देवकन्या (भाग-11) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

अवधि”

********

संघ की सभी ,सभासद”एकत्रित हो चुके थे!

देखकर लग रहा था, आज किसी के पास कोई कार्य नही है,

सिर्फ इस फैसले के””सिवा”

एक समंत उठकर कर खडा हो गया “”

उसके हाथ मे एक सूचना पत्र था, जो बारी बारी सबके सामने रखा गया, उस पत्र पर लिखी सूचना से सभी सहमत थे”

सिवाय राजनायक  के”””

राजनायक दक्षांक, आप कुछ बोलना चाहते है इस संदर्भ मे””

पुत्री मेरी है निर्णय आप लोगों ने स्वयम् ले लिया, ,

बेबसी साफ छलक रही थी!

आज से ग्यारह बरस पहले आचार्य ने ये नियम बनाये थे तब आप उपस्थित  थे!

उस वक्त भी मेरी स्वीकृति  नही थी”

आप अब उम्र  के उस पडाव पर है जहां आप आपकी पुत्री”” को वो सब नही दे सकते राजनायक,  जिसकी उसे अवश्यकता है!!

आप को संघ को स्वीकृति प्रदान करनी होगी,नही तो राजद्रोह करने की सजा आप और आपकी पुत्री  दोनों को भुगतनी होगी,

और वो मृत्यदंड होगी”””

वो अभी बहुत छोटी है”उसने अभी ग्यारहवें वर्ष मे प्रवेश किया है””मुझे समय चाहिए  “

ठीक है “”

राज्य के प्रति  आपका समार्पण देखकर आपको तीन वर्ष का समय दिया जाता, तीन वर्ष के बाद आपकी पुत्री  राज़्य के अधीन होगी,

न चाहते हुऐ राजनायक ने स्वीकृति  की मुहर लगा दी”””

तीन वर्ष तक देवी देवकन्या” वज्जिसंघ के हिसाब से स्वत्रंत है”

परन्तु  उनका सम्पूर्ण खर्च संघ प्रदान करेगा

इसी के साथ सभा समाप्त होती है””

सुबह मुहं अंधेरे ही कुणिक मगध के लिऐ निकल गया था। देवकन्या, का मन उदास था”

मदनिका  और चपला उसका मन बहलाने का प्रयास करने लगी””

कुंवारी अभी तो आपके देव को गये ज्यादा   समय नही हुआ और आप अभी से बेहाल है””

क्या करूं सखी मन विहृवल है””आंसुओं को बलता् रोकने का प्रयास करती हुई, देवकन्या बोली””

कुंवारी चिन्ता न करो ,आपके देव बहुत जल्दी वापस आऐगे ,,

उनके आने तक विरह की आग मे ,मै ,कही झुलस गयी तो””

न कुवांरी न ऐसी बातें न करो आपकी  कंचन काया को यू मत झुलसाओं”””आपके हित मे जो होगा,कुंवर वही करेगें “””

सखी, दिलासा देना सही है परन्तु, ,,प्रेम की डगर पर चलना मुश्किल “” ”

धीरज रखो”””””

सुबह से दुपहर ,,दुपहर से संध्या, पक्षी अपने रैन बसेरे की ओर उड चले””‘

पर अमरा अब तक  शैया पर भूखी प्यासी ,मीन की तरह तडप रही थी”””

कुंवारी अब तो उठ जाओ”””

कुंवर को पता चला तो वो हमारी गरदन ,धड से अलग कर देगें”””अमरा ने गरदन उठायी,उसकी बडी बडी आंखो मे ललिमा तैर रही थी,पलकें सूज गयी थी!

कुंवारी,,मेरी बात मानो,कुछ जलपान ग्रहण कर लो”””

ठीक है सखी चपला “”””

चपला और मदनिका अमरा  को मानने मे कामयाब हो गयी थी””””

पता है आज सभा मे क्या हुआ “””

नही”””चपला ने मदनिका की ओर देखा”””

सब ओर हमारी ,कुंवारी  के सौंदर्य और नृत्य की चर्चा है!

अच्छा “””

पर नवयुवकों मे अक्रोश है की आखिर ,नृत्य के बाद देवी  देवकन्या कहां गायब हो गयी!!

अच्छा, ,इस बार अमरा  ने मदनिका की बात सुनने मे आतुरता दिखाई””

किसी को समझ मे न आया “”

पर सभी सवाल  के  उत्तर के लिऐ ,पूर्व राजनायक दक्षांक को उत्तरदायित्व सौपा गया हैं “”

पिता जी को””

आश्चर्य से चपला की ओर देखा ,अमरा ने!

कुंवारी, क्या राजनायक आपके पिता है””

हा सखी””

पर वो तो,संतानविहिन है,चपला बोली””

ऐसे कैसे हो सकता है,मै उनकी पुत्री हूं”””

कुंवारी क्षमा करे””‘

पर यही सत्य है””””

पर ये भी तो सत्य है की मै उनकी पुत्री हूं”””‘

नही नही कुछ तो है””””अरे हा याद आया, ,कुछ याद करते हुए चपला बोली “‘

बारह वर्ष पहले,राजनायक दक्षांक को गंगातट  पर आम के वृक्ष  की जड़ों  में लावरिस कन्या मिली थी””” महानायक निसंतान थे””अत: उस कन्या को उन्होंने अपना लिया “”

उस समय मै”बरखा रानी के अधीन थी,हम सब गणिकाऐं ,जब वहां पहुँची तो,उस कन्या की मांग की,,पर जब राजनायक की मनोदशा को बरखा मौसी ने देखा, तो उन्हें  उस कन्या का पूर्ण   अधिकार सौप दिया!!!

अब वो कन्या कहां और किस स्थिति मे है किसी को नही पता जीवित भी है या नही”””

चपला अपनी बात पूरी कर चुप हो गयी”””

चपला तो चुप हो गयी,पर उसकी बात से,अमरा के हृदय मे तूफान मच गया””

तो क्या मै राजनायक की पुत्री नही”””उसने खुद से सवाल किया”””नही ये असंभव है”””पिता जी मेरे लिए “””

सखी  चपला, मुझे एकांत की जरूरत है,,

पर कुंवारी , ,”‘

एकांत “””

देवकन्या   ने दीवार की ओर मुहं फेर लिया “””

चपला धीरे धीरे कक्ष से  बाहर चली गयी!

समय तीव्रगति से चल रहा था!!

मदनिका अमरा,  के पैरो को सहला रही थी””

सखी मदनिका “”

मदनिका  ने प्रश्न भरी दृष्टि  अमरा  पर डाली”””

पिता जी तक संदेश पहुंचा  दो की मुझे मिलना है””

ठीक है देवी”””मदनिका उठकर खडी हो गयी””

आधी रात बीत चुकी थी, एक तरूण घोडे से सरपट भवन की ओर आ रहा था “”

मदनिका  चौकन्नी हो गयी,घोडे के टाप की आवाज साफ सुनाई दे रही थी!

वो तरूण नजदीक आ गया””

अरे मान्य, हर्षदेव “””आप –

हा”मदनिका सब कुशल तो है””

नही ,कुछ कुशल नही है,कुंवर कुणिक के जाने के बाद से,,कुंवारी  ने सबकुछ त्याग दिया है,और अभी आदेश दिया है की राजनायक  को उनके सम्मुख पेश किया जाय””

वो आज बहुत उदास है कुछ न कुछ अतीत से जुडी घटनाऐं उनके समक्ष आकर खडी हो गयी है!!

चिन्ता न करो मदनिका, ,मै सब सम्भाल लूंगा””

मै अभी जाकर राजनायक को अपने साथ लेकर आता हूं”

ठीक है मान्यवर, जैसा आपको उचित लगे”‘

हर्षदेव  ने घोडे को ऐड मारी,घोडा तेजी से,महल की ओर बढ चला””

राजनायक अभी भी महल के प्रांगण मे चहलकदमी कर रहे थे!

एक नवयुवक उनके सामने आकर खडा हो गया,

कौन “””

मै हर्षदेव “”” नाम सुनकर चौके राजनायक “”

आप मेरे साथ चलिऐ,देवी अम्बापाली  ने अन्न का एक ग्रास भी नही लिया है””

पर आप”””

आप बस चलिऐ न”””सारी बाते रास्ते  मे बता दूंगा “”

ठीक है चलो नवयुवक “”

रास्ते मे हर्षदेव  ने सारी बातें ज्यो की त्यो रख दी””

प्रिये हर्षदेव, मुझे दु;ख है,की आपके साथ जो घटित हुआ  दुर्भाय पूर्ण है””””

पर आपका इस तरह राजद्रोह मे”युवराज कुणिक का साथ देना क्या सही होगा”””

पता नही मान्यवर “””

पर आज जिस तरह स्त्रियों को जबरदस्ती अधीन बनाकर उनके साथ  शोषण  किया जाता है वो क्या सही है”””

बिल्कुल  नही””””मै स्वयम्  सहमत नही हूं”””

क्या स्त्री को जीवनदान  देना गलत है””

नही”””

फिर उनका शोषण रोकने मे उनका साथ क्यूं नही देते मान्यवर””

अगला भाग

देवकन्या (भाग-12) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi

रीमा महेंद्र ठाकुर  “

(वरिष्ठ लेखक सहित्य संपादक )

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!