डेस्टिनी – मधु मिश्रा

“मम्मी! 16 ता. को हमारे नये घर की प्रतिष्ठा है, पूजा में आप ज़ल्दी आ जाना न.. वैसे तो निखिल भी फ़ोन करेंगे आपको… कब आओगी आप कन्फर्म हो जायेगा तो बताना, मैं रिजर्वेशन करवा दूंगी…इस बार , दो चार दिनों की छुट्टी एक्स्ट्रा लेकर आना न मम्मी .. मैं साथ रहना चाहती हूँ आपके… ! ” बात के अंत में काव्या भावुक हो गई…

” क्या कहा बेटा… 16 को.. !  उस समय तो… सुनीता के फ़ाइनल प्रेक्टिकल चल रहे होंगे…इस साल उसका 12th है बेटा .. उसको किसी और के पास छोड़ कर जाऊँगी तो परेशान हो जायेगी बेचारी … मैं सुनीता के साथ उसके एक्जाम के बाद ही आ जाऊँगी न… उस समय छुट्टियाँ भी होंगी… फ़िर जी भर के रहूँगी तेरे साथ…! ” गायत्री जी ने काव्या को दिलासा देते हुए कहा …

” क्या… मम्मी… एक नौकरानी के लिए आपको अपनों की भी परवाह नहीं है.. मेरा इतना बड़ा काम है .. मेरे ससुराल वाले भी आयेंगे,और सारे रिश्तेदार भी…वो क्या बोलेंगे..! ” काव्या ने झुंझलाते हुए कहा

“ग़लत बात बेटा! ऐसा कैसे बोल सकती हो तुम…सुनीता तो बचपन से ही हमारे साथ है, अनाथ है बेचारी.. तुम तो जानती हो ,कैसे स्कूल में काम करते हुए वो खिड़की से  मुझे पढ़ाते हुए देखा करती थी.. उसकी यही इच्छा देखकर तो मैंने उसकी पढ़ाई का जिम्मा लिया.. और अब, जबकि विनय अमेरिका चला गया, तुम्हारी भी अपनी गृहस्थी है..और तुम्हारे पापा को … 

कोरोना ने हमसे छीन लिया …ऐसे हालात में सुनीता ही तो मेरा सहारा है..! सच कहूँ बेटा, मुझे तो लगता है , कि ये सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है.. तभी तो ईश्वर ने उसका हाथ हमें पकड़ा दिया.. मैंने तो उसके लिए यहाँ तक सोचा है कि  रिज़ल्ट अच्छा रहा तो आगे की पढ़ाई के लिए यदि वो विदेश भी जाना चाहे तो मैं उसे भेजूंगी…और तुम… ! ” कहते हुए गायत्री जी ने अपनी बात बीच में ही छोड़ दी…

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” ठीक है न मम्मी जी, कोई बात नहीं.. मम्मी-पापा को मैं समझा दूँगा, आप सुनीता के एक्जाम के बाद आइयेगा!” कहते हुए निखिल ने बात सम्हाली और फ़ोन रखकर वो काव्या का हाथ अपने हाथ में लेते हुए उससे बोला – “तुम ही कहती हो न, कि मम्मी सुनीता को नौकरानी नहीं समझतीं, वो तो अपना टिफिन तक उसके साथ ही शेयर करती हैं.. तो फ़िर अब एक पल में तुमने सुनीता को

पराया कैसे कर दिया … हाँ मैं समझता हूँ कि मम्मी के लिए तुम्हारा पजेसिव होना जायज़ है .. पर सोचो.. कितने फ़क्र की बात है न, कि आज भी कुछ लोग देवतुल्य हैं…जिन्होंने किसी अंजान को दिल से स्वीकार किया है… और मम्मी जी, सुनीता के साथ अपनेआप को पैरेंट्स की तरह ही ट्रीट करती हैं… काव्या, मैं तो अपने सारे मित्रों को भी इस अद्भुत रिश्ते के बारे में बताता हूँ..! “

” …सॉरी निखिल..! ” कहते हुए काव्या की आँखें छलक

गई…

” सॉरी मुझसे नहीं.. मम्मी से कहो .. कहते हुए निखिल ने काव्या की पीठ थपथपाई और उसे फ़ोन पकड़ा दिया..

@मधु मिश्रा (स्व रचित)                      #एक_रिश्ता

ओडिशा….

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