देर है अंधेर नहीं – प्रतिमा श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

वकील साहब हम जिंदा हैं इसका सबूत देते – देते अब थक गए हैं।एक बुजुर्ग महिला कमला अपनी जमीन के केस के लिए दर बदर भटक रही थी लेकिन पेपर पर उसको दस साल पहले मरा घोषित कर दिया था उसके एक रिश्तेदार ने। कमला गांव में अकेली रहती थी परिवार में कोई नहीं था।बाल विधवा थी और एक खेत का टुकड़ा ही उसके जीवन यापन का आखिरी सहारा था।

“माई सबूत तो यही बताता है और कानून भी सबूत पर ही विश्वास करता है “वकील साहब समझाने की कोशिश कर रहे थे। “ये कैसी विडम्बना है प्रभु तुम्हारे यहां से बुलावा आया नहीं और धरती वासियों ने भेज भी दिया हमें ” कमला बुदबुदाती हुई हताश-निराश हो कर घर लौट गई।

महीने में एक चक्कर कोर्ट-कचहरी के लगाने ही पड़ते थे।

फिर से पहुच गई थी कचहरी वकील साहब!” मेरे पास इतना पैसा नहीं हैं की मैं केस लड़ सकूं… भला बताओ जिंदा इंसान को ही कानून ने मार दिया। सचमुच कानून के आंखों पर पट्टी बंधी है क्या?”

खेत में बीज डालने गई तो रमिया जो दूर का पट्टीदार था लड़ने को तैयार हो गया। काकी! ” मेरी जमीन है…इस पर तुम्हारा कोई हक नहीं है।”

” तेरी जमीन नाश पीटे कब से हो गई ये तो मेरे पति की आखिरी निशानी थी….तेरा मालिकाना हक कब से हो गया।”कमला पढ़ी लिखी तो थी नहीं धोखाधड़ी करके रमिया ने अपने नाम लिखा लिया था।किस – किस को समझाती… कहां से लाती सबूत।

कचहरी के चक्कर लगा – लगा कर थक कर नीम के पेड़ के नीचे बैठकर अपने भाग्य को कोसती हुई बड़बड़ाती जा रही थी। वहीं एक नव युवक वकील महेंद्र सब कुछ सुन रहा था। उसने उसके करीब आ कर पूछा कि,” क्या हुआ काकी आप यहां कितने चक्कर मारती हो इस उम्र में… क्या परेशानी है? बताओ मैं  आपको  न्याय दिलाने की पूरी कोशिश करूंगा।”

हांथ जोड़ते हुए कमला ने अपनी राम कहानी सुनाई। सुरेश आवाक रह गया सुन कर। उसने वादा किया कि,” वो पूरी कोशिश करेगा उसको जिंदा साबित करने की।” प्रभु  आपकी लीला भी अपरंपार पर है जिंदा इंसान अपने जीवित रहने का स्वयं केस लड़ना पड़ रहा है। नया – नया जोश था युवा वकील का और केस भी बड़ा दिलचस्प था।

साथ ही सहानुभूति और इंसानियत भी थी उसमें। उसने बिना पैसे के केस लड़ने का वादा कर दिया था काकी को। सबूत इकट्ठा करने काकी के गांव पहुंच गया। काकी! ” कुछ तो राशनकार्ड या कोई पेपर होगा जिससे ये साबित हो सके की कमला बाई तुम्हीं हो।”

अरे! ” बेटवा कहां का कागज पत्तर हम गरीब के पास होगा।” कमला तवे पर रोटी सेंकते – सेंकते बोली। काकी!” कोई तुम्हारा अपना इस गांव – देश में रहता होगा? महेंद्र बड़ी दिलचस्पी से जुट गया था इस केस में। बेटा! “एक बार हमारे एक रिश्तेदार ने पोस्ट आफिस में खाता खुलवाया था  ….. संदूक में शायद कागज मिल जाए ”

कहते हुए चारपाई के नीचे टूटे संदूक को खोलकर उलट पलट करने लगी काकी।महेंद्र की आंखें नम हो गई देख कर सम्पत्ति के नाम पर कुछ नोट टूटे मरोड़े और एक कुर्ता – धोती और दो साड़ी जो मैली – कुचली सी थी। महेंद्र मन में सोचने लगा कि,” किसी – किसी को तो भण्डारे भर – भर के देते हो और किसी को कुछ भी नहीं…. कैसा न्याय है प्रभु जी आपका?”

एक पुरानी पासबुक मिली जिसमें नाम पता लिखा था। इतना सबूत भी काफी था केस दर्ज करने के लिए। कुछ दिनों बाद सुनवाई की तारीख भी आ गई,तब महेंद्र ने गांव जाकर काकी को सूचित किया कि,” काकी समय पर आ जाना।”

कार्रवाई के दिन काकी कचहरी में पहुंच गई।जज साहब भी हैरानी में पड़ गए थे…ऐसा केस उनके सामने पहली बार आया था। अम्मा!” बताओ क्या कहना है तुम्हारा?” जज साहब ने कमला से पूछा।” कुछ नहीं साहब जी बस हम जिंदा है यही साबित करना है और हमारा खेत हमें वापस दिला देंगे तो बड़ी कृपा होगी। दूसरों के खेत में काम करके दो वक्त की रोटी का ही गुजारा हो पाता है।

खेत मेरे पति की आखिरी निशानी है ” हांथ जोड़ते हुए आंखों से छलकते आंसू को पोंछती हुई कमला जमीन पर बैठ गई।सच में टूट गई थी कमला।जज साहब ने अगली सुनवाई में रमिया को हाजिर होने का आदेश दिया और कहा…” अम्मा बहुत जल्दी तुम्हें न्याय मिलेगा और हर्जाना भी भरना पड़ेगा रमिया को… मैं कोशिश करूंगा की तुम जैसी लाचार महिला को जल्दी से जल्दी न्याय मिले।”

अगली सुनवाई की तारीख भी आ गई रमिया पर पुलिस और वकील की नकेल कस दी गई थी।उसको अपना जुर्म कबूलना पड़ा और काकी से माफी मांगने के लिए पैरों पर गिर कर गिड़गिड़ाने लगा। जज साहब ने जेल की सजा सुनाई थी और काकी को इतनी तकलीफ़ हुई थी उसके लिए माफी भी मांगी क्यों कि कहीं ना कहीं समाज और कानून भी जिम्मेदार थे। काकी को जमीन मिल गया था और जीवित प्रमाणित कर दिया गया था।

काकी महेंद्र को ढेर सारा आशीर्वाद देते नहीं थक रहीं थीं। दोनों के बीच अनोखा रिश्ता बन गया था। शहर आती तो काकी महेंद्र के लिए गांव से कुछ ना कुछ ले कर आती और महेंद्र भी बहुत सम्मान देता था कमला को। महेंद्र का भी अगर उधर जाना होता तो काकी से बिना मिले कभी नहीं आता। ‘ देर है पर अंधेर नहीं ‘ आखिर में सच की जीत हुई और न्याय भी मिल गया था।अब काकी अपने खेत में शान से जाती। उनको जीवित प्रमाणपत्र और खेत दोनों मिल गया था।

 

                           प्रतिमा श्रीवास्तव

                           नोएडा यूपी

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