देवकन्या (भाग-7) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

 आप धैर्य रखिऐ,  सब कुछ ठीक हो जाऐगा “”

युवक ने दक्षांक को ढंढास बंधाया “”

युवक को पहचान कर भी राजनायक  अंजान बन गये””

और यही स्थिति  उस युवक की भी थी!

पुत्र आप सही समय न मिलते तो आज मै अम्बा को खो चुका होता, जो भी होता है अच्छे के लिऐ होता है””दक्षांक  की कठोरता पिघल गयी,पाषाण हृदय दृवित हो गया!!

काका आप थक गये है पहले भोजन कर ले और विश्राम भी,मै आपकी पुत्री के पास बैठा हूं”

आप जाईऐ””” और बिल्कुल  चिन्ता  मत कीजिए “”

युवक ने ताली बजायी और दासी ने कक्ष मे कदम रक्खा  ,

काका का विशेष ध्यान रखा जाय “”

जी”””

दासी राजनायक  के साथ दूसरे कक्ष की ओर बढ गयी!!

दक्षांक  ने कक्ष  मे जाते ही,  स्वच्छ जल से स्नान किया, उनके रोम रोम मे पीडा हो रही थी,भोजन ग्रहण करने के बाद वो निद्रा  की गोद मे कब चले गये उन्हें याद नही””

ये अवसर दूसरी बार आया था जब ,इस युवक ने,अमरा को जीवनदान  दिया था””जिसके  के लिऐ राजनायक कृतघ्न था!

रात्रि का तीसरा पहर””

जब एक छाया ने, कक्ष  मे प्रवेश किया, कुछ गुप्त मंत्रणा के बाद वो”जैसे आया था,वैसे ही,राजनायक के कक्ष  से बाहर चला गया!

बाबा “””

हर्षदेव के कान खडे हो गये””

इतनी सुरीली आवाज पहले भी  सुन रखी थी,हर्षदेव ने  विस्मित हो ,शैया पर  दृष्टि डाली,,जैसे स्वर से,कान मे शहद घुल गया हो ,

न चाहते हुए  भी वो शैय्या के नजदीक चला गया!

अमरा कुनमुनाई “”

बाबा भूख  लगी है”””

युवक उसके और पास चला गया,

उसके चेहरे पर बाल अब भी बिखरे हुऐ थे!

युवक ने उसके चेहरे से जैसे ही लटों को  हटाया, वो अपलक उसे देखता रहा”एक वर्ष मे कुछ भी तो न बदला था”””

बदलाव हुआ था,तो बस युवक मे””” “”

मेरी ,देवकन्या” ”’  रति ,स्वरूपा “” मै तुम्है खो चुका था”””

उसकी नजरे अमरा  के चेहरे पर ठहर गयी””वो पलकें झपकाना  भूल गया “”

अफ्सरा “”””अनायास  उसके मुहं से शब्द फूट  पडे,

उस युवक की  नजरें चेहरे से लेकर पाव तक  ठहर गयी ,

उफ ,परमात्मा की अनमोल कृति “””

बाबा””फिर कराह उठी अमरा”

मै भोजन की व्यावस्था करता  हूं,

हर्षदेव  बोला “”

अमरा ने आंखे खोलने की चेष्टा की,,,

अरे आप”””संकोच से उसके गालो पर ललिमा तैर गयी”””

काका शायद सो गये,ये भवन आपका अपना  है,कुछ क्षण दीजिऐ”

बोलते बोलते  हर्षदेव की नजर अमरा  के सुराहीदार गर्दन पर ठहर गयी””

अमरा की सांसे तीव्रगति से चल रही थी!

अमरा की नजर युवक पर पडी तो उसने शर्मा के पलकें बंद कर ली”””

देवी पलकें मत बंद करों,लडखडाते हुऐ बोला  युवक “”

वो बहुत ध्यान से अमरा के अंगो को देख रहा था, उसके यौवन को समझ पाना  उसके बस का न था”””

अमरा  के चेहरे की ललिमा  ताप की वजह से ज्यादा बढ गयी थी”आंखे गहरी काली ,सीने का उतार चढाव ,धडकनों को बढा  रहा था!

युवक ने आगे बढकर अमरा को सीने से लगा लिया “”

वो सकुचा गयी”””

मेरे अनंगदेव, मै तो तुम्हे खो चुकी थी”””

प्रेमी खोते नही,,हरबार खोकर बार बार मिलते है”

उस युवक ने उसे वापस हाथों के मध्य कस लिया “”””

पर अलिगंन से पीडा कम होने लगी”””

जाने कितनी ही देर दोनों एक दूसरे के साथ बंधे रहे!!!!

अमरा  के लिऐ पिता के बाद ये पहला पुरूष था, जिसने इतनी नजदीकियां बढाई थी!

प्रात;काल का समय था युवा हर्षदेव , खिडकी के पास खडा  , उगते सूर्य की ओर अपलक  निहार रहा था”””

धीरे धीरे वो ललिमा  गोलार्ध  के रूप मे परिवर्तित हो रही थी””

बडा ही मनोरम दृश्य  था””

दूर कही से घंटियो की आवाज आ रही थी,जो मन को भा रही थी”””

कुछ क्षण खडे रहने के बाद वो वापस पलटा शैय्या की ओर दृष्टि डाली, शैय्या पर सोयी ,अमरा उसे बहुत प्यारी लगी””

वो उसके नजदीक आ गया”

उसकी ऊंगालियां अमरा के चेहरे पर बिखरी लटो को सुलझाने में व्यस्त हो गयी,

अमरा का ज्वार अब पूरी तरह उतर चुका  था””

पर अब युवा हर्षदेव का मन बैचेन था””

अमरा का सौदर्य  उसे बांध रहा था”””वो अमरा  पर झुका ही था की”””

उसने ने पलकें खोली,,,हर्षदेव देखता  ही रह गया,

अमरा की  आंखो  की गहराई जिसमें उतर जाने के बाद शायद वो लौट न सके”””

अम्बा विस्मय  से उस युवक को देख रही थी”

जिसने उसके लिए, पुन: जन्म लिया  था””

कही कोई स्वप्न तो नही,,,,,,,नही नही हम फिर पुन:मिले है””

,मै कहां हूं,बाबा कहां गये””

अमरा  ने इधर उधर देखा, उस युवक के आलावा  वहां कोई नजर न आया “”

बाबा “”””

अमरा की सुरीली आवाज  हर्षदेव के कानों मे पडी”””

उसने अमरा,की ओर देखा”””

अमरा  की धडकनों  मे हलचल हुई”””

उसकी पलकें झुक  गयी”””

देवी ,मै हर्षदेव  “”” तुम्हारा अनंग”

काका शायद  बहुत थक गये थे”वो विश्राम कक्ष मे  है”

अमरा  युवक की बात से संतुष्ट न थी!

हर्षदेव,अमरा के चेहरे के भाव को पढने की कोशिश  करने लगा “””

पहली बार उसने महसूस किया की वो दोनों  साथ है””उसने अमरा की आंखों मे  देखा”” वही तडप जो पहले”””थी,

जिसे देखते ही अनंगदेव ,  को प्रेम हो गया था !

देवी “”” आपका परिचय “”

अमरा”

अमरा,मोहक  है  खट्टे मीठे फल की तरह “

नाम सुनकर हंसी आ गयी हर्षदेव  को””

हर्षदेव “को उपहास करते देख, अमरा ने मुहं फेर लिया””

अरे देवी क्या हुआ””

अमरा  के चेहरे को अपनी ओर घुमाते हुए हर्षदेव हंसा””

अमरा की बडी बडी आंखें  भर आयी थी”””

अरे मेरा  ये मतलब नही था”””क्षमा करे देवी””

प्रथम मिलन मे न पूछ पाया था!

हा तब आप मेरे देव थे”इसलिए  मौन थे”

और अब”””

अब ,अब तो समस्त, सम्राज्य के””””भावी”

कक्ष के बाहर किसी के पैरो की आहट से हर्षदेव  के कान चौंकन्ने हो गये””वो उठकर खडा  हो गया!

अमरा ने उसे विस्मय से देखा “””

हर्षदेव ने धीरे से दरवाजा खोला, बाहर सेवक को देखकर संतुष्टि हुई”””

कैसे आना हुआ””‘

महामात्य ने आपको गुप्त संदेश  भेजा है””

हर्षदेव  ने संदेह से इधर उधर देखा”””

कहां है संदेश”””

सेवक ने  तामपात्र  हर्षदेव ” की ओर बढा दिया,

युवराज “”कुणिक ”  विशेष ध्यान रखना,विशेष तौर पर संदेश है””

ठीक है अब जाओ”””

प्रणाम युवराज “””

सेवक के जाते ही कुणिक ने संदेश खोला, तामपात्र पर  मगध की मुहर लगी थी””

अंदर पत्र  था”। युवराज कुणिक “” आपको पुरी गये पांच माह

पूर्ण हो चुके है””” विशेष ख्याल रखे,आपकी सुरक्षा के लिऐ आपके सैनिक आपके आसपास ही है,जिस कार्य के लिऐ गये है आशा है शीघ्र   पूर्ण करेगें”” कुछ दिनों के लिऐ भूमिगत रहे””

दिवाकर”‘

किसी ने कुणिक को स्पर्श किया ,कुणिक पीछे घूमा,और मुस्कुराया””

कौन था””

सेवक”””कुछ संदेश लाया था””

अच्छा “””

हा”

पढना आता है””

नही”””

बुद्धिमती तो लगती हो””

बाबा से मिलना  है”””भोलेपन से बात टाली अमरा ने””

पुत्री—

सामने राजनायक प्रगट हुआ “

आईऐ””काका अंदर कक्ष मे चलकर वार्तालाप करते है”

नही मुझे पूर्ण विश्वास है अमरा  यहां सुरक्षित  है,मुझे पुरी के महल में जाना है,कुछ समय लग सकता है!

नि संदेह  प्रस्थान कीजिए काका”””

पुत्र  आपका सहयोग मुझपर उधार है और जल्द ही चुकता करूंगा “””

नही काका उसकी अवश्यकता  नही””आप ,आपका कार्य देखें  आपकी पुत्री  अपनी इच्छा से जबतक  यहां रहना चाहे रह सकती है””

मुझे शीघ्र   जाना होगा”””जीविका के लिऐ अर्थ की व्यवस्था करनी होगी””पुत्री अपना ख्याल रखना, ज्यादा प्रतीक्षा नही कराऊंगा”””चलता हूं””

बाबा”””अमरा ने बेबसी से  दक्षांक की ओर देखा “”

तुम्हारा वहां जाना अभी ठीक नही है ,जब तक की एक भवन न मिल जाय “‘अमरा के सिर पर हाथ फेर कर राजनायक बोले”

और फिर है न तुम्हारा रक्षक “””” युवक पर दृष्टि डालकर 

राजनायक बिना मुडे तेजी से भवन के बाहर चला गया””

अमरा  उन्हे जाते तबतक देखती रही रही जबतक वो आंखों से ओझल न हो गया!

राजनायक के जाते ही,अमरा की आंखो से  निकलकर अश्रुबूंदे  ,गालों पर लुढक गयी!!

अरे अरे सम्राज्ञी की आंखो  मे आंसू “””

हर्षदेव   ने हाथ बढाकर अम्बा के आंसुओं को अपनी हथेली पर रोक लिया “” शोभा नही देते””

पिता के वियोग के है””अमरा   सिसकते हुऐ बोली””

पर है तो कीमती””

होने दो,,आज मेरे सपनों को पूरा करने के लिए  बाबा मुझसे दूर हो गये!!!

अच्छा “” कैसा सपना “”” विस्मय  से देखा हर्षदेव  ने””

मुझे रेशमी वस्त्र  की लालसा  थी,जिसकी कीमत पुरी  राज्य के अर्थ से ही संभव थी””

अरे तो इसके लिये  काका को इतनी”””

नही नही “”” बाबा को लगता है की हमे  अर्थ की अवश्यकता है”

अच्छा”””

अगला भाग

देवकन्या (भाग-8) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

आगे जारी—

रीमा महेंद्र ठाकुर  वरिष्ठ लेखक सहित्य संपादक “

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