अधिकार”””””
ये रूको”
पीछे से आवाज सुनकर दोनों ,युवतियां ठिठक कर रूक गयी”””
आपने किसकी अनुमति से राज उद्यान मे प्रवेश किया “””
मेरे स्वंयम् की”
,पलट कर बोली अमरा”
अरे देवी देवकन्या आप ,मेरा सौभाग्य की आपके दर्शन हुऐ”””
मै राज्यआज्ञा से आया हूं “” क्षमा देवी””
महाराज को कुछ संदेह था” आप जाईऐ””” देवी””
ठीक है मै’ जाती हूं पर बार बार इस तरह से रोकना, हमारे अधिकार का हनन होगा, श्रीमंत””
देवी क्षमादान “”
श्रीमंत के जाते ही”””
अरे सखी””
मुझे पता था की रूपमती के साथ आप गुणवान है”पर आज जो देख रही हूँ वो सत्य है”खुद की आंखों पर भरोसा नही कर पा रही हूं “”
मुझे भी पहले यही लगा” था”””
पर बाबा ने जो बताया”””वो संकेत था,””
कैसा संकेत “”””
मुझमे परिवर्तन का,,चल छोड सब समय सीखा देगा”””
सखी ,आपकी बात मे सत्ययता है””
परन्तु आपको ,वो ,देवकन्या नाम से क्यूं सम्बोधित कर रहा था!
वो नाम आचार्य ,दिवाकर ने रखा है’ जब मेरे आने से ,पहले वो ,कुंडग्राम आये थे तब””
अद्भुत “”” मधूलिका अविश्वास से बोली”
दोनों कुवांरिया भवन की ओर बढ गयी!!!
महाराज प्रणाम “”””
कार्य पूर्ण हुआ , श्रीमंत “””
क्षमा कीजिए, महाराज”””
वजह जान सकता हूं, की आपने मेरी बात की अवहेलना क्यूँ की””
महाराज,,वो युवती हमारे वज्जिसंघ की जनपद कल्याणी मनोनीत की गयी,है””जिसे आपने ही सहसहमति के साथ बाकी पदाधिकारियों की सहमत से नियुक्त किया है””
क कौन ,देवकन्या “””
जी”””परम आदरणीय “”
हाय निष्ठुर समय एक झलक भी न देख सका””””
विहृवल से हो गये मनुदेव”””
महाराज मै आपके लिऐ उन्हे अभी उपस्थित कर दूं, पर सोच लिजिए, जनपद कल्याणी पर संघ के सभी पदाधिकारियों का अधिकार ,है,,कुछ ही क्षण मे आपकी व्यवस्था चरमरा जाऐगी””
और फिर वो अभी ग्यारह वर्ष की कन्या है,,एक बार सोच लिजिए “””
मै क्या करूं इन आंखों का श्रीमंत, एक पल भी तो ओझल नही होती”””
युवा वर्ग मे अक्रोश की स्थिति पैदा हो जाऐगी””
मेरे पास अब कोई चारा नही है परम श्रीमंत””
आप शोक न करे”””””
श्रीमंत ने समझाने की कोशिश की “””
महाराज प्रणाम “””
क्या संदेश लाये हो”””भन्ते”””
महाराज महल के बाहर कुछ साध्वी भिक्षुणी देवियों का आगमन हुआ है”””
अहा,हमारे परम सौभाग्य “”उन्हे आदर के साथ ,
सा सम्मान ,महल के अंदर ठहराया जाऐ”””
जी महाराज”””
श्रीमंत राजनायक दक्षांक को ,उनके पास आमत्रंण के” लिऐ शीघ्र भेजा जाय”””
जी””महाराज””अतिशीघ्र ही संदेश ,राजनायक तक पहुंच जाऐगा “””
सध्वी देवियों के लिए उत्तम व्यवस्था की जाय”””
जी”””””
घोडे पर सवार राजनायक, तेजी से,महल के परकोटे से निकलकर सीधे उद्यान की ओर बढ गया”””
संध्या रात्रि में बदल गयी थी””
सामने कुछ स्त्रियां नजर आयी””
शायद यही सध्वी है””
वो उधर ही बढ गया “””
प्रणाम माते”””सिर झुकाकर राजनायक ने हाथों को करबद्ध किया”””
तथास्तु “”””
माता आपके आने का संदेश अभी मिला, राजभवन से आपको लेने मुझे भेजा गया है””
धन्यवाद, तथागत””‘पर हम भवन नही जा सकते””
आप हमारे लिऐ इसी उपवन मे उचित व्यव्स्था कर दिजिए”
पर ये तो राज्य अवाग्या होगी”
नही पुत्र ,,,हमारा पूर्ण त्याग है,हमे अब विलासता पूर्ण जीवन के भ्रम से दूर ही रहना है,आप विवश न कीजिए “”
जैसा आपको उचित लगे”””स्वीकार है”””
रोशनी की व्यावस्था हो सके तो””
जी””””
मशालें जला दी जाऐ”””
वहा उपस्थित सैनिक की ओर देखकर बोले राजनायक “”
रौशनी की लौ चेहरे पर पडते ही,साध्वी मां का चेहरा अलौकिक हो गया”””बरबस राजनायक की नजर उनपर पढी,वो चौक उठे””‘उनके मुहं से कुछ शब्द””””जो उन्होने मन के अंदर ही रोक लिया “””और मौन होकर सारे कार्य पूरे कर महल की ओर बढ चले “””
उनके मन मे सवालों की झंझावात चल पडी””‘लगा जैसे मष्तिक फट जाऐगा, ,,अब मै पुत्री अमरा को क्या जबाब दूंगा””
नैन नक्श भी हूबहू है”क्या मेरी आंखे भ्रमित है”””सिर मुडे और श्वेत अंगरखा पूरे बदन पर लिपटा है”
नही नही इन्ही हाथों से तो”देवी चन्द्रबाला का दाहसंस्कार किया था”””जैसा की युवराज वर्धमान ने, नही नही स्वामी महावीर भगवान “”” ने पुष्टी की थी””””
राजनायक “”””
अरे आप क्या सोच रहे है””प्रहरी ने घोडे की लगाम थाम ली””
कुछ तो नही”चैतन्य “”
आप खुद मे इतने मग्न है ,कुछ संशय हो तो बताओं””राजनायक “””
आप बिना द्धार बंद देखे ही घोडे को ऐड मार रहे है””
क्षमाप्रार्थी हूं” प्रहरी ,प्रभात मे आता हूं “”
घोडा जिधर से आया था उसके दाहिने हाथ की ओर अपने सवार को लेकर बढ गया!
राजनायक के मन मे अंतर्द्वंद्व की विभाषिका ने अपना अधिकार जमा लिया था”””
वो बाराह वर्ष पूर्व के ,अतीत मे खो गये””””
युवराज वर्धमान बिना किसी विरोध के मठ की ओर बढते जा रहे थे””उनके लम्बे घुघराले बाल धरा की धूल मे समाहित हो धूमिल हो गये थे”””
जिसे गंगा मे प्रवाहित कर वो नंगे पैर गंतव्य की ओर बढते जा रहे थे”””
और उनके पीछे पीछे राजनायक, दक्षांक दूरी बनाकर चल रहे थे ताकि उन्हें ज्ञात न हो””
गंण्डक के किनारे किनारे वो झरने के ऊपर पहाडी पर पहुंचकर ,ऐसी जगह तलाशने लगे जहां किसी का आवागमन न हो”””
कल कल बहती गंगा मैया, संगीत जैसी धुन मे बह रही थी”””
वही एक वृक्ष की संखाऐं धरा को अलिगंन कर रही थी” “”
एक चट्टान के बीच मे खडा वो वृक्ष ,कितनो के लिऐ सीना ताने खडा था”””
युवराज वर्धमान चट्टान पर बैठ गये””
उन्होनें पैर उठाया “”” उनके तलवे मे बहुत सारे कांटे चुभे हुऐ थे””
जिनमे रक्त रिष रहा रहा था”””
जिसे देखकर दक्षांक के मुहं से आह निकल गयी””””
आओ राजनायक “” बिना पीछे मुडे युवराज बोले”””
मुझे पता है की तुम मेरे पीछे पीछे यहां तक आये”””हो”
युवराज की बात सुन ,राजनायक को लज्जा महसूस हुई “”
इधर मेरे सामने आओ”””
धीरे धीरे दक्षांक युवराज के सामने आ गये””
मुझे पता है तुम्हे मगध महाराज,और माता त्रिशला ने मेरी सुरक्षा हेतु भेजा है”””
जी युवराज, ,
अब तुम महल मे जाओ” और मेरे कुशल क्षेम होने का संदेश पहुंचा दो”””
युवराज आप ऐसे,, और इस अवास्था मे”””
युवराज की ओर देखकर रो पडे दक्षांक “””
दृवित न हो राजनायक “”” मै वैराग्य स्वीकार कर चुका हूँ “”
युवराज “”””
जाओ “””
मेरी आज्ञा है””
न चाहते हुऐ दक्षांक ,विशालपुरी की ओर बढ गये”””
अब राजनायक ने एक नियम साध लिया”
प्रतिदिन वो ऊपर आते और संध्या नीचे चले जाते””
देखते देखते,बंसत ऋतु ने दस्तक दी”””
युवराज हमेशा ध्यान मे मग्न रहते, और दक्षांक उनकी सुरक्षा “””मे”
उधर जैसे जैसे युवराज ध्यान मे आगे बढते गये”””
इधर राज्य मे अक्रोश फैलता गया”””
फिर वो दिन आ गया जब युवा तरूणों ने उपद्रव मचा दिया,,जिसके चलते अचार्य ने एक सरल रास्ता ढूंढा “” तरूणों के लिऐ वैश्यालय की अनुमति “””
जो राजनायक को स्वीकार नही हुई “‘
और तैश मे आकर राजनायक ने सेनापति के पद का त्याग कर दिया “‘
और गुस्से मे आगबबूला होकर ऊपर पहाडों की ओर शान्ति की खोज मे चले गये”””
कुछ समय मठ मे रहकर लोगो की सेवा की फिर युवराज ,वर्धमान के आसपास ही समय बिताने लगे””””
बंसत ऋतु के जाते ही सभी वृक्ष से पत्तिया गिर गयी”पर वो वृक्ष हरा भरा ही रहा जहां युवराज ने शरण ली थी”””
उनका शरीर कृशकाय हो गया था””
और अब वो युवराज वर्धमान से महावीर के रूप मे अवतरित हो गये थे””
एक दिन वो ध्यान मे मग्न थे”””
दक्षांक उनकी सेवा मे लगे आस पास के पक्षियो के लिऐ दाना पानी की व्यावस्था कर रहे थे””‘
तभी एक स्त्री का रूदन सुनाई दिया, ,
महावीर स्वामी ने आंखे खोली””सामने एक निरीह स्त्री” को देखकर मुस्कुराऐ”””
शरण भगवन् “””
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देवकन्या (भाग-16) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi
रीमा महेंद्र ठाकुर