देवकन्या (भाग-21) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

मामत्व का त्याग-

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 देवी चन्द्रबाला के नेत्रों  से ममता द्रव की भांति  निरंतर बह रही थी!

दक्षांक ने प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा”””

फिर दूसरी ओर मुहं करके हाथ जोड लिऐ “””

भगवन्  “”” क्षमा –पित्रवात्सल्य  के कारण””कही मुझ अधर्मी से अपराध तो नही हो गया!

भगवन्  महावीर वात्सल्य वस्तु मुस्कुराते  हुऐ, देवी चन्द्रबाला पर दृष्टि  डाली”””फिर बलिका पर”””

उसके बाद दक्षांक से उन्मुख हो बोले”””

भन्ते  बलिका क्षणभर पहले ही निंद्रा मे तल्लीन हुई है”

शरीरिक रूप से आप योद्धा हो”””तुम्हारे  स्पर्श से  कदाचित  उस बलिका की निंद्रा  मे विघ्न उपस्थित होगा”

स्त्री मन से ही नही तन से भी सुकोमल होती है”

 देवी चन्द्रबाला, आपका क्या विचार है””

राजनायक  अब भी उनकी बातों  का आशय न समझ पा रहे थे!

उसने    देवी चन्द्रबाला की ओर देखा””जो घूघट डाले””गंभीर मुद्रा मे निस्तेज खडी उन्ही की ओर देख रही थी”””

फिर स्वयं की ममता को स्थिर कर “पुत्री को उनकी  ओर बढाते हुऐ”बोली””

 राजनायक, तुम्हारी पुत्री सोलह  कलाओं और सौन्दर्य की स्वामिनी””” है”वत्स ” चेष्टा करना की किसी की कुदृष्टि  इस पर न पडे””राजनायक ने हाथ बढाकर झट से कन्या  को हृदय से लगा लिया”””

“””हे भगवती “””मेरी पुत्री आपका स्तनपान करके तृप्त हुई””” ये मेरी पुत्री का बडभाग्य है””मै सदा ही आपका दिया ऋण याद रखूंगा””””देवी””मै आपसे कभी भी उऋण न हो पांऊगा देवी”””आपकी कृपा हमेशा मेरी पुत्री के रक्त मे बहेगी”””

कल्याण हो  (वात्सल्य वश पुत्री पर दृष्टि  डाल कर)

यशयशवी  भव:'”””

आम्रपाली के गोद मे होने के कारण दक्षांक,  हाथ तो न जोड सका “परन्तु, शीश झुकाकर,कृतज्ञतापूर्वक वो पुरी की ओर वापस चल दिया “””

चन्द्रबाला उसे उसके कन्या  के प्रति निष्ठा  स्नेह को तबतक निहारती रही”जब तक वो दृष्टि से  ओझल न हो गया!

फिर स्वयंम्  के  मन को संत्वना देते हुए बोली””””

संतान को जन्म देने मात्र  से ,कोई स्त्री माता नही हो जाती”””

यदि ऐसा होता तो”मां यशोदा जगतपति की माता न कहलाती”””

मुझसे आधिक इस कन्या पर आपका अधिकार है राजनायक “”जहां भी रहे बस सुखी रहे”””

ममता वश अधीर हो दोनों हाथ उठा”विहृवल नेत्रो से आसमान की ओर देखकर  आशीष देती”और करूणाभाव से ,मुस्कुराते हुए, पलकें झपकाती,परन्तु  बंधे हुऐ बांध को कब तक रोका जा सकता है””देखते ही देखते बांध टूट गया”पर मुख पर व्यप्त  संतोष साफ दिखाई  दे रहा था”””

मै  मूर्ख न समझ पाया की मेरी पुत्री  जिसका स्तनपान  कर रही है वही जननी है ,,,जिसे मैने मृत समझ लिया था! !

लम्बी सांस खीचते हुऐ दक्षांक   अतीत से बाहर आ गया!!!!

तीसरा पहर बीतने मे अभी समय था!

राजनायक दक्षांक , भूतकाल मे फिर से तल्लीन हो गया”””

वो तेजी से नीचे की ओर बढ रहा था ,की एक स्त्री उनके नजदीक आ चरणों  मे गिर पडी—

स्वामी””बिन बोले आप मुझे  छोडकर कहां चले गये”””

वो चौकें”””सामने उनकी अर्द्धांगिनी खडी थी”””जिसे वो जटिल परिस्थिति के  चलते भूल गये थे!

क्षमा क्षमा देवी,,

स्वामी क्षमा क्यूँ, ,,मै तो आपको बहुत समय से ढूंढ रही हूं””पुत्री   का चेहरा क्षणभर दिखाकर मुझे  छोडकर क्यूँ  चले गये””

पता चला “””की आप पुत्री की क्षुधा शांत करने के लिऐ,भगवन् के पास आये।  ,तो मै आपको खोजती इधर आ गयी”””

देवी सब बताता हूं “””’राजनायक दक्षांक ने विस्तार से  सारी

घटनाऐ ,जो अब तक घटी थी””अपनी पत्नी को बता दी”””

हमारा सौभाग्य है स्वामी जो हमें ये पुत्री मां गंगा की कृपा से प्राप्त हुई””””

हा परन्तु अब हम नगर नही जा सकेगें,आज सुबह ही मैने गणिकाओं को  पुरी छोडने के लिऐ वचन दिया था””””

फिर हम कहां जाऐगे “””पत्नी मायूसी से बोली”””

आज यही गुजाराते है कल नये अश्राय की तलाश करेगें”””मैने  राज्य अधिकारों से त्याग-पत्र दे दिया है!

जो अभी तक स्वीकार नही हुआ है!

आपको जैसा उचित लगे””” स्वामी””””

दक्षांक ने दायें बाये नजर घुमायी”””””

उसे गुलमुहर के वृक्ष  आसपास  नजर आये””

उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गयी”””

उसने इधर उधर से बांस की वल्लिया ढूंढी”””और एक सुन्दर कुटियां का निर्माण किया “””रात्रि उसी कुटिया मे निवास कर ,सुबह मुहं अंधेरे, गंगा के किनारे चलते हुऐ गंण्डक नदी तक आ पहुंचा “””” वह गंण्डक नदी के तट पर ,बडी चट्टान  पर बैठा  शून्य मे देख रहा था, तभी”””

उनकी पत्नी कन्या को गोद मे लेकर उनके सामने प्रगट  हुई “””

स्वामी बरसों की साध पूरी हुई “”” उनके चेहरे पर उत्साह था”””

हा देवी पर अब हम आगे क्या करे”””राजनायक बोले””

स्वामी चिन्ता न करें,भगवन्  कुछ मार्गदर्शन करेगें””””

नदी पार चलना है भन्ते”””मै आपसे ही पूछ रहा हूँ “””

मुझसे””राजनायक   ने इधर उधर देखा””

हा भाई”””यहां आपके सिवा और कोई तो नजर भी नही आ रहा “””

मजाक मत करो मित्र “”””

मित्र”” बोला है””””

हा प्रिये””‘

तो फिर चलो”””

पर मेरे पास दम्म नही है”””

उसकी अवश्यकता  ही कहां है”””

परन्तु””””

कुछ नही मित्र  हो तो चलो””विनय के साथ नविक बोला “””

राजनायक पुत्री और पत्नी के साथ  नौका मे बैठ गये”””

आपको जाना कहां मित्र  “”

जहां आश्रय मिल जाऐ वहाँ “””‘

मतलब  आप आश्रय की तालाश मे हो “”

हा मित्र “””

आपकी पुत्री नवजात है””’

हा”””‘

मेरी अर्धागिनी भी गर्भ से है पर मुझे  नही ज्ञात की अभी शिशु के आगमन मे कितना समय””” इसी वजह से मै अमांवा  जा रहा हूं! !

अच्छा, भगवान  आदित्य के अशीर्वाद से आपका जाना सफल होगा”””

मित्र”” मै सोच रहा था  की आप भी जबतक  आश्रय नही मिल जाता तब तक मेरे साथ ही मेरे भवन मे रहो””‘

मेरा सौभाग्य  होगा मित्र “””

बातें करते करते नौका अमावां के किनारे पहुँच गयी””””

भवन मे कदम रखते ही नन्हे शिशु की किलकारी सुनाई दी”””

नविक दौडकर अंदर गया “”कुछ क्षण बाद खुशी खुशी वापस आया, ,,मित्र  मुझे अंजान के रूप मे ,कन्या  हुई है,,आज मेरा जीवन पूर्ण हुआ””जो की दो माह की हो गयी,उसकी आंखो  मे ,पिता, बनने की खुशी ,साफ छलक रही थी!

समय चक्कर आगे बढ चला दोनों कन्याऐं  एकसाथ बढने लगी””एक चांद तो एक उसकी छाया “”

नविक कन्या  का नाम मधूलिका, रक्खा गया!

और राजनायक की पुत्री का नाम अमरा”””

राजनायक  ने मेहनत कर एक छोटी कुटिया  का इंतजाम कर लिया था “””

जो दो पेड़ के बीच बडे चट्टान पर स्थित थी!

बांस से बनी सुन्दर बारी”आंगन के चारों ओर शोभा बढा रही थी”आसपास  गुलमुहर पालाश के वृक्ष  पंक्ति बांधे खडे थे””

ऊपर बडे पत्थर पर ,छोटे पत्थर  का गृह और उस पर बांस की छत्र  डाली गयी थी”ऊपर अटारी पर जाने के लिऐ बांस की निसन्नी  की व्यवस्था की गयी थी!

सुन्दर  काष्ट बांस पत्थरों से निर्मित , गृहनुमा कुटिया, भवनों को भी फीका कर रही थी”””

सर पर लकडियों का गट्ठर रखे,,,,,

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रीमा महेंद्र ठाकुर

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