विरक्ति “राजा का वियोग”
देवी,,मेरे मन मे अंसतोष का वो अंकुर फूट गया है,जो मुझे दग्ध कर रहा है””मै इस महाप्रतापी इक्ष्वाकुवंश का मान न रख सका””आह”””
आंखों से सैलाब फूट पडा, पुरी नरेश के””
पति की ऐसी स्थिति देख, विहृवल हो उठी रानी त्रिशला””
आप इस तरह स्वयम् को अपराधी न समझे”
कदाचित मेरी ममता मे ही कोई खोट रही होगा,तभी तो युवराज हर्षवर्धन वैराग्य की ओर उन्मुख हुऐ “”
क्षमा निवेदन तो मुझे करना चाहिए,
विहृवल नेत्रो से अश्रु बहाती महारानी त्रिशला बोली”
नही देवी””” मेरे ही किसी कर्म”””मे दोष था””
प्रणिपात महाराज “””
नरेश की बात पूरी भी न हो पायी थी की राजनायक दक्षांक ने कोपभवन में प्रवेश किया”
क्या संदेश लाये हो भान्ते,कुछ पता चला, युवराज का”करूणा स्वर मे पुरी नरेश बोले””
महाराज चारों ओर सैनिक भेज दिये गये है”
परन्तु”
परन्तु क्या भन्ते”दक्षांक””
विशालपुरी की प्रजा ने राजत्रंत का वहिष्कार कर दिया है””
वज्जी राज्य गृहयुद्ध की भेट चढ गया है”
युवान तरूण गृहकलह को आतुर है”वो कहते है की यदि “
क्या””प्रश्नवाचक दृष्टि से राजनायक की ओर देखा महाराज वज्जी ने””
युवराज हर्षवर्धन यदि लौटकर न आये तो ,किसी अन्य को विशालपुरी के सिहांसन पर विराजमान कदापि नही होने देगें”
साहस के साथ राजनायक ने अपनी बात महाराज के सामने रख दी”
इतनी कठोरता मत दिखाओं दक्षांक “
भन्ते “””
प्रजा को समझाओ””””
क्षमाप्रार्थी हूं महाराज”””मै फिर भी आपकी आज्ञा से प्रयास करूंगा!
शांति स्थापित करने के लिऐ यदि मेरी गर्दन कट जाऐ ,तो भी मै तैयार हूं”””नतमस्तक होकर गर्दन झुका दी राजनायक ने””
मुझसे जो बन पडेगा मै करूंगा””
मुझे आप पर पूर्ण विश्वास है राजनायक “” वज्जी नरेश बोले”
पुत्रवियोग, जनमानस का विद्रोह महाराज ,को अंदर से तोड रहा था!
पुरी नरेश सिद्धार्थ के नेत्रों में अब अंधकार
के अंतरिक्त कुछ नही था!
परिस्थिति बहुत गंभीर थी””किसी की समझ मे न आ रहा था की कैसे इससे निकला जाऐ”
तभी एक सैनिक ने प्रवेश किया “
सैनिक ने आते ही महाराज को दंडवत किया”
महाराज वैशाली के द्धार पर प्रखंड पंडित व्याकरणविद् आचार्य पाणिनि पधारे है!
सैनिक की बात सुनकर” ,महाराज ने शुष्क होठो पर जुबान फेरी,और धीमी आवाज मे राजनायक दक्षांक को आदेश दिया””
जाओ राजनायक दक्षांक द्धार पर आये हुऐ ब्राह्मण का सत्कार करो”
कही देर न हो जाऐ,पहले ही बडी भारी विपदा आन पडी है”
कही ब्राह्मण देवता रूष्ट हो गये तो””आगे कुछ न बोल पाये महाराज””
अवश्य “””
दक्षांक शीघ्र जाओ””
जिस द्धार से ब्राह्मण लौट जाऐ”वहां काल घर कर लेता है”
दरिद्रता स्वामिनी बन जाती है”
आप निश्चित रहे महाराज मै अतिशीर्घ जा रहा हूं”
महाराज के सम्मान मे नतमस्तक होकर राजनायक तेजी से कोपभवन से बाहर चले गये””
*विशालपुरी के मुख्य द्धार के समीप एक गरिमामय व्यक्ति नगर की ओर बडे ध्यान से देख रहा था!
तन पर श्वेत वस्त्र ,हाथ मे पुस्तक, श्वेत दाढी मुछें चेहरे पर तेज””अत्यन्त तेजस्वी रूप”
प्रतीक्षा भाव स्पष्ट रूप से हाव भाव से नजर आ रहा था!
उनकी प्रतीक्षा अधीरता मे तब्दील होती जा रही थी!
वो स्वयम् को न रोक सकें”
और द्धारपाल की ओर मुखातिब होकर धैर्यपूर्वक बोले””
बिलम्ब किस कारण भन्ते”
क्या वज्जी नरेश इक्ष्वाकु वंश की मर्यादा को तिलांजलि दे चुके है”” एक ब्राह्मण का अपमान, राज्य के विनाश का कारक होता हैं””क्या इतना भी ज्ञान नही वज्जि नरेश को”
भगवान राम के कुल के ऐसे धर्म-विरुद्ध कार्य””
निसंदेह ये दुर्भाग्य का अंमत्रण ही तो है”””””
ब्राह्मण देवता की बात पूरी होते होते”अश्व को दौडते हुऐ राजनायक उनके समीप पहुंच गये”
अश्व से उतरकर अति शीर्घ ब्राह्मण के चरणों मे घुटनों के बल बैठ गये राजनायक दक्षांक”
क्षमादान नाथ “”” विलम्ब हो गया””क्षमादान””
राजनायक, ब्राह्मण के चरणों मे लेट गये!
उठो वत्स”ब्राह्मण के कोमल शब्द राजनायक दक्षांक के कानों में पडे””
क्षमा आचार्य “आप तो वेदज्ञाता है” पुरी आज गृहक्लेश से जूझ रही है ,युवराज हर्षवर्धन ने वैराग्य धारण
कर लिया है”
महाराज सिद्धार्थ पर बहुत बडी विपति आन पडी है”
वो स्वस्थ नही है,भगवन्”
हमे ज्ञात है भन्ते,,आचार्य दक्षांक को उठाकर ,गले लगाते हुऐ बोले””
इसी कारण हम बैशाली पधारे है ,,परन्तु “कठिन से कठिन समय में ,धर्म का त्याग नही करना चाहिए “”
धर्महीन मनुष्य नरभक्षी पशु के समान हिसंक हो जाता है”
विवेकहीनता हो राक्षसी प्रवृत्ति को धारण करता है”
उचित है भगवन्”, आपकी वाणी हमेशा ,सत्य और मार्गदर्शन के लिऐ होती है ,पुरी का सौभाग्य है की ,आपका आगमन हुआ “आपका स्वागत है!
राजनायक दक्षांक नतमस्तक, हो दोनो हाथ जोडकर अनुरोध पूर्वक बोले””” “”
हे भगवन्” पधारो आप””आपका अभिवादन है”
राजनायक का संकेत पाते ही, पाणिनी के दोनों ओर तलवार और ढाल से सैनिकों ने घेरा बना लिया!
आचार्य पाणिनि सुरक्षा घेरे मे दक्षांक के साथ नगर के अंदर प्रवेश कर आगे बढने लगे”
नगर मे हर ओर विभत्स दृश्य घटित हो रहा था!
हर ओर आगजनी, युवा उत्पात करते हुऐ घूम रहे थे!
चहुंओर अराजकता फैली हुई थी!!
उनके मध्य सुरक्षा घेरे मे चलते हुऐ आचार्य पाणिनि को स्वयम् के नेत्रों पर विश्वास नही हो रहा था””
वो जिस स्थान से निकलते उधर का दृश्य भयभीत करने वाला बन जाता””
पर अभी भी आचार्य जिस मार्ग से गुजरते”तोड फोड मचाते युवा,अपने हाथों को रोककर ,उनका अभिवादन और प्रणाम करते””आचार्य के आने से ऐसा प्रतीत होता ,मानो वज्जी राज्य का ध्वज सूर्य के प्रकाश से नाच रहा हो”””
* सुन्दर सभागार ,भव्यता चाहुंओर फैली थी”सुन्दर शिलासन पर मखमली आसन बिछा था!
जिसपर आचार्य पाणिनि विराजमान थे”
उनके पग पीतल के गहरे परात में धवल से प्रतीत हो रहे थे!
जिसपर महारानी त्रिशला दुग्ध अर्पित कर रही थी!
बडे स्वर्ण कलश मे जितना दूध आ सकता था,सारा का सारा आचार्य के चरणो को पखारने में महाराज ने अश्रुमिश्रित कर दिया था!
दुग्ध तो समाप्त हो चुका था पर महाराज के अश्रु रूकने का नाम नही ले रहे थे””
उनके अश्रु आचार्य के पग को निरन्तर बिना रूके धुल रहे थे!
पग पर ,गर्म अश्रु के निरन्तर गिरने से,आचार्य का धैर्य जबाब दे गया,वो अधीर हो उठे”
क्षोभ त्याग दो राजन्”
ईश्वर केवल निमित्त ही बनता है!मनुष्य अपनी गति स्वयंम् तय करता है! राजधर्म का पालन करो”
परन्तु” कैसे भगवन्” “मै कुलघाती ,अपनी प्रजा को उनका उत्तराधिकारी न दे सका”प्रजा मे रोष व्यप्त है” कोई उपाय नजर नही आता”””कदाचित मृत्यु “””
कायर की भांति बेतुकी बातें न करो राजन्”
प्रजा से राज्य होता है”अथवा राज्य से प्रजा’
अर्थात, ,,प्रजा ही राजा होती है!
पाणिनि सिद्धार्थ को संबल देते हुऐ बोले”
अर्थात भगवन् “राजनायक ने संकोच मे भरकर पूछा”
जो प्रजा का है उसे देने मे कैसा संशय “”
पाणिनि मदृलता से बोले”””
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देवकन्या (भाग-6) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi
रीमा महेंद्र ठाकुर “(लेखक)
(लिखित -अनुपम कृति)