सम्मान”
संध्या बेला का समय, चारों तरफ अफरा तफरी मची थी”””
सौन्दर्य पूर्ण कन्याओं का आगमन हो चुका “”
नगर के सबसे बडे मैदान को समतल करके,चारों तरफ से कनाते लग दी गयी थी”””
मसनद चौकियां, बडे बडे मल मल के गद्दे”विछा दिये गये थे””
गलियों मे केवडे का छिडकाव मिट्टी मे मिलकर सुगंधित हो रहा था!!
बडे साहूकार अतिथि, संघ प्रभारी पदाधिकारी अपनी अपनी जगह आसीन हो चुके थे!
युवाओं की टोली सज-धज कर चिल्ला चिल्लाकर जयघोष कर रही थी”
मद्यपान का सिलसिला प्रारंम्भ हो चुका था!
कुवांरी कन्याऐं लजाती शर्माती ,सबको अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रही थी!!
देर रात तक नृत्य चलता रहा पर किसी की समझ मे न आ रहा था की नगर सुंदरी के लिऐ किसका चयन किया जाऐ,कोई एकमत न था “”
सेठ साहूकार अपनी आलाप रहे थे, पदाधिकारी अपनी,,
युवावर्ग कुछ खास तालाश रहा था!
जैसे ही कोई कन्या नृत्य के लिए आगे बढती वैसे ही युवा चिल्लाने लग जाते ,ये मेरी ये मेरी””
सब शांति से नृत्य देखे-इस तरह से तो चयन प्रक्रिया रुक जाऐगी””” एक उम्रदराज पंडित सामन्त उठकर बोला “”
ये बूढे गणपति “सुन्नद चुपचाप बैठ””एक युवक अभद्रता से बोला””
बूढा पंडित खिसियां कर बैठ गया, ,उसे पता था””
युवा शक्ति पहले भी एकजुट होकर पुरी का इतिहास बदल चुकी है”पंडित के बैठते ही युवा उद्डता पर उतर आये”””
कोई भी साहूकार उनके मुहं नही लगना चाहता था!
ये सब वज्जिसंघ के बनाये नियम की ही परिणिति थी?
खूब हौ हल्ला हो रहा था, कन्याऐं युवकों के उत्पात से बचने की कोशिश कर रही थी!!
युवकों पर पर जैसे जुनून सवार था!
मद्यपान से उनके अंदर जानवर जाग उठा था,,उनकी लाल आंखे कन्याओं के मन में भय पैदा कर रही थी””
वो युवक कन्याओ के वस्त्र खीच रहे थे””
तभी शोरगुल के बीच एक कन्या ने प्रवेश किया, ,
हिरनी सी चाल ,बडी बडी काली आंखें,घुटने तक चोटी,उसमे मोगरे के ताजे फूलों की बेडी, सुन्दर परिधान “सबकी ओर देखते हुऐ मुस्कारते हुऐ वो बीच मे आकर खडी हो गयी”””
पुत्री “” अनायास पीछे से पूरव मंत्री,राजनायक का प्रवेश “”
ये जगह ठीक नही तुम क्यूँ आयी””
पिता जी मुझे भी नृत्य मे भाग लेना था!
पिता पुत्री के वार्तालाप को सुनकर पूरी सभा मौन हो गयी””
सभी युवा शांत बस उस कन्या को अपलक देखते रहे”””
कौन हो तुम,एक युवक उसके करीब आया”””
कहां से आयी हो”””दूसरा युवक भी करीब आ गया!
एक एक करके सभी युवको ने उसे घेर लिया”
कन्या अबतक समझ चुकी थी की वो गलत जगह फंस गयी!
युवा समूह ने उस कन्या को घेर लिया”””
राजनायक दक्षांक की भकृटि तन गयी””
उनके हाथ मे अचानक तलवार लहराई””””
सुनो जरा सुनो तो”
वो कन्या मुस्कुराई”””
अरे जरा कोई सुन तो लो एक युवक बोला””
सारे युवक शहद सी मीठी वाणी वाली कन्या के इर्दगिर्द जमा हो गये””
कुछ उसे छूने की कोशिश करने लगे””
जरा सांस तो ले लेने दो”””कन्या कुटिलता से बोली”
कन्या की बात का युवाओं पर इस तरह असर हुआ, की पूरा समूह पीछे हट गया “सारे साहूकार बनिऐं हतप्रभ, आखिर ऐसी क्या बात है इस युवती में “”
भीड की वजह से वो लोग समझ नही पा रहे थे!
हा तो आप पहले क्या जानना चाहते है””
हे देवी तुम कौन हो बस इतना, एक युवक आगे आकर बोला “”
बताती हूं,बताती पहले सब अपने आसन पर आसीन हो जाओ,
उसके होठो पर मुस्कान बिखरी थी'”
कितने ही तरूण खुद को न रोक पा रहे थे””
उस कन्या के नीचले होठ पर काला तिल सभी को लुभा रहा था””फिर उसका तरूण यौवन”””उफ”””
हा तो मै निवेदन करती हूं “””
मै,राजनायक की पुत्री देवकन्या हूं “इसी धरा की मिट्टी हूं मेरी
काया इसी पुरी की देना, मै यहां नृत्य के लिए आयी हूं ,यदि आपलोग अनुमति दे””
हा हा क्यूँ नही”””एकसाथ स्वर गूंज उठे”” राजनायक , पुत्री अमरा को गौर से देख रहे थे””उन्हे खुद की आंखो पर विश्वास न हो रहा था “
उन्हे जिस बात का भय था ,वो नियति के हाथ जा चुका था””
नृत्य प्रारंम्भ होने से लेकर समाप्त होने तक सब विमूढ से चुप चाप बैठे थे!
जैसे ही पर्दा गिरा, एक युवक ने तेजी से प्रवेश किया “”
कुछ ही क्षण मे कन्या सबके बीच से पलक झपकते गायब “
किसी को कुछ समझ न आया “” की आखिर एक क्षण मे क्या घटा””
जितनी मुहं उतनी बातें”””
बस एक बार देवकन्या” को हमारे सामने ला दो””
सभी बावले से एक दूसरे से बोल रहे थे”
देवकन्या “”की जय”””” जयघोष के साथ ही उत्सव समाप्त हुआ “”
प्रथम पुरस्कार के लिऐ,देवकन्या का चयन किया गया!
राजनायक के चेहरे पर चिन्ता की लकीर स्पष्ट रूप से नजर आ रही थी!!
राजनायक, दक्षांक ने सभी सभासदों से बचने की कोशिश की”, पर राजपुरोहित गणपति ने उन्हे घेर लिया!
कहां भाग रहे हो पूर्व राजनायक, पहले भी बुरी परिस्थिति मे भाग गये थे””आज फिर जा रहे है””
ऐसी दुर्लभ चीज को अकेले ही”””
राजपुरोहित, जिहृव को विराम दो”””
मत भूलों राजनायक आपकी पुत्री””””
राजपुरोहित की बात समझकर राजनायक चुप हो गये””
कल आपको आना है””वहा सभासदों का जो निर्णय होगा, वो आपको मानना होगा”””
इतना बोलकर राजपुरोहित वहां से चला गया!
धीरे धीरे भीड छटने लगी””
सभी युवा मद के नशे मे लोट पोट हो देवकन्या का गुणगान करने लगे””क्या चितवन “क्या चाल आ हा””
श्रीमंत आदत डाल लो”””एक समंत ने परिहास किया “”
उसको बिना जबाब दिये””
राजनायक ,भवन की ओर बढ गये”””
देवी किसके कहने पर तुम वहां गयी थी””
मेरी स्वयंम् की इच्छा से क्या मुझे इतनी स्व्त्रंत्रता नही”
पलकें भर आयी अमरा की””
नही मेरा मतलब ये नही था की”””खैर
तुम्हे कुछ हो जाता तो”””कुणिक ने उसे भींच कर सीने से लगा लिया “””
मगध के युवराज कुणिक के होते हुऐ”””सुबक उठी अमरा
देवी “”
_चौंक उठे कुणिक “””
कल छुपकर आपने हमारी बात सुनी, अब तलवार कुणिक के हाथ मे लहरा रही थी,जिसकी नोक अमरा की गर्दन पर थी!!
हा मुझे पता है,आप हर्ष देव नही बहुरूपिया कुणिक है””
अमरा “”””
मत चीखिऐ ,धीमी आवाज मे बोली अमरा ,
निश्चत रहो इसे बारे मे किसी को ज्ञात न होगा, पिता जी को भी नही”””
बस एक वार से मेरी गर्दन धड से अलग कर दो,वैसे भी आपके बिना जी नही पाऊंगी””
कुणिक अमरा की बात सुनकर” पिघल गया!
अम्बापाली मै तुम्हे चोट नही पहुँचा सकता “”
मै आज ही मगध चला जाऊंगा “””
मेरा क्या” होगा “”” अम्बापाली की आंखों से झर झर आंसू गिर रहे थे””
हम आज ही गंधर्व विवाह कर लेगें,फिर मै तुम्हे मगध लेकर चला जाऊंगा “””
और हा,राजनायक को पता है ,मै कौन हूं “”
और उस रात, चांद तारे गवाह के रूप मे देवकन्या, और कुणिक को अशीर्वाद देने आये””
पूरी रात आंखों ही आंखो मे बीत गयी””
पूरी रात राजनायक को नींद न आयी,,कल की चिंता उन्हे खाये जा रही थी!
अगली सुबह “””
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देवकन्या (भाग-11) – रीमा महेन्द्र ठाकुर : Moral stories in hindi
रीमा महेंद्र ठाकुर
की ,अनमोल कृति”