुसपैठिए  नगर मे वेश बदलकर कुछ  घुस आये है,,

सैनिक उन्हे ढूंढ रहे है”””

मुनादी करवा दी है,,संघ मंत्री ने””

ओह .

फिर तो सतर्क  रहना होगा “”

उनके साथ चल रहे युवक ने अपनी बात मिलायी””

अच्छा  भाई हम चलते है हमारा भवन आ गया”””

अरे हा,साहूकार अब कैसे है””‘

बस पहली सी ही स्थिति  है”””

रात्रि अधिक होने पर उस युवक ने भवन मे प्रवेश किया “

जो अभी बाहर वार्तालाप मे शामिल था!

मित्र कुणिक “””

यहां मुझे नाम से कौन पुकार सकता है””” “”

मै हर्षदेव —

श श श “”

अभी क्यूँ  आये”

पिता जी से मिले बहुत समय हो गया मित्र  कुणिक “”

किसी ने देखा तो नही,मित्र””

नही”””

आपकी मित्रता को नमन हर्षदेव, ,,पांच माह हो गये””

मुझे हर्षदेव  बने हुऐ, ,,बस कुछ समय और मै आपको आपका अधिकार देकर मगध चला जाऊंगा “””

मित्र कुणिक ,मैने झूठ बोलकर राजद्रोह किया है”””हर्षदेव  बोला “”

नही मित्र””””ऐसी बात न करो”

तुमने  मगध पर उपकार किया  है” इतिहास  मे तुम्हें  हमेशा सम्मान मिलेगा “” यहा संघ की प्रणाली  स्वस्थ्य नीति के विरूद्ध  है” मै” बहुत जल्दी सबकुछ बदल दूगां ,यहां की विलासता, नवयुवकों को भ्रमित कर रही है”

स्त्री”  शोषण का शिकार है,मत भूलों तुम्हारी मां को ये लोग अपने साथ जबरदस्ती ले गये, ,जिससे तुम्हारे पिता आज भी मरणसन्न अवस्था मे है”””अच्छा हुआ तुमने वो सब नही देखा,

न तुम्हे किसी ने यहां देखा””क्योकि तुम्हारा लालन पालन तो कौशल मे हुआ””

मित्र मै, तुम्हारे साथ हूं,,जब तक की यहां की व्यवस्था नीति में बदलाव न आ जाऐ,मै वापस जा रहा हूं “”

आंखों में  अश्रु भरकर हर्षदेव  वापस उसी ओर बढ गया जिस ओर से आया था! !

कुणिक हर्षदेव को जाते देखता रहा”””

कुणिक मुडा उसे  पर्दे के पीछे एक परछाई नजर आयी”””

उसने म्यान से तलवार  निकली,और एक झटके मे पर्दे के कितने टुकडे हो गये”””

वहां कोई न था”””

पर कुणिक समझ चुका था, यहां पर जो मौजूद था, उसे उसकी असलियत पता चल चुकी है की,वो हर्षदेव नही बल्कि हर्षदेव के वेश में मगध का युवराज कुणिक  है””

वो चौकन्ना हो गया हर उस स्थिति से लडने के लिऐ ,जो उसके सिर पर मंडरा रही थी!!!

नगर में उत्सव की तैयारी जोर शोर से चल रही थी””

नृत्य मे भाग्य आजमाने के लिऐ,कुंवारियों मे होड मची थी””एक से एक सुंदर  कन्याऐं परापंरिक बेशभूषा मे खुद को सजा रही थी!

वो कन्या खुद को सौभाग्य शाली समझेगी जिसे नगर मे सबसे ज्यादा सुंदर होने का सौभाग्य प्राप्त होगा!

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रीमा महेंद्र ठाकुर, वरिष्ठ लेखक “

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