प्रेमलाप शिक्षा”””
देवी आप अस्वस्थ है कक्ष मे चलकर वार्तालाप करते है,
जी””निरीहता से हर्षदेव की ओर देखा, अमरा ने””
चले “” अमरा को बाजुओं का सहारा देते हुऐ हर्षदेव बोला “
अमरा पर हर्षदेव का प्रभाव पडता जा रहा था “”
उसकी बलिष्ट भुजाऐं चौडा सीना, अमरा के ग्यारहवें बंसत की दहलीज पर रखते कदम “”
वो अपलक हर्षदेव ” को देखें जा रही थी! ,कुछ तो था जो उसके न चाहते हुऐ भी उसे हर्षदेव के नजदीक ले जा रही था””
कक्ष के अंदर पहुँच कर हर्षदेव ने अमरा, को शैय्या पर बैठा दिया, और ताली बजायी कुछ क्षण मे ही दो सेविकाएं उपस्थित हुई”””
आज्ञा तात्”
आज से कुंवारी की सेवा मे आप दोनो को नियुक्त किया जाता है””
जो आज्ञा, दोनों “””कुंवारी अमरा की ओर देखकर मुस्कुराई, ,
अमरा को आश्चर्य हुआ “””
अब कुंवारी के जलपान की व्यवस्था की जाऐ””
कुछ ही क्षण मे मेवा मिष्ठान की तश्तरी, अमरा के सामने उपस्थित थी”””अमरा को खुद की आंखों पर भरोसा न हुआ “”
वो दोनों सेविकाओं के जाते ही अमरा ने हर्षदेव से पूछा””
ये सब मेरे लिए है””
हा सब तुम्हारे लिऐ ही है””‘
ये दो सेविकाएं तो क्या ये समस्त गणराज्य तुम्हारा है “”
प्रिये””””
बाबा सच कहते है”””
क्या”””
की पुरी मे कदम रखते ही समय परिवर्तन हो जाऐगा “”
तुम्हारे लिए एक राज्य ही नही पूरा भारतवर्ष समार्पण कर दूंगा “” अमरा की आंखों मे झांककर बोला हर्षदेव “‘
कैसे”””
विस्मय से देखा अमरा ने”””
अभी छोडो””‘तुम्हारा नाम अमरा क्यूँ है””
बाबा कहते है मेरा जन्म आम वृक्ष के नीचे हुआ इसलिए “‘
घोर आश्चर्य “””
फिर आज से तुम मेरी देवकन्या “””
अमरा”””इसका आशय”””
मै ,तुम्हारा अनंगदेव, देव,तुम मेरी देवकन्या “””
अच्छा सुनों तुम्हें कुछ याद आया”
क्या”””
महामात्य “”” दिवाकर ने ,तुम्हारा यही नाम रखा था””
हा ,में सिर हिलाया ,,अमरा ने”””
चलो,वो सब छोडो””
अपने जितने स्वप्न है सब बताओं”””
पूरा कर सकोगें”””
असंम्भव भी नही होगा”””
मुझे नृत्य कला सीखना है, राजनीतिज्ञ बनना है,
भला वो क्यूँ “””
बस ऐसे ही”””
घुड़सवारी “”””हर्षदेव ने पूछा”
चोट लग गयी तो”””
मै हूं न नही लगने दूंगा, ,मेरी देवकन्या “”
अमरा के कपाल को चूमते हुए हर्षदेव बोला”””
आज आराम करों कल से शिक्षा का शुभांरभ होगा “”
हर्षदेव “ने प्रेम से अमरा को देखा””””
अब मुझे भी जाना होगा “”
कहां””””
राजसैनिक हूं,,
बाबा से आपने वादा किया है”””कि आप मेरा ख्याल रखेंगें”””
हा हा अच्छा “”
मेरा भी कुछ उत्तरदायित्व है जिसे पूरा करना है”””
मै रूठ जाऊंगी “”
नही प्रिय ऐसा कदापि नही करना “””
अभी जरूरी बात है ध्यान से सुनो”””
एक ताली बजाओगी तो आपकी सेवा मे एक सेवक उपस्थित होगा,,,दो ताली पर दो सेविकाएं,
और तीन पर””‘अमरा बीच मे बात काटकर बोली””
मै खुद आ जाऊंगा””‘हर्षदेव मुस्कराकर बोला””
फिर तो मै तीसरी ही बजाऊंगी”””
पर अभी नही,,,,अभी दो”
चलो अब बजाओं”””
अमरा के ताली बजाते ही दोनों सेविकाऐ उपस्थित हो गयी!
मै चलता हूं ये दोनों आप की दिनचार्य के सारे कार्य मे आपकी मदद करेगी””
ये सुनो””
हर्षदेव -पीछे मुडा””
आज से तुम मेरे देव”
अच्छा “””
भला वो क्यूं “
हर्षदेव कोई नाम है””
हा हा हा””
मुझे भी नही पसंद “
परन्तु तुम तो मेरे अनंगदेव हो”””
अनंगदेव का अर्थ समझती हो””
हा बाबा ने बताया, ,
क्या”
कामदेव रति पति,,जो तुम हो””
और तुम ,मेरी ,देवकन्या रति”””
हर्षदेव “बाहर जाता हुआ बोला”””
“
कुंवारी आदेश “”‘
देव के जाते ही एक सेविका बोली””
आप दोनों का परिचय”””
मै चपला, मगध से हूं,मुझे एक हजार मुद्रा मे खरीदा गया है ,मै आज से आपकी सेविका हूं, चपला चालीस उम्र के आसपास थी””
और मै मदनिका,,मै भी मगध से हूं पांच हजार कीमत मे मुझे खरीदा गया है””‘
आपकी कीमत इतनी ज्यादा क्यूँ, जब दोनों ही सेविका हो””
मै अभी सोलहवें बंसत के दहलीज पर हूं। जोर से हंसी मदनिका “””
ज्यादा दांत न निकाल, कुंवारी समझ नही पायेगी”””
तो तू समझा दे चपला, ,अपने रूप पर इतराती मदनिका बोली””
सखी जल रही हो”””
अरे जा री”””
आप दोनों लड रहे हो””
नही कुंवारी”””
इस नगर मे स्त्री” मूल्यवान है यूं समझिऐ यहां का वैभव और भव्यता ही स्त्री के कारण है””
मतलब “””
सब बताऊंगी,पहले आप स्नान कर ले “”
पहले बताओं बालहठ से बोली अमरा”
जोआज्ञा, कुवांरी”””हम तो आपकी दासी है”
बेबसी से बोली “चपला”””
अच्छा चलो ठीक है” उदास मत हो, हम आपके साथ चलते””है
धन्यवाद ,स्वामिनी”””
चपला ने अमरा का हाथ थाम लिया “”
चलना कहां है””
आपके कक्ष के बगल मे ही”””मदनिका दांत निकालकर बोली””
तो आप मार्गं बता दे मै खुद चली जाऊंगी””
आप रूष्ट है क्या हमसे””
नही मदनिके””
फिर”””
चलो””
इतने प्रश्न के उत्तर से बचने के लिऐ अमरा ने हांमी भर दी””
आगे चपला बीच में अमरा सबसे पीछे मदनिका चल रही थी,
मदनिका की नजर अमरा के जीर्ण शीर्ण वेशभूषा पर पडी, वो चौंक उठी”
उसने आगे चल रही चपला की ओर देखा”””
वो अपने ही धुन मे गर्दन नीचे किये चली जा रही थी!
मदनिका के मन में अमरा को जानने का कौतूहाल जाग उठा “”
कक्ष के बगल मे ही स्नानगार था””
अद्भुत,
,अमरा के मुहं से निकला शब्द सुनकर दोनों दासियां चौंक उठी””
स्नानगार एक बडे कक्ष मे निर्मित किया गया “
पानी से निकल रही भांप ,से केवडे की खूश्बू उड रही थी”””
अम्बापाली बच्चों की तरह भाप को हाथ से पकडने की कोशिश करने लगी””
तभी स्नानगार के बाहर कोलाहल सुनाई दिया””
शोर सुनकर चपला और मदनिका कटार निकाल कर अमरा की सुरक्षा मे खडी हो गयी!
कोई दौडता हुआ स्नानगार के दरवाजे पर रूका “”
कौन है वहां ,
मै प्रहरी”””
बाहर इतना शोर क्यूँ है””चपला ने चिल्लाकर पूछा “
भवन मे सर्प घुस गया, जो की बहुत विषैला है”
प्रहरी की बातें सुनकर मदनिका चौंक गयी,,उसका बदन कंपित सो उठा””””
मदनिका “””सर्प “
दरवाजे की ओर ऊंगली से इशारा किया मदनिका ने”””
अमरा का हाथ पकडकर ,चपला ने अपनी ओर खीचां और उसके सामने आकर खडी हो गयी””
काले रंग का विषधर दरवाजे से उतरकर स्नानगार की छोटी दीवार को पार कर जल मे उतर गया,
मदनिका बाहर खडी थर थर कांप रही थी””
जल में अबतक अमरा उतर चुकी थी”‘
मदनिका दरवाजा खोलों।
मदनिका ने दौडकर दरवाजा खोल दिया, वो वापस पलटी तो चौंक उठी””
अमरा मुट्ठी मे सर्प को जकडे , चपला को खुद के आगे से परे कर योद्धा की भांति दरवाजे की ओर बढ रही थी!!
उसके भीगें अधखुले वस्त्र उसके उसके तन से चिपककर उसके सौंदर्य को बढा रहे थे!!
अमरा ने सर्प को सरलता से झाडी की और फेक दिया वो वापस मुडी तो प्रहरी उसी की ओर ध्यान से देख रहा था, गजगमिनी की तरह उसकी चाल , वो प्रहरी के सामने से गुजरी तो प्रहरी की नजरें झुक गयी!
शोर सुनकर हर्षदेव तेजी से अंदर आया”सामने स्नानगार की ओर नजर डाली तो उन्मुक्त अमरा अंदर जाती नजर आयी!
प्रहरी क्या हुआ “”
सर्प “””” प्रहरी की पूरी बात सुने बगैर कुणिक अमरा की ओर दौड पडा “””
कुंवारी आप तो तन से छुईमुई सी है पर साहस मे तो योद्धा “”
नही मदनिका””मै परिस्थिति के हिसाब से खुद को ढाल लेती हूं”
अच्छा, ,आओ स्नान करते है””
अमरा ने मदनिका को स्नानगार में खीच लिया “”
बडी बेशर्म हो कुवांरी”””चपला बोली””
चपला तुम भी आओ””
नही मै ठीक हूं”””द्धार बंद कर देती हूं””
उफ “”””कितना सौंदर्य छुपा रक्खा था इन कपड़ों में,
लम्बी सांस खीचकर मदनिका बोली””
धत् नवयौवना शर्मायी”””
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देवकन्या (भाग-9) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi
रीमा महेंद्र ठाकुर “जी द्धारा लिखित “
अनुपम कृति”