प्रशिक्षण-
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सखी रूको”””
मधूलिका आगे आकर अमरा का रास्ता रोककर खडी हो गयी”””‘
मधूलिका पर प्रश्नवाचक दृष्टि डाली अमरा ने””””
वहां तुम्हारे लिऐ खतरा हो सकता है “””
मै जाऊंगी “””
द्धार खोलकर आगे बढ गयी_मधूलिका”__
रेशमी पर्दे के पीछे खडा तरूण अचानक बाहर आ गया”””
कौन”””
मै संदेशवाहक “””
क्या संदेश लाये हो”””
युवराज कुछ समय तक न आ सकेगें”””वो अज्ञात स्थान के लिए निकल चुके है,ये पट्टीका भेजी है”””
ठीक है मै ,आपका संदेश कुवांरी तक पहुंचा दूंगी””
अब आप प्रस्थान कीजिए ,
मधुलिका ने उस तरुण को जाने का आदेश दिया “”
वो संदेशवाहक जिस रास्ते आया था उसी मार्ग से वापस चला गया”””
कौन था सखी मधूलिका “”””
संदेशवाहक, “” पट्टिका अमरा की ओर बढाते हुऐ बोली मधूलिका “””
ओह”””””अब न मिल सकेगें”””उदासी छा गयी अमरा के चेहरे पर”””
सखी ये मत भूलो की आपके पास तीन वर्ष ही है””जितना आपको सीखना है ,पर्याप्त नही है!
ज्ञात है सखी””””
चलो सोने का प्रयास करो,,,
स्वप्न से परे ,यथार्थ की जमीन कठोर होती है”””””
तुम सत्य कह रही हो सखी””””
शैय्या पर लेटते ही मधूलिका को नींद आ गयी”””
पर अमरा सो न सकी”””
करवट बदलते बदलते”””कब भोर हो गयी पता न चला”””
अममो चलो उठो”‘”मधूलिका जम्हाई लेते हुए बोली””
अरे आप शायद रात भर सोयी नही””””
हा मै ब्रह्ममुहुर्त मे ही घुड़सवारी का अभ्यास करने चली गयी थी”””
हा ,,मै इतनी गहरी निंद्रा में थी””आंखें फाडकर ,अमरा की तरफ देखती हुई मधूलिका बोली”””
और नही तो क्या, ,मदनिका ने कक्ष में प्रवेश किया””
आप ऐसे सुरक्षा देंगी ,भविष्य जनपद कल्याणी को”””
कमर पर दोनों हाथ रखती हुई बोली मदनिका “””
देख मदनिका “”
वो हो””अब तो मान ,जा””
तेरी निगरानी मे कुंवारी कैसे सुरक्षित रह सकती है”””
प्रिये सखी मदनिका, मै क्षमा यचिका हूँ “”” अब भूल न होगी””
ठीक है प्रथम भूल है इसलिए क्षमा करती हूँ “” अगला अवसर न मिलेगा””
उन दोनों की बातें सुनकर, अमरा खू खू कर हंस दी””
कुंवारी ”दोनों उधर ही मुड गयी”””
चिन्ता मत करो ,,आसमान नही टूट पडा है”मै बाबा के साथ गयी थी”””
अरे””””
पुत्री “”””
राजनायक ने रेशमी पर्दे को खिसकाया”””
तीरदांजी के लिऐ नये शिक्षक नियुक्त किए गये है”
वो आपकी प्रतिक्षा कर रहे है””
बाबा आज बहुत थक गयी हूं “”
पुत्री आलस्य ,बडी मुसीबत मे डाल देता है ,यदि समय पर निदान न हो””
ठीक है बाबा मै आती हूँ “”
थके कदमों से अमरा राजनायक के पीछे चल दी”””
पुत्री आज तुम्हे कुछ बताना था””
हा बाबा”””
तुम्हारी जन्मदात्री ,मां ,भिक्षाटन के लिऐ पुरी मे आयी है””
मै चाहता हूं एकबार मिल लो””
मां”””
हा,,राज उपवन मे ठहराया गया है!!
पर बाबा आपने तो उनको ,अग्नि””””
पुत्री मै भी भ्रमित हूँ “”” की वो कौन थी,जिसे मैने अग्नि मे विश्राम दिया!
वो दिवस मै भूला नही हूँ ,जब दूग्धपान हेतु, मै मठ गया था””तब यही माता थी””परन्तु मै समझ न पाया”””
आज जब पुन:देखा ‘तो”””
क्या देखा बाबा”””
तुम्हारे और उनके रूप मे कोई अंतर नही सिवाय उम्र के”””
बाबा क्या ये सत्य है””
पूर्ण सत्य पुत्री””
मुझे लगता है, अपनी जन्मदात्री से मिलना सौभाग्य होगा””
बाबा,क्या उनसे मिलना सही होगा “””
सही गलत तो पता नही”””पर एक पुत्री का मां से मिलन सौभाग्य होता है”””””
बाबा””आपकी जैसी इच्छा, पर एक विनती है,मां को मत बताना की मै उनकी पुत्री हूं”””
क्यूं ” वो उनका अधिकार और तुम्हारा सौभाग्य है”””
बाबा मै नही चाहती, की मां के जीवन मे एकबार फिर उथल पुथल मचे””
बहुत समझदार हो गयी है मेरी पुत्री “””
हा बाबा समय समझदार बना देता है “”””
पहले ही मेरी जिद ने मुझे ऐसे मोड पर खडा कर दिया है,जहां सिर्फ स्वप्न है”यथार्थ कुछ नही”””
एक कंचुकी का मोह ,उफ,,,,
पुत्री शोक मत करो””
अभी हमारे पास बहुत समय है ,कुछ न कुछ हल निकल आयेगा “””
काका चले”””
हर्षदेव आगे आकर बोला”””
बाबा आप हमारे साथ नही जाऐगे””
नही “”
आज मुझे राज्य आज्ञा मिली है की मै उपवन मे ठहरे अतिथियों का विशेष ध्यान रखूं”””
हर्षदेव आपके साथ होगें पुत्री,वो हर क्षेत्र मे परांगत है””
ठीक है बाबा आपको जैसा उचित लगे”””
चले देवी”””
जी”””
खुले मैदान मे आकर अमरा को सुकून मिल रहा था ,जैसे उसे बहुत दिनो बाद ,कैद से निकाला गया हो””
चारो ओर हरियाली”””‘
मन मयूर की तरह नाच रहा था”””
उसे कुणिक की याद आ गयी””””
क्या सोच रही है देवी”””
हर्षदेव उसके कुम्लाहाऐ, चेहरे को देखकर बोला “”
कुछ नही”””
मुझे बताओ तो शायद निदान कर सकूं””
न कर पाओगें”””
प्रयास तो करूंगा “””
आप पर किस रिश्ते से भरोसा करू””
मित्र कुणिक वाले”
हर्षदेव “””
देवी क्षमा, मैने कुछ गलत बोला क्या “”
बहुत बडा अपराध किया, बिना मेरी इच्छा”””
देवी मै आपसे मित्रता करने की बात कर रहा था””‘
मै इतनी क्षुद्र बुद्धि का नही हूँ “””
हर्षदेव क्षमा करो”””मै कुछ भ्रमित हो गयी थी””””
आज से हम मित्र”””
धन्यवाद देवी देवकन्या “”
देवकन्या””””””
हा ,,आज से आपका नया जन्म हुआ है देवी”””
देवी नही,,,मित्र बोलो हर्षदेव “””
एक शर्त पर””
कैसी शर्त “””
अपनी सारी पीडा मुझे बताओगी”
ठीक है””””
चले अब अभ्यास करे ,शेष बातें बाद में “””
ये उचित बात कही आपने मित्र हर्षदेव “””
सच्चा मित्र वही जो सही मार्गदर्शन करे””‘
अच्छा हा हा हा””‘
क्या हुआ “””””
बहुत समय बाद उन्मुकतता से हंसी थी आमरा “””
हर्षदेव अपलक उसे देखता रह गया “””
बडा सौभाग्य शाली है युवराज कुणिक जो उसे ,देवी देवकन्या’ मिली””रूप गुण “”” ज्ञान ,सर्वगुण सपन्न, सौन्दर्य ऐसा की अफ्सरा भी मात खाये””””
क्या हुआ मित्र क्या सोचने लगे”””
ज्यादा कुछ नही देवी “””
बस इतना की आगे लिच्छवीयों से आपको कैसे बचाया जाय”””
प्राण देकर””
नही देवी ऐसा कभी भी सोचना मत, ,ये मित्र आपके लिए अपने प्राणों की आहुति दे देगा”””
मित्र हर्षदेव ऐसा मत बोलो”””
सच पूछिऐ तो युवराज के जाने के बाद से ही मन बहुत बेचैन है”””
आप चिंता मत कीजिए, हमारे पास अभी बहुत समय है,,कोई न कोई मार्ग मिल जाऐगा””””
बाबा कहते है”””
मै आपसे सहमत हूँ, देवी”””‘
मित्र हर्षदेव, आप बार बार देवी बोलेंगें तो कैसे समझ पाऊंगी “””
क्या समझना है आपको “””
आपके युवराज के बारे में “”””
सब समय आने पर बता दूंगा”””इतनी बेसब्री ठीक नही मित्र “””
हा अब ठीक है”””
चलो अब अभ्यास शुरू करो”””
धनुष की प्रत्यंचा चढाकर ,हर्षदेव देवकन्या के ठीक सामने आ गया “””””
शिक्षक कहा है””””
मै ही तो हूं”””आचार्य हर्षदेव ‘हा हा हा””
चलो हटो बनाओ मत”””हटो”””बडे ढीठ हो”””
मित्र”” ढीठता भी अपनो के सम्मुख ही की जाती है”””
परन्तु “”””
अभी तो मै ही आपको गुरू रूप में मिलूंगा, जबतक की काका को कोई विश्वासपात्र नही मिल जाता”””
विश्वासपात्र “”” मतलब मै नही समझी,मित्र हर्षदेव “”
सब बताता हूं “” तनिक धैर्य रखो””””
आपका सौन्दर्य, आम लोगों मे चर्चा का विषय है””आपके सामने अफ्सरा भी फीकी पड जाऐ””””आपका रूप आकर्षण “”””
बस बस मित्र “””
आगे न सुन सकूंगी””””
टप टप टप””””‘
अभी हर्षदेव की बात पूरी भी न हो पायी थी “”” की””
एक घुड़सवार तेजी से उनके सन्मुख आकर गुजर गया!!!!!
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देवकन्या (भाग-18) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi
रीमा महेंद्र ठाकुर