देवकन्या (भाग-14) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

अज्ञात तीन वर्ष”

**********””

मान्यवर ”यदि आप कीचिंत मात्र  भी नारी का सम्मान करते हो तो तीन वर्ष की आवधि तक आप देवी  देवकन्या,से दूर रहना “”

ठीक है राजनायक, ये बात मै नही भूलूंगा की आपने मेरा अपमान  किया, तीन वर्ष के बाद मै   देवी  देवकन्या”  से यही मिलूंगा””क्रोध से पैर पटकता हुआ ,राजपुरोहित बाहर चला गया “”

उसके जाते ही राजनायक  दक्षांक ने दीर्घ सांस ली””_

तभी ,,हर्षदेव  ने भवन मे प्रवेश किया”””

उनकी नजर जब राजनायक  पर पडी तो वो पूछ बैठे”””

क्या हुआ काका”””

कुछ नही”””

वो “”””

प्रणाम काका”””

एक युवती दक्षांक को दण्डवत करते हुऐ  बोली””

अरे माधूलिका पुत्री कुछ कष्ट तो नही हुआ यात्रा में “”

नही काका””

मेरी प्रिय सखी अमरा  किधर है”””

मधूलिका की आवाज सुनकर “””

मधूलिका ”

चहकती हुई अमरा   मधूलिका के करीब आ गयी!!

अमरा पर नजर पडते ही ,मधूलिका अपलक उसे देखती रही”””

मेरी प्यारी सखी,अमरा, मधूलिका की गर्दन मे हाथ  डालकर झूल गयी””

तेरे तो बडे ठाट बाट है”””अमरा के कान मे हौले से बोली,मधूलिका “””

चल अंदर कक्ष  मे,सबकुछ यही जान लेगी””

मधूलिका का हाथ पकडकर घसीटते हुऐ “” बोली देवकन्या “

दोनो  कक्ष मे पहुँच कर एक दूसरे से गुत्थमगुत्था हो गयी!

तेरी सौतेली मां ने तुझे ऐसे ही भेज दिया “”

न “री “” काहे की मां””

वो तो ,भला हो  दक्षांक काका का ,जो ,सोने    की मोहरे ,प्रिये , हर्षदेव के हाथ  भेज दी”””

लालची औरत, ,जब मै  साम्राज्ञी  बन जाऊंगी सबसे पहले उसे ही करागार मे डालूंगी “””

भला वो क्यूँ  “” मधूलिका आंखे  चौडी कर बोली””

मेरी सखी का शोषण  करने के जुर्म में “”

छोड न ,,अब तो मै हमेशा के लिए तेरे पास आ गयी”””

बात तो सत्य है “””

चल और बता मेरे बिन कैसा रहा जीवन””

तनिक भी अच्छा न रहा भाद्रे “”””

आंखो   मे अश्रु भर आये ,मधूलिका के””

अच्छा  छोड”””

भवन बहुत बडा और सुंदर है”””

हां”””

पर मेरी पंसद की जगह दूसरी है””

कौन सी”””

राज उद्यान  चल दिखाती हूं””संध्या भी हो रही है””

पहले जलपान  कर ले”””

कुछ क्षण बाद””””

मधूलिका का हाथ थाम “” अमरा भवन के बाहर आ गयी”””

बाहर आते जाते लोग उन्हें घूर रहे थे””

जिससे अमरा अनजान थी””

पर मधूलिका को उनका इस तरह ताडना  अच्छा “” न लगा””

तभी दो युवक उनके सामने आ गये”””

किधर जा रही हो”””बलिका”””

क्यूं “”” कभी कन्याऐं नही देखी””

मधूलिका चिढते हुऐ बोली””””

देखी,पर तुमसे सुंदर नही देखी”””

ये हटो”””

कुछ सैनिकों   ने उन दोनों युवको को घेर लिया “””

ये हटो”””

जानते हो मै कौन हूं “”””

नही ,,पर अब तुम जान लो ये कन्याऐं कौन है”””

दोनों युवक सैनिक की ओर देखने लगे””

ये”””छोडो, ,

,भागो यहां से””‘

सैनिक के भागाने से दोनों  युवक भाग गये””‘

कुंवारी आप दोनों जाओ”””

धन्यवाद  महाशय”””

देवकन्या बोली””””

हे “” ये सब क्या” है अम्मो””

कुछ नही प्यारी सखी,ये सैनिक हमारी रक्षा हेतु है”””

सुनकर मुहं खुला रह गया मधूलिका का””‘

अब चल “”‘

हा”””

बगीचे मे पहुंच कर लंबी सांस ली देवकन्या  ने,,

अरे ये बाग तो बहुत बडा है “” हम खो गये तो””

जो बाहर सैनिक है वो हमे ढूंढ लेगें ,निश्चित रहो”””देवकन्या” अबतक समझ चुकी थी””की  वो  संघ का हिस्सा बन चुकी है__

फिर जो बातें  पिता दक्षांक ने समझायी थी,वो उसने गिरह मे बांध ली थी!!

काफी आगे निकल आने के बाद ,बगीचे के अंदर एक छोटा सरोवर नजर आया “”

आह कितना सुंदर है”””मधुलिका  प्रकृति की सुदंरता को अपलक देखती”””रही”

हा”””

अच्छा तुझे याद है,तू गीत गुनगुनाती थी अमराई में”””

हा याद है”‘

तेरी आवाज कोयल सी मीठी है”””

कू””

सुन कही कोयल बोल रही है””अमरा”आवाज की दिशा की ओर बढ गयी”””

मधूलिका  इधर उधर देखने मे व्यस्त हो गयी””

अचानक अमरा को फिर से कुणिक की याद आ गयी””

छोड गये तुम प्रियतम मेरे ,मै विरह मे दर दर भटकूं”””

अमरा  की स्वर लहरिया, बगीचे मे काफी दूर तक फैल गयी””

उसी समय मनुदेव भी संध्यावेला के समय बगीचे मे घूमने आया””

देवकन्या,  की आवाज उसके कानों मे पडी””वो मुग्ध हो गया “”

कोई विरहन है शायद”””‘सामन्त जाकर देखो””

मनुदेव समंत के ओर मुहं घूमाकर बोला”””

अच्छा रूको मै भी चलता “”

कुछ दूर जाकर वो झाडियों के पीछे छुप जाता है “”

उसे एक युवती दिखाई देती है जिसकी पीठ उसके सामने साफ दिखाई देती है”””जो की गाने मे तल्लीन है”””

तभी उसे दूसरी युवती नजर आती है,जो उसी युवती की ओर बढ रही होती है””

“”कोयल  की कूक, अगन लगाये,काहे को पिया मोरे””

मोहे बिसराये,आंखिया थकी मोरी पंथ निहारे”””

वो युवती, ,गाने मे तल्लीन ,सभी से बेखबर””””अपनी ही धुन मे””

कू “” कू”””

गीत के बीच बीच मे दूसरी युवती, कोयल की आवाज निकाल रही थी””

मनुदेव ने देखा दूसरी युवती पेड की डाली पर चढकर गाने वाली युवती को छेड रही थी”””

आह क्या” सुन्दर दृश्य,,जैसे दुष्यंत की शकुंतला, वियोग मे जल रही हो,

महाराज अब चले”””

हा ,,,परन्तु “””

महाराज आपका यहां इतनी देर रूकना क्या सही होगा”””

शायद तुम ठीक कह रहे हो”””समंत “””

चलो”””

मनुदेव जाते जाते पलट कर उन युवतियों को देख रहा था “”

देवकन्या की पीठ और कमर ,,,सबकी गणना कर ली थी मन ही मन मनुदेव ने”””

समंत पता करो,मन को भाने वाली कन्याऐं किसकी है,वो

राज उघान  मे क्या कर रही है”””

और उन्हे एंकात मे मेरे सामने उपस्थित करो”””मै उनके रूप सौंदर्य का पान करना चाहता हूं “””

जी महाराज”””

जाओ जल्दी जाओ कही भाग न जाऐ”””

उनको मै दंड दूगां,जो बिना अनुमति के उघान मे प्रविष्ट हुई”””

मनुदेव के पुरे तन मे”””जैसे आग जल रही थी”””

वो उस कामअग्नि की तपन मे उन कन्याओं को जला देना चाहता था! !!

इधर सब बातों से बेखबर दोनों  संखिया एक दूसरे से मान मनोव्वल कर रही थी””

ये सखी सच बता पुरी आकर तू कैसे बदल गयी,तू किसी के प्रेम मे तो नही पड गयी”””

नही रे”””ऐसे कैसे पड सकती हूं””

तो फिर अचानक विरह गीत”””

वो तो यू ही बस निकल पडा””””

सच सच बता “””

नही”””तो””

बता, ,मधूलिका अमरा  के ढके अंगो को चुटकी भरती हुई बोली””

मधूलिका की बच्ची””

डाली से खीचती हुई अमरा””” बोली”””

अमरा, के खीचते ही मधूलिका  उसी पर गिर पडी”‘

अमरा नीचे””मधूलिका ऊपर””

हे भगवान कमर तोड दी मोटी””

कराह उठी अमरा”””

उठ मार डालेगी क्या”””

पहले बता “”” अमरा  पर वजन डालती हुई बोली मधूलिका “”

पहले उठ “””

नही पहले”””

चल उठ जा मेरी प्यारी सखी”””तुझे न बताऊंगी तो किसे बताऊंगी “”

वादा दे”””

हाथ बढाया मधूलिका ने””

तेरी सौगंध””

फिर आजा “” उठकर हाथ बढाया मधूलिका ने””

और उसके हाथ बढाते ही ,अमरा “”” उठ खडी हुई””

चल बहुत देर हो गयी अब चलते है भवन””

हा चल””

दोनों सखियां आगे बढी तभी””””

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रीमा महेंद्र ठाकुर  “”

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