दहन – डॉ ऋतु अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

    “बहू! मीता!” कमरे में बैठी मीता की सास दमयंती ने मीता को पुकारा।

        “जी! आ रही हूँ, मम्मी।” साड़ी का आँचल कमर में खोंसती मीता ने रसोईघर से उत्तर दिया।

         “आकर क्या करेगी? ग्यारह बज रहे हैं। अभी तक होली- पूजन के पकवान नहीं बने। बताओ तो ज़रा, कब होली पूजने जाएँगे हम? मुझे तो बहुत ज़ोर की भूख लग रही है। ऐसे तो दो बजे से पहले मुझे न मिलने वाला ख़ाना। ज़रा जल्दी उठती तू तो समय से काम होता।” दमयंती लगातार बड़बड़ाए जा रही थी।

        “मम्मी! मैं सुबह चार बजे की उठी हुई हूँ, रात को भी ग्यारह बजे सोई थी। पिछले तीन दिनों से होली की तैयारियों में, मेहमानों  की आवाज़ाही की वज़ह से न तो मैं ठीक से खा सकी हूँ और न ही ठीक से सो सकी हूँ। अकेले काम करते-करते मैं थक चुकी हूँ।” मीता ही आँखों में आँसू आ गए।

             “तो क्या हो गया? सब की बहुएँ काम करती हैं,तू कुछ न्यारा नहीं कर रही। हमने भी ख़ूब काम किया है।”:दमयंती ने ताना मारा।

              “मानती हूँ मम्मी, आपने भी ख़ूब काम किया होगा पर मम्मी——।” अचानक मीता चक्कर खाकर ज़मीन पर गिर पड़ी।

         “मीता! बहू!” दमयंती की आवाज सुनकर मीता के बच्चे पलाश और प्रांजल दौड़े आए। टेलीविजन देखते मीता के ससुर भाग कर पानी ले आए। मीता के चेहरे पर ठंडे पानी के छीटे पड़े तो उसे ज़रा सा होश आया। पलाश ने सहारा देकर मीता को वहीं दीवान पर लिटा दिया।

          “दमयंती, तुमने तो हद ही कर दी। माना तुम सास हो पर इसका मतलब यह तो नहीं कि तुम कुछ काम नहीं करोगी, सिर्फ हुकुम चलाओगी। पलाश,प्रांजल,मुझे और निहार को तुम यह कह कर काम करने से मना कर देती हो कि मर्द क्या घर का काम करते हैं।” मीता के ससुर जी चिल्लाए।

        “पर अम्माजी भी तो—-।” दमयंती सहम गई।

          “अरे! तो क्या जो अम्मा ने तुम्हारे साथ किया, वही तुम बहू के साथ करोगी। दमयंती! अपनी पुरानी सोच से बाहर निकलो।” मीता के ससुर ने समझाया।

         “आप सही कहते हैं जी। सास होने के दंभ में मैं यह भूल गई कि जिस बात को मैं बहू के रूप में गलत मानती थी, उसी सड़ी-गली सोच को सास बनते ही सही कैसे मानने लगी? पर अब ऐसा नहीं होगा। आज होलिका दहन के दिन मैं भी अपनी रूढ़िवादी सोच का दहन करती हूँ। मीता! तू थोड़ा आराम कर। मूंग की दाल का हलवा मैं बनाती हूँ। पलाश, प्रांजल चलो, तुम दोनों घर की झाड़ू-पोछ कर दो और आप खड़े-खड़े क्यों मुस्कुरा रहे हैं?  चलिए! फटाफट काजू और बादाम काट कर दीजिए मुझे।” कहकर दमयंती रसोईघर की तरफ बढ़ गई।

स्वरचित 

डॉ ऋतु अग्रवाल 

मेरठ, उत्तरप्रदेश

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