Moral Stories in Hindi : बात पुरानी है लगभग साठ के दशक की जब उमा जी व्याह कर इस बडे से संयुक्त परिवार में आईं थीं। अभी अठारह की भी नहीं हुई थीं कि शादी कर दी। एक अल्हड नवयौवना को जो स्वच्छंद अपने परिवार में हॅसती फुदकती थी ,को नियमों एवम अनुशासन की बेडियों में जकड दिया गया ।उस समय वे अपनी B .Sc. की पढ़ाई कर रही थीं।
उन दिनों छोटे कस्बों एवम गांव में स्त्री शिक्षा न के बराबर थी। सो वे परिवार में शिक्षित होने के कारण अजूबा बन गई। तरह तरह के कयास उनके बारे मे लगायै जाते।कोई कहता की घर का काम नही करेगी,तो कोई कहता खाना बनाना नहीं आता होगा। कोई रिश्तेदार बोला कि देखना अब ये पढी लिखी वहू ले तो आए हो घर चौपट कर देगी ।
उमाजी यह सब सुन-सुनकर सोचती ऐसा क्या में कर दूॅगीं जो उनके विचार मेरे प्रति इतने गलत है। पढी लिखी हूॅ,शहर से हूॅ कोई दूसरे ग्रह से तो नहीं आई हूॅ। हूॅ तो मैं पृथ्वीवासी।
घर में भी सास, तीनों जिठानीयाॅ निरक्षर थीं। दो बडे जेठ भी कम पढ़े लिखे थे। सो जिठानीयो के मन मे उनके प्रति ऐसा डाह कि थे हर समय उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करती । उनका पूरा प्रयास रहता हर काम में मीन मेख निकाल कर उमाजी को को ताने सुनाना नीचा दिखाना । बात- बात पर सास से उनकी चुगली कर उन्हें बहुत कुछ सुनवाया जाता।
खैर समय के पन्ने फड फडाकर उड़ते गए | वे भी तीन बच्चों की माॅ बन गई। जिठानीयाँ भी अब अपने बच्चों की शादी व्याह कर बहुओं और दामादों की सास बन चुकी थीं। अब वे अपने परिवार में सास के पद पर आसीन थीं।सो उन्होंने अपनी सास को इग्नोर करना शुरू कर दिया। जेठ जी जो माँ को साथ बैठा कर खाना खिलाते थे वे अब विस्तर पर थे,मौके का फायदा उठा जिठानी अब उनसे पुराने दिए गए घावों का बदला सा ले रही थी उन्हें पहले जैसी तव्वजो न दे कर।
कहाँ उनकी राय के बिना घर में पत्ता नहीं हिलता था अब उन्हें कोई पूछता भी न था। खाने पीने में भी उनके साथ दुभाॅती की जाने लगी। वे बहुत दुःखी हो जाती।उन्हें अब उमाजी के पास रहना अच्छा लगता। कारण यहाॅ पर वे अभी भी अपनी हुकूमत चला लेती थीं। बच्चे छोटे थे अभी स्कूल में ही पढ रहे थे ।उमाजी कभी उनके साथ किसी भी प्रकार का दुर्व्यवहार नहीं करती ।
साथ ही डायनिंग टेबल पर बिठाकर खाना खिलाती, दवाई वगैरह देने का पूरा ध्यान रखतीं। उन्हें अस्थमा था तो वे ज्यादा देर खडी नहीं हो पाती, चल फिर नहीं पाती। उमाजी उन्हें निहलाती कपडे पहनने मे सहायता करती क॔घा करती। उनसे पूछ कर मनपसंद सब्जी बना देती। दही खाना उनहें मना था किन्तु माॅगती न देने पर नाराज हो जाती उमाजी उन्हे समझाती कि दही खाने से आपकी खाँसी बढ जाती है पर वे ले कर मानती। फिर रात को खांसी उठती तब उमाजी ही उठ कर उनकी पीठ पर हाथ फिराती, पानी लाती ,दवा देती। वे नौकरी में थीं तो सुबह उन्हें जल्दी उठना पड़ता। सारा दिन वे चकरघिननी सी घूमती रहती।
उमाजी सिलाई बुनाई करने में निपुण थीं। खाना बनाना उन्हे अच्छे से आता था किन्तु बड़े पैमाने पर भारी भारी वर्तन उनसे न उठते यहि उनकी कमी बता कर जिठानीयाॅ सास से कहती थी कि उमा को कोई काम नही आता।
अब वे बैठी बैठी उन्हें अपनी घर गृहस्थी को सुचारू रूप से चलाते देख वे मन ही मन सोचती कि में कितनी गलत थी जो बातों में आकर उन्हें कितनी खरी खोटी सुनाती थी। कभी कभी उमाजी को ज्यादा थका, परेशान देख वे बोलतीं दुल्हन मुझसे तुम्हारी परेशानी देखी नहीं जाती बहुत काम करती हो। इस बीमारी के मारे में चल फिर नही सकती नहीं तो थोड़ी बहुत तुम्हारी मदद करा देती। उमाजी यह सुन प्रत्यक्ष मे तो चुप रह जाती फिर बोलती नहीं अम्मा हो जायेगा ।
पर मन अतीत मे खो जाता, जब उम्र थी, शरीर मे ताकत थी तो एक गिलास पानी भी हाथ से नहीं लिया ।नाश्ता, खाना सब हाथों में देना पडता था । अब जब कमजोर हो गईं हैं तो मेरे उपर दया दिखा रहीं हैं।
एक दिन बोली दुल्हन जितना काम तुम करती हो उतना तुम्हारी जिठानियों ने नहीं किया सिवाय चौका चूल्हे के उन्हे आता ही क्या था। आज मैं तुम्हारे काम की, बच्चों की अच्छी परवरिश ,एवम परिवार को बाॅध कर रखने के लिए तारीफ करती हूं तुम सदा सुखी रहो।
उमा जी की ऑखों से ऑसू निकल गए। वे भर्राये गले से बोलीं अम्मा मैं जीवन भर आपके मुॅह से यही सुनना चाहती थी बस मुझे और कुछ नहीं चाहिए आपका सन्तोष एवम आशीर्वाद ही मेरे लिए काफी है।
देर से ही सही आपने मेरी कदर तो जानी और क्या चाहिये।
शिव कुमारी शुक्ला
स्व रचित मोलिक एवम अप्रकाशित
#सासु जी तूने मेरी कदर न जानी