दीपक – कमलेश राणा : Short Stories in Hindi

Short Stories in Hindi : क्या हुआ रीना के बापू क्या कहा लड़के वालों ने? 

क्या बताऊँ भागो? वही एक रटा रटाया जवाब और क्या? लड़की के भाई नहीं है तो माफ कीजिये हमें.. हम यह रिश्ता नहीं कर पाएंगे। परेशान हो गया हूँ यह सुन- सुनकर.. अरे भाई जब हमें कोई तकलीफ नहीं है इस बात से तो उन्हें दिक्कत क्यों है उन्हें तो यहाँ आकर रहना नहीं है उन्हें तो बहू ही चाहिए न पर पता नहीं क्या सोच है लोगों की। 

एक बेटा पैदा करने के चक्कर में सात- सात बेटियां हो गई अब बेटा या बेटी पैदा करना किसी के हाथ में तो है नहीं अगर यह मेरे वश में होता तो सात बेटियों की जगह सात बेटे ही पैदा नहीं कर लेती क्या पर बेटियां नहीं होंगी तो बहुएं कहाँ से आएंगी और यह सृष्टि का क्रम कैसे आगे बढ़ेगा यह क्यों नहीं सोचता कोई।

अरे परेशानी तो हमें होनी चाहिये थी उनके पालन – पोषण में लेकिन हमारी बेटियां तो हीरा निकलीं ऐसा कौन सा काम है जिसमें वो निपुण न हों.. पढ़ाई से लेकर घर गृहस्थी और आपके व्यापार में हाथ बँटाने तक हर काम में आगे हैं क्या बेटा होना ही सब कुछ है। 

जानता हूँ भागो बेटियां बिना कहे ही मन की बात समझ जाती हैं और बेटे की तरह मेरे कंधे से कंधा मिलाकर चल रही हैं पर लोगों की सोच का क्या करूँ अभी तक सब कुछ मेरे वश में था मैंने एक अच्छा जीवन दिया उन्हें पर पिछले तीन सालों से भटक रहा हूँ रिश्ते के लिए अब इस उम्र में बेटा कहाँ से लाऊँ। बेटी की उम्र सत्ताईस पार हो चली है बाकी भी शादी लायक हो गई हैं चिंता के मारे रातों की नींद भी उड़ गई है। 

तो फिर एक काम क्यों नहीं करते रीना के बापू.. हम कहीं से एक बच्चा गोद ले लेते हैं किसी को पता भी नहीं चलने देंगे कि उसे हमने गोद लिया है। 

यह कैसे संभव है?? लोग जब तुम्हें गर्भवती न देखकर सीधे बच्चा तुम्हारी गोद में देखेंगे तो शक नहीं करेंगे क्या? 

बात तो सही कह रहे हो तुम फिर ऐसा करते हैं मैं चार- पांच महीने के लिए मायके चली जाती हूँ जब व्यवस्था हो जायेगी तो हम बच्चे को लेकर घर आ जायेंगे। 

हाँ यह ठीक रहेगा लेकिन बच्चा मिलेगा कहाँ? 

अब यह सब ईश्वर पर छोड़ देते हैं.. हुइहै वही जो राम रचि राखा .. सोचकर शांति मिली मन को। 

योजनानुसार भागो मायके चली गई तभी एक दिन टीवी में रेल हादसे के बारे में जानकारी दी जा रही थी। हादसा बहुत भयानक था सैकडों लोगों की जान चली गई थी।

 भागो की भतीजी हॉस्पिटल में नर्स थी उसने घर आकर बताया.. बुआ आज मेरा मन बहुत खराब है बार- बार उस नन्हे बच्चे का करुण क्रंदन कानों में गूंज रहा है जिसने इस हादसे में अपने पूरे परिवार को खो दिया है ।

पता है बुआ गोद में आते ही वह माँ का आँचल ढूँढने लगता है। पुलिस उसके रिश्तेदारों की तलाश कर रही है पर तीन दिन हो गए अभी तक कोई नहीं आया उसे तलाशने शायद सबने उसे भी मरा समझ कर तसल्ली कर ली है। 

पल्लवी क्या तुम मुझे उस बच्चे के पास ले जा सकती हो मैं कानूनन उस बच्चे को गोद लेना चाहती हूँ उसे माँ और परिवार मिल जायेगा और मुझे मेरा कुलदीपक। 

भागो ने तुरंत पति को फोन लगाया और उन्होंने उस बच्चे को अपनाने का आवेदन दे दिया। प्रक्रिया पूरी होने के बाद वे उसे लेकर घर आ गये और उसके जन्म की खुशी में एक बड़े से समारोह का आयोजन किया। उसका नाम उन्होंने बड़े प्यार से दीपक रखा यानि कुल का नाम रोशन करने वाला दीपक।

अब सब खुश थे छोटे बच्चे के घर में आने से घर में रौनक हो गई थी तो उनकी खुशी जायज़ थी पर बाकी लोग क्यों खुश थे यह समझ से परे था खैर एक- एक करके भागो की बेटियों के घर बसने लगे और दीपक भी स्कूल जाने लगा पर बेटियों से उसका स्वभाव बिल्कुल अलग था। 

जहाँ बेटियां पूरी तरह से जिम्मेदार और होशियार थी वहीं दीपक अव्वल दर्जे का लापरवाह था पढ़ाई में उसका मन बिल्कुल ही नहीं लगता। स्कूल से लौटकर सीढ़ीयों पर बैग पटक कर खेलने भाग जाता।

जानता था कि अंदर गया तो कोई बाहर जाने नहीं देगा और फिर दिन ढले घर में घुसता तो स्वभाविक रूप से डांट तो पड़ती ही साथ ही मार भी लग जाती। होमवर्क करने में भी यही हाल होता रोज- रोज की डांट मार से वह ढीठ होता जा रहा था और साथ ही बहनों के प्रति द्वेषभाव भी पनपने लगा था उसके मन में। 

कुछ सालों बाद हार्ट अटैक से भागो की मृत्यु हो गई और घर की सारी जिम्मेदारी आरुषि और आभा पर आ गई अब तक दीपक हाई स्कूल में आ गया था उसके खर्चे बढ़ गये थे वह अपने दोस्तों में रुतबा जमाने के लिए अमीर होने की डींग हांकता और अनाप- शनाप पैसे खर्च करता इसके लिए उसे बहनों से या पिता के सामने हाथ फैलाना पड़ता और दस बातें सुनने के बाद ही उसे पैसे मिलते जो उसे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता जबकि बहनों को पिता कभी मना नहीं करते थे क्योंकि वह जानते थे कि वे कभी फिजूल खर्च नहीं करेंगी यह बात दीपक को चुभने लगी थी। 

अब वह चिड़ा- चिड़ा सा रहता और बेबात झगड़ता रहता। स्कूल से भी शिकायतें आती कि वह अवारा लड़कों की संगत में पड़ गया है। 

एक दिन मुहल्ले में भागवत कथा चल रही थी जोर- जोर से लाउड स्पीकर बज रहा था शाम को जब कथा समाप्त हुई तो पता चला कि रामेश्वर जी के घर में डकैती पड़ गई है। डकैत सभी को लहूलुहान करके छोड़ गये थे और सारा माल ले गये थे केवल दीपक सलामत बचा था क्योंकि वह घर पर नहीं था। 

घर के आसपास के सीसीटीवी फुटेज खंगाले गये तो पाया गया कि डकैत नई उम्र के लड़के थे उन सबके चेहरे पर साफी बंधी हुई थी। पुलिस का शक दीपक पर गया क्योंकि उन दिनों वह दुःखी होने के बजाय पार्टी कर रहा था। जब सख्ती से पूछताछ की गई तो उसने सब उगल दिया उसे डकैती और हत्या के प्रयास के अपराध में जेल भेज दिया गया। 

जिसे कुल का नाम रोशन करना था उसी ने कुल के नाम पर दाग लगा दिया था वह न केवल सारे परिवार के लिए शर्मिंदगी का कारण बना बल्कि लालच और नासमझी में खुद का जीवन भी तबाह कर लिया। सुविधाएं जब मेहनत से हासिल की जाती हैं तभी उनसे सुख मिलता है और जब गलत रास्ते से हासिल की जाती हैं तो परिणाम भी गलत ही होता है। 

#दाग

स्वरचित एवं अप्रकाशित

कमलेश राणा

ग्वालियर

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!