अधिकार “”
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कौशम्बी नरेश””””
क् क्या “”” मै “”” इतनी बडी भूल”””कैसे “”” अब क्या करूं तरूणी,तू ही बता”””मेरे अश्रु बह निकले”””
राजकुमारी””” धैर्य रखो”””कुछ सोचने दो”””
राजकुमारी””” हम उनके अधीन है,वो हमारा हर तरह से उपभोग कर सकते है,,,बस अब आपको कुछ दिन धैर्य रखना होगा!
रात्रि फिर आयी”””मै क्रोध मे थी”””
वो आये और मेरे समीप आकर क्षमायाचना करने लगे”””
कौशम्बी नरेश का इस तरह अनुरोध मुझे उनके मोहपाश मे बांधकर ले गया”””मैने उन्हे क्षमा कर दिया,,,पहली बार मुझे महसूस हुआ,,एक कठोर राजा के अंदर भी धडकनें धडकती है “”
और सच मे,मुझे उनसे प्रेम हो गया!
धीरे धीरे वो मेरे करीब आते गये और एक दिन विवाह की इच्छा जाहिर की””‘मै खुशी से झूम उठी,,,उन्हें मुझसे संतान की अपेक्षा थी””””क्योकि वो निसंतान थे””””
मुझे मेरा अधिकार देने को उत्सुक थे”””मै प्रेम मे थी”””
और दूसरी ओर बडी रानी,जो कौशम्बी नरेश को एक संतान भी न दे पायी,उन्हे खबर लग गयी की कौशम्बी नरेश दूसरा विवाह करने जा रहे है”””
उन्होने मुझसे मिलने की इच्छा जाहिर की,,उस समय राज्य मे राजद्रोह की स्थिति बन गयी थी”कौशम्बी नरेश भी नही थे””
बडी रानी ने मुझे देखा तो मेरे सौन्दर्य को देखकर जलभुन गयी और मुझे कैद करवा लिया, ,, यातनाओ के चलते मेरे गर्भ मे पल रहे शिशु की मृत्यु हो गयी”””
राजा को जब पता चला ,तो उन्होने मुझे ढूंढ निकाला, ,
और हमने गंधर्व विवाह कर लिया “””
फिर धीरे धीरे सब ठीक हो गया”””मुझमे और राजा मे प्रेम घटने के बजाय बढने लगा, जिसके परिणाम स्वरूप मैने फिर गर्भधारण किया, इस बार खास ख्याल रखा गया, ,पर इस बार नियती ने जो खेल खेला ,उसमे सबकुछ हार बैठी मै”””
आठमाह का शिशु मेरे पेट मे था”””राजा””‘भी राज्य से बाहर थे”””मुझे पीडा हो रही थी”””
बडी रानी ने कक्ष मे प्रवेश किया, और हम दर्दी के नाते वैद्य के रूप मे अपने दासों के द्धारा, विशालपुरी भेज दिया “””
सुबह आंख खुली तो सिर चकरा गया, ,रात शायद ,दवा की जगह कोई नशीला पदार्थ दिया गया था”””
विशालपुरी के हाट मे मेरी कीमत आंकी जा रही थी”””
अशर्फी मुहर की बौछार हो रही थी!!!
निसंतान पुरूष मुझपर पूंजी लुटा रहे थे””कुछ कमुकता से मेरे चेहरे को छू रहे थे”””कुछ मेरे पेट पर हाथ फेर रहे थे”””
मुझे घिन आ रही थी””इतना धिक्कार पूर्ण जीवन,,,मेरे गर्भ मे पल रहे प्रेम का इस तरह अपमान “”” मुझे स्वीकार नही,मै प्राणो की आहुति दे दूंगी””
मैने पास खडे सैनिक की कमर से खजर खीच लिया, ,और आत्मघात के लिए खुद पर वार करने ही वाली थी की,हाट मे भगदड मच गयी”””
जाने कहां से तरूणी प्रगट हुई””
और मुझे खीचकर पहाडी की ओर ले गयी”””हम दोनों भागते रहे,,मेरी हालात बहुत खराब थी”””
प्यास के मारे मै मुर्छित हो गयी”””
जब होश आया तो मैने देखा तरूणी मुझपर जल छिडक रही है,,उसने मुझे गले लगा लिया, ,,राजकुमारी मैने बहुत कोशिश की पर आपका भाग्य न बदल सकी,,,
आखिर हम लोग पकडे गये,और मुझे बंदी बना लिया गया,मै रोई गिडगिडाई तब शायद ,मुझपर संमत को दया आ गयी””
उसने मुझे,राज्यनृतकी घोषित कर दिया,,और मेरा चित्र, बनवाकर हाट मे नीलाम करवा दिया, ,उसके पास मुहं मांगी कीमत देने वालो की भीड लग गयी””पर उसने तीन माह के लिऐ ,मेरा सौदा ,स्थागित कर दिया “” कारण मै गर्भवती थी,ये बात गुप्त रखी गयी थी!!!!
मेरा खास ख्याल रखा जाने लगा “”और एक दिवस, मौका मिलते ही ,मै ,तरूणी के साथ भाग निकली,जिधर भी जाती ,उधर मेरे सौंदर्य की चर्चा होती,और लोग मेरी स्थिति, देखते हुए भी ,मुझपर बल प्रयोग करते!
जैसे तैसे हम दोनों ने छिपछप कर एक माह गुजरा “”
अब शिशु के जन्म का समय आ गया था””
हम किसी ऐसी जगह की तालाश मे थे जहां हमे शरण मिल सके ,,
हम जब छिपते छुपाते झरने के समीप पहुंचे””तो राहगीर की बातों से पता चला की हमे ढूंढा जा रहा है,हम डर गये ,और पहाडी की ओर जाने का सोचा””
तभी उधर से घोडे की टाप सुनाई दी कुछ सौदागर शायद मुझे ढूंढ रहे थे””””
राजकुमारी आप यहां सुरक्षित नही है,,धीरे धीरे ऊपर चढने का प्रयास कीजिए”””मै आपको सहारा देती हूं “””
हम घिसटते हुऐ ऊपर पहुँच चुके थे”””
तभी फिर किसी की पदचाप सुनायी दी”””
राजकुमारी आप ऊपर जाओ मै यही रूककर देखती हूँ, यदि कुछ गडबड होगी तो मै संभाल लूंगी”””ऊपर तपोभूमि है,वहां हिसांं नही होती,अभी वहां भगवन् तप मे लीन है ,मुझे विश्वास है वो आपको शरण मे लेगें”””
मुझे लगा अब मै सुरक्षित हूं”””मै जैसे जीवंत हो उठी”””
ऊपर पहुंचकर मै निढाल होकर बैठ गयी””काफी समय हो गया, रात्रि को मैने देखा एक सैनिक खुद की धुन मे नीचे की ओर चला जा रहा था “””
वो शायद तुम थे””””
हा माता याद है मुझे “””” और फिर अगले दिन ,पूर्णिमा के दिन पुत्री का जन्म, हुआ, देखते ही लग रहा था जैसे चांद खुद तपोभूमि मे उतर आया “”
वो रात्रि अलौकिक थी!
सत्य बोल रहे हो राजनायक “””‘
दोनों का वार्तालाप सुन मुस्कान बिखर गयी ,देवकन्या के चेहरे पर”””
फिर भगवन् की आज्ञा से हिरणियों का आना, और बहुत सी ऐसे दृश्य का उत्पन्न होना,,आश्चर्य मे पड जाना “””
भगवन् की इच्छा से कुटीर निर्माण करना””
“फिर अचानक आपका मृत्यु चुनना “””समझ न आया”””
हा बताती हूं””,
पुत्री जन्म के बाद तरूणी मुझे ढूंढती हुई आयी”””
और उसने बताया की राज्य मे मुनादी हुई है की एक गर्भवती स्त्री” भाग गयी,यदि वो किसी को मिल जाऐ तो उसे स्वर्ण अशर्फियों से तौल दिया जाऐगा”””
मै डर गयी ,और भगवन् के पास जा पहुंची,चांद पूर्ण आकर मे उनके सिर पर शोभित था!!!
जैसे अमृत की वर्षा हो रही हो”””‘
भगवन् ने पलकें खोली”””उनकी आंखो से तेज निकल रहा था”””मै सारी पीडा भूल गयी”””मेरी आंखों से अबिरल जलधारा बह निकली”””‘
देवी शांत हो जाओ”,,,सबकुछ सही होगा,तुम्हारी परीक्षा पूर्ण हुई, अबसे कोई बंधन तुम्हे न बांध सकेगा,,
भगवन् “”
सुनो मां गंगा की ध्वनि सुनो,और अपनी पुत्री को राजनायक के सुपुर्द कर दो ,जाओ”,,और हा इस कन्या की चिन्ता न करो सोलह कलाओं से पूर्ण है इसका जन्म पूर्णिमा के शुभ नक्षत्र के शुभ योग मे हुआ है,,
ये कन्या तमाम बाधाओं का समन कर एक नये युग का निर्माण करेगी,,,इसे गंगा के सपुर्द कर दो”””
इतना बोलकर फिर भगवन् ध्यानमुद्रा मे चले गये “”
जैसे कुछ हुआ ही नही”””
मै जीव कुछ समझ न पायी,वापस आयी पुत्री की ओर देखा, निश्चित सो रही थी”””
फिर मै आपके पास आयी””आपके मना कर देने से मै क्षोभ से भर उठी”””
और खुद को गंगा मैया के अधीन अर्पण कर दूं ऐसा मन मे सोचा””””तभी मैने देखा मेरी पुत्री के साथ तरूणी खडी मुझे देख रही थी””एक बार और पुत्री, को देखने का मोह न त्याग सकी”””
तरूणी, ,,
पुत्री को लेकर मै दूग्धपान कराने लगी,और तरूणी मेरे समीप बैठकर ,शिशु के लिऐ बांस की डलिया मे शैय्या सजाने लगी”””
राजकुमारी आज मुझे आपके जन्म की घटना याद आ गयी”””
आपके जन्म पर कितने मोती स्वर्ण अशर्फियां लुटायी गयी थी”””
सुनकर मुस्कान मेरे चेहरे पर खिल गयी””
और आज बदकिस्मती देखो,मेरी पुत्री , कौशम्बी की राजकुमारी “””””‘
सब ठीक हो जाऐगा राजकुमारी “””‘
हवा बहुत तेज है,और गंगा मैया भी शायद खुश होकर नृत्य कर रही है””” शिशु को गर्मी की अवश्यकता है मै लकडी का प्रबंध करती हूँ!
तरूणी एक ओर बढ गयी”””
उसके जाते ही भगवन् मेरे पास आये,और पुत्री को डलिया मे सुलाने का इशारा किया,,भगवन् को देखकर वो खिलखिलाकर हंसने लगी””””उसके हंसते ही,आसमान से मोतियों की बारिश होने लगी””ये दृश्य देखकर मै आश्चर्यचकित हो गयी””‘
देवी ये मामूली कन्या नही है इसे मां गंगा मे विसर्जन कर दो”””
तभी मैने देखा गंगा मैया उफान पर आ गयी,,
जलधारा धीरे धीरे मेरे इर्दगिर्द फैलने लगी,, देवी अब देर न करो”””
और न चाहते हुए भी मैने अपनी कन्या को गंगा मैया मे प्रवाहित कर दिया, डलिया एक झटके से मुझसे दूर हो गयी””मै खडी अश्रु बहाती रही”
हे गंगा मैया रक्षा करना मेरी पुत्री की” ,
भगवान् ने मुझे पीछे आने का इशारा किया “””
तभी मैने देखा, तरूणी ने गंगा, मे छलांग लगा दी”””
मै मूक बन गयी,,,जैसे काष्ठ “”” बे मन से मै कुटीर की ओर बढ गयी”””‘पूरी रात रोती सिसकती रही””’
कितनी आत्मग्लानि, राजा का प्रेम सबकुछ गड्ड-मड्ड होगया “””
भोर हो गयी थी””भगवान आदित्य ने किरणें फैला दी थी””
मष्तिक शून्य हो गया था”””बहुत सारे सवाल मन को मथ रहे थे””मै मठ की ओर बढ गयी!!!!
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देवकन्या (भाग-20) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi
रीमा महेंद्र ठाकुर