अब तक “”” अमरा की बाते सुनकर दक्षांक ने मन ही मन ,विशालपुरी वापस जाने का फैसला किया “नदी नालों को पार कर वो विशालपुरी पहुंचा,आश्रय की तालाश मे उसकी मुठभेड़, तमोली”” और दो युवको से हुई””छोटी झडप के बाद उसमे से एक युवक राजनायक के मित्र का पुत्र निकला “” आगे”””
आरम्भ –
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अमरा की आंखें जल रही,थी!
पर वो सबकी आवाज सुन पा रही थी”
युवको की बातों से जाने कितनी बार उसकी मुट्ठियां भींच गयी””पर वो मौन रही,थकान और चोट से ,उसके शरीर मे ज्वार ने कब्जा कर लिया, ताप की वजह से उसका तन शिथिल पड गया””
काका ,आपको मुसाफिरखाना जाने की जरूरत नही ,जब अपना खुद का भवन है””
आप चलिऐ,पिता जी को प्रसन्नता का अनुभव होगा “”
नही मै जिस कार्य के लिए आया हूं वो पहले पूर्ण कर लूं””
मै मित्र से शीघ्र ही मिलने आऊंगा “””
शायद आपने मुझे क्षमा नही किया “””
नही ऐसी बात नही है” पुत्र मैने तुम्है गोद में खिलाया है,तुम्हारे बालपन को तुम्हारे पिता से ज्यादा अनुभव किया है””
मुझे खुशी है” तुम्हारे पिता जीवित अवस्था मे है”””
नही तो जो कुठारघात ,,,आगे की बात जानबूझकर छोड दी राजनायक ने”””
नही काका””वो आज भी अस्वस्थ है ,पांच वर्ष से शैय्या पर है,शायद आपसे मिलकर मुक्त हो जाऐ””
ऐसा मान लिजिए हम दोनों को एक दूसरे की अवश्यकता है””
युवक की बात मे सत्ययता थी,राजनायक के पास उत्तर न था, वो निरुत्तर हो गया! !
चले”””
राजनायक ने हा मे गर्दन हिलायी!
परन्तु मेरी पुत्री चोटिल है,शायद इतना लम्बा मार्ग न तय कर सके”
काका यदि आपकी पुत्री , चलकर जायेगी ,तो,ये अश्व किस काम के””
युवक ने अपनी बलिष्ट भुजाओं से अमरा को उठाकर ,घोडे पर सुला दिया”””उसका बदन ज्वार से तप रहा था””
युवक के हृदय मे हलचल हुई””
इसे तो ताप है,,,सबसे पहले अतिशीघ्र, वैद्य के पास जाना होगा ,
राजनायक की आंखे युवक की बात सुनकर” सजल हो गयी””
आप भवन पहुँचों मै वैद्य के पास जाकर आता हूं,
युवक ने घोडे को ऐड मारी,घोडा तीव्रगति से एक दिशा की ओर बढ गया “”
राजनायक उधर ही तबतक देखता रहा,जबतक की,वो युवक आंखों से ओझल न हो गया! !
चले, मान्य””दूसरा युवक नतमस्तक होकर बोला”””
दूसरे युवक को खुद पर ग्लानि अनुभव हो रही थी”
हा”””
राजनायक युवक के पीछे बैठा,उसके बैठते ही ,अश्व सरपट दूसरी दिशा की ओर बढ गया””
तमोली भावशून्य अवस्था मे सिर पकडकर जमीन पर बैठ गया””
वो पछतावे की अग्नि में जल रहा था “””
उसे कल की चिन्ता थी,की अब उसके जान माल की कौन रक्षा करेगा””आने वाले कल के लिऐ वो आशंकित था!!!
रात का दूसरा पहर,,,
राजनायक को अमरा की चिन्ता सता रही थी!!
अभी तक उसकी कोई खबर न मिली थी”
वो भवन के बाहर ही चहलकदमी कर रहा था “””
जो युवक उसके साथ आया था ,वो अपलक उसके चेहरे के भाव को समझने की चेष्टा कर रहा था !
कुछ देर और प्रतिक्षा करने के बाद ,वो वही दीवार का सहारा लेकर बैठ गया,,उसके मस्तिष्क में बार बार विचार आ जा रहा था की कही कुछ!!!
वो अमरा के बारे में सोचते सोचते ग्यारह वर्ष पीछे चला गया “
जब वो युवा संघ का प्रधान सेनापति था”!
उसके पास हर वस्तु थी ,सिवाय संतान के”””
उसकी पत्नी हमेशा इसी वियोग मे रहती”दान पुष्य सब व्यर्थ जा रहे थे!
फिर एक दिन””””
उनके लिऐ परमात्मा ने एक उपहार भेजा””””
*गंगा नदी का मीलों फैला विस्तार ,तीव्रगति वेग से बहती जलधारा “” मां जीवनदायनी पापहरणी गंगा”
जाने कहां से बहा लायी एक जीवन ,जो की पुरी के इतिहास का अभिन्न अंग बनने वाला था!
गंगा का प्रचंड वेग, उसपर एक बांस की टोकरी ,पल पल गंगा में समा जाने का भय”उस नवजात को न था,जो उसमे किलकारी भर रही थी””
उस दुधमुंहें शिशु ने आखिर किस बात की सजा पायी””
जिसकी मां ने जन्म देते ही उसे त्याग दिया “”
और सौप दिया ,गंगा की कोख में”किसी के पाप का अंश, या किसी मां द्धारा लिया गया” शत्रुओं से बचाकर जीवनदान, का फैसला”””
कोई नही जानता””””
समय के गर्भ क्या छिपा था!
कहते है अग्नि और जल से किसी को प्रीत नही होती”””
टोकरी के ऊपर नीचे होने से ऐसा प्रतीत होता था”
की नवजात कब काल के गाल मे समा जाऐ”समय को भी ज्ञात नही “”
जैसे जैसे टोकरी जल प्रवाह के वेग से आगे बढ रही थी””
वैसे ही गंगा की धारा नीचे की तरफ जाकर विशाल झरने मे तब्दील हो रही थी!
जिसकी गहराई की थाह पाना कठिन था!
नीचे देखने पर बस कोहरे की धुंध के सिवा कुछ भी नजर नही आता था!
टोकरी कब मुहाने पर आ गयी”
बस कुछ क्षण ,वो शिशु काल की गाल मे सामाने ही वाला था”की”
जाको राखे सांइया मार सके न कोय “” उछलते जल के प्रवाह में टोकरी फूल सी प्रतीत हो रही थी””
तेज बहाव मे एक केले का पत्ता जाने कहां से आकर सही समय पर टोकरी से लिपट गया”
शायद मां के किसी पुण्य असर था “”
केले का पत्ता अपने बहाव के साथ टोकरी को भी सुरक्षित तैरा ले गया! केले के पत्ते से टोकरी का भार संभल गया!
फिर मां गंगा तो जीवनदायनी है,एक अबोध बच्ची का जीवन कैसे ले सकती है!
मगध मे प्रवेश करते ही मां गंगा दो धाराओं मे विभक्त हो जाती है”
पहली धारा सीधी ,मगध का अवलोकन कर आगे बढ जाती है,
और दूसरी””विशालपुरी में गण्डंक के रूप मे विद्यमान हो जाती है”
उसकी गंण्डक के मनोरम नदी तट पर,बसी है बैभवशाली नगरी”
, ,जिसे विशालपुरी के नाम से भी प्रसिद्धि मिली है!
५९९ईशा पूर्व वज्जी राज्य””गण्डक नदी मां गंगा का दूसरा स्वरूप, इसी गण्डक नदी तट पर बसा भव्य नगर विशालपुरी,
चौदह मील तक फैला नगर, जिसकी सुरक्षा के लिऐ,चारों ओर से भीति दीवार के परकोटे ,दीवार के पीछे बनी गहरी खाई ,जिसे पार करना, उस समय असंम्भव “
मुख्यद्वार की भव्यता की जितनी व्यख्या की जाऐ कम है!
उसकी विशालता का वर्णन बस इतना किया जा सकता है की”
ऊपर से यदि नीचे नजर डाली जाऐ”तो” उसे निर्मित करने वाला इंसान कीडे माकोडों के समान नजर आये!
मुख्यद्वार “के ठीक ऊपर सप्ताह अश्वयुक्त सूर्यरथ विराजमान था!
उसी रथ के शीर्षपर ध्वज पातका लहरा रही थी” जिसपर सूर्य अंकित था वो चमक रही थी!
इसी तरह तीन घेरो से भीतीयों”को निर्मित किया गया था ,जो सुरक्षा की दृष्टि मे”बहुत महत्वपूर्ण था!
जिसकी स्थापना सूर्यवंशी राजा इक्ष्वाकु के पुत्र विशाल द्धारा की गयी थी”एक दृष्टीकोण से देखा जाऐ तो विशाल पुरी का नाम ,उन्ही से जोडा गया है!
भगवान सूर्य नारायण के उदय होते ही पहली किरण मुख्यद्वार से होती हुई नगर मे प्रवेश करती है,जिसकी वजह से एक मनोरम दृश्य निर्मित होता है” ऐसा प्रतीत होता है की प्रतिदिन सूर्यदेव नगर को समृद्धि प्रदान करने के लिऐ स्वयम् उपस्थित हुऐ हो”””
विशालपुरी””का अलौकिक राजमहल शोकाकुल था”
लाल पत्थरों से बना कोप भवन ,जहां सिर्फ उजाले के लिए सूर्यदेव के आलावा किसी का प्रवेश निषेध था,
जिनके लिऐ एक छोटी खिडकी निर्मित की गयी थी””
उसी खिडकी के रास्ते प्रतिदिन किरणे कुछ समय के लिए कोपभवन मे प्रवेश करती”
प्रात: जिस समय सूर्यकिरणों ने कोप भवन मे प्रवेश किया”
उस समय वज्जी नरेश सिद्धार्थ , वस्तु आभूषण त्याग जीवन से विरक्त हो विहृवल बैठे थे!
रानी त्रिशला समझा समझा कर हार गयी थी!
पर रानी त्रिशला की कोई बात उनको संतोष न दे रही थी!
कही से विष ला दो”। ,देवी त्रिशला “
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देवकन्या (भाग-5) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi
रीमा महेंद्र ठाकुर (“लेखक)