दीप फिर जल उठे – विजया डालमिया

“मम्मी इसमें से पापा की खुशबू आ रही है” जैसे ही परी ने विवेक की आलमारी खोलते हुए यह बात कही, मेरी रुलाई फूट पड़ी और मैंने उससे लिपटकर जोर जोर से रोना शुरू कर दिया। जिसे देखकर वह घबरा गई। कहने लगी….” मम्मा आपको क्या हुआ? मत रोओ ना।  प्लीज, मम्मा प्लीज”। 6 साल की मासूम बच्ची खुद रोते-रोते मुझे चुप करा रही थी ।अपनी नन्ही नन्ही ऊँगलियों से मेरे आँसू पोंछ रही थी ।मैंने जोर से उसे अपने सीने से भींच लिया और ना जाने कितनी देर हम यूँ  ही……

हम याने …पिंकी और मैं सुधा।एक साल हो चुका था विवेक को हमारा साथ छोड़े ।जाने वाले कभी नहीं पूछते। कुछ बताते भी नहीं ।बस चले जाते हैं। चुपचाप ।वक्त किसी का गुलाम नहीं होता। वह तो अपनी मर्जी से सबको चलाते रहता है।  किसे अपना बना लेगा और कब किसे दूर कर देगा ।कोई नहीं जानता। बस समय सब जानता है।  “है …से ….थे.”. का सफर ही जिंदगी है। कितने खूबसूरत दिन थे वह ।

मुझे अच्छे से याद है जब विवेक ने मेरा घूंघट उठाया और मुझे देखते ही रह गया ।फिर मेरी चूड़ियों की खनक से जैसे होश में आया और पहला वाक्य जो उसके मुँह से निकला था …”माय गॉड ।कितनी खूबसूरत हो तुम “और मैं बस शर्म से ….चूड़ियों की खनक कुछ ज्यादा हो चली ।सुख के पल पंख लगा कर उड़ने लगे ।विवेक हमेशा कहते …”सुधि  भगवान ने तुम्हें बहुत फुर्सत में बनाया है यार”

और मैं शादी के साल भर बाद भी उस रात की तरह शरमा  जाती ।एक शाम भी हमारी ऐसी नहीं थी जब हम बाहर घूमने नहीं गए। कभी मोटरसाइकिल पर तो कभी पैदल पैदल। विवेक के साथ जब भी मैं कहीं जाती तो मेरा चेहरा गुलाब की तरह खिल उठता था और विवेक की नजरें बस मुझपर टिकी रहती ।उस दिन पार्टी में भी कपल गेम में जब हम जीते थे तो “मेड फॉर ईच अदर” कहकर सब ने हमें बधाई

दी थी ।मुझे अच्छी तरह पता था कि अब जाते-जाते विवेक इसे भी सेलिब्रेट करेगा ।अपने तरीके से। गजरे वाले से गजरा लेकर। पान ठेले से पान खरीद कर और  एक सिगरेट पीकर ।वैसे विवेक स्मोकिंग नहीं करता था। पर जब बेहद खुश होता तो उसे तलब होती थी  उसे मोगरे और मेहँदी की खुशबू बहुत पसंद थी ।

साथ ही मेहँदी भरे हाथ ।पान से रचे  सुर्ख लाल होंठ बेहद पसंद थे उसे ।बड़ा रोमांटिक हो जाता था वह। ऐसे में कई गाने भी गुनगुनाने लगता था। फिर हमारी जिंदगी में परी खुशियों की सौगात लेकर आई। हमारी जिंदगी का बेहद खूबसूरत मोड़ ।विवेक तो उसे परी ही कहता था।


  सच परी थी भी बेहद खूबसूरत । वैसे तो हर माँ बाप के लिए उसकी औलाद दुनिया में सबसे ज्यादा खूबसूरत होती है। पर परी जितनी खूबसूरत बच्ची मैंने कभी नहीं देखी। कहीं नहीं देखी। विवेक कहता ….”बिल्कुल तुम पर गई है “और मैं कहती….” दिल तुम्हारे जैसा है “।वैसी ही चुलबुली। अपने पापा की लाडली परी उन्हीं की तरह मोगरे की खुशबू और पान की लाली की दीवानी थी ।छुटपन से ही उसके बाल लंबे थे ।

मेरे गजरे में से छोटा सा टुकड़ा उसे भी लगा देते। वह खुशी से नाचने लगती। पान खाते तो छोटा सा टुकड़ा टच करा देते वह  खुश हो जाती ।हमारी छोटी सी दुनिया ,जहाँ किसी और के आने की कोई गुंजाइश ही नहीं थी। पर इस छोटी सी दुनिया में किसी के जाने की गुंजाइश भी कहाँ थी।

 मुझे अच्छी तरह से याद है वह रात जब   लाइट जाने की वजह से मैं और परी बेहद परेशान हो रहे थे ।हमारी परेशानी देखकर विवेक ने कहा…..” चलो बाहर घूम कर आते हैं “और परी ने मचल कर कहा….. “आइसक्रीम भी खाएंगे पापा “।कुछ ही देर में हम मोटरसाइकिल पर हँसते मुस्कुराते बैठे थे ।तभी ना जाने कैसे …कहाँ  से एक कार तेज रफ्तार से आई और हम उछलकर गिर पड़े ।पीछे से आती हुई ट्रक से हमें बचाने के लिए विवेक ने हमें धक्का दे दिया व खुद …..

वह दर्दनाक मंजर मुझे बुत बना गया ।परी की आवाज भी मुझ तक नहीं पहुंच रही थी। ना जाने भीड़ में कहाँ से हमारे एक परिचित निकल आए व सिचुएशन को हैंडल किया। मैं और परी काठ  की गुड़िया की तरह बेजान हो गये ।दर्द का रंग बहुत पक्का होता है। आंसुओं से भी नहीं धुलता ।बस अब परी के लिए ही जीना है,सोच कर मैंने अपने आप को संभाला व घर से निकल कर बाहर की दुनिया में कदम रखा। जहाँ विवेक हर कदम खयालों में मेरे साथ-साथ चल रहा था मुझे हिम्मत देते हुए ।मैंने प्राइवेट स्कूल में जॉब कर ली ।कुछ दिनों से मैं देख रही थी कि परी बेहद खुश है ।

पूछने पर बताया एक दोस्त अंकल है ।बहुत अच्छे हैं ।मैंने कहा ….”कहाँ है?कभी उन्हें घर पर लाना” ।परी ने खुशी से गर्दन हिला दी। एक दिन अचानक हमारे सामने वाला घर जो काफी समय से खाली पड़ा था उसमें रोशनी और हलचल दिखाई  दी।यूँ तो मैं विवेक के जाने के बाद  और कुछ देख ही नहीं पाती थी ।


पर उस दिन रोशनी पर नजर गई तो वह मुझे अच्छी लगी। तब एक बात समझ में आई कि कभी-कभी नजरें उठाकर देखने से भी नजारे बदल जाते हैं ।दूसरे दिन से मैंने 7 दिनों की छुट्टी ले रखी थी। सुबह उठ कर  आलस में यूँ ही बालकनी में बैठी थी। तभी सामने एक चेहरा नजर आया ।देखते ही मेरे मुंह से एक ही शब्द निकला ….”प्रेम और यहाँ “? उसे देखते ही  मेरे मन का पंछी अतीत में छलांग लगा बैठा जैसे कल ही की तो बात हो।

प्रेम से मेरा मिलना भी एक इत्तेफाक ही था। कॉलेज में गेट टुगेदर था। सभी अपने अपने ग्रुप में एंजॉय कर रहे थे ।मैं चुपचाप एक कोने वाली टेबल पर बैठे-बैठे सब को देख रही थी ।अचानक एक लड़के के आते से ही सारे जोर-जोर से चिल्लाकर खुशी जाहिर करने लगे ।मैंने सोचा न जाने कौन है?जिसे मैं नहीं जानती ।जानती भी कैसे? मैं तो बहन जी टाइप की लड़कियों में आती थी ।सीधी सिंपल। चोटी गुथी हुई ।जहाँ मेरी फ्रेंड्स नई नई स्टाइल के कपड़े पहनती, मैं वही सिंपल सलवार सूट पहन कर ही खुश हो लेती ।खुशियां तो हमारी मुट्ठी में ही होती है ना ।मुट्ठी खोलो और पालो ।

ना किसी से ज्यादा मिलना ।ना ही बात करना ।मुझे सब पढ़ न्तु कहते थे ।जब भी किसी को कोई नोट्स लेने होते तो कहते ….”चलो पढन्तु  के पास नोट्स मिल जायेंगे “।मैं खामोशी से सब की हर बात सुनती और प्रतिक्रिया में सिर्फ मुस्कुरा देती ।मेरी यही चीज सबको मेरे करीब ला देती थी । हाँ तो मैं बता रही थी कि वह लड़का अचानक ही माइक हाथ में लेकर गाना गाने लगा ।उस के गानों ने सबको मस्ती से भर दिया। वाकई उसकी आवाज बहुत अच्छी थी। प्रोग्राम खत्म होने के बाद घर जाने के लिए मैं

बाहर ऑटो का इंतजार कर रही थी ।तभी वही लड़का मुझे मोटरसाइकिल पर आता दिखाई दिया। मेरे पास आकर उसने गाड़ी रोकी ।गॉगल उतारा ।मुझे देखा और कहा ….”चलिए मैं आपको ड्रॉप  कर देता हूँ “।मैं परेशान सी उसे देखे जा रही थी ।वह कहने लगा….” आपको खा नहीं जाऊँगा।रात काफी हो चुकी है” ।…”मुझे पता है”। मैंने कहा ,तो बोल उठा ….”तो फिर क्यों आप “…..उसने बात अधूरी छोड़ दी ताकि मैं निर्णय ले सकूँ  ।मुझे उसकी आँखों व बातों में सच्चाई नजर आई ।


 मैं सकुचाती उसके पीछे बैठ गयी।उसने गाड़ी स्टार्ट की। हम थोड़ी ही दूर पहुंचे थे कि बारिश शुरू हो गई ।उसने गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी और अचानक स्पीड ब्रेकर पर गाड़ी उछल गई ।साथ ही मैं भी ।मैं जैसे ही उस से टकराई एक अजीब सी सिहरन बदन में….. उसने पूछा ….”आप ठीक तो है ना “?मैंने कहा ….”जी”। बारिश और तेज हो चुकी थी। तभी एक चाय का ठेला दिखाई दिया ।इतनी तेज बारिश में चाय की महक ने दिल में तलब जगा दी ।मैं कुछ कहती उसके पहले ही वह गाड़ी वहाँ  रोक चुका था। छोटे से शेड में चाय की गर्मी हमें बहुत सुकून दे रही थी। हम बारिश कम होने का इंतजार करते वहीं बेंच पर बैठे थे ।तभी पहली बार हमने एक दूसरे की तरफ मुस्कुराते हुए देखा।

 …”मैं प्रेम ..आप”? “मैं …सुधा। आपकी आवाज बहुत अच्छी है”। मेरे कहने पर उसने कहा। “आपने सुनी”? मैंने गर्दन हिलाकर गर्दन झुका दी ।फिर बातों का सिलसिला शुरू हो गया ।उसने बताया कि वह अकेला है। गायन में रुचि थी इसीलिए संगीत सीख कर गाना शुरू किया ।”अब यह शौक मेरा पेट भी भरता है” कह कर हँसने लगा ।मैं खामोशी से उसे ही देखे जा रही थी।तभी वह कह उठा …”बोलने में, हँसने में इतनी कंजूसी”? मैं झेंप  गई। अपनी साड़ी के पल्लू का पानी निचोड़ने लगी।उसने कहा…

“एक कप चाय और “मेरी खामोशी को मेरी सहमति जान।फिर  मेरे बारे में जानना चाहा तो मैंने एक लाइन में जवाब देते हुए कहा….” मैं भी आप ही की तरह हूँ”। ” मतलब”? ….”मतलब अकेली ।अनाथ आश्रम में पली-बढ़ी ।पर अभी जिन्होंने मुझे गोद लिया उनके साथ ही रहती हूँ “।इस परिचय ने उसे मेरे अकेलेपन का परिचय दे दिया। वह कह उठा …”अगर आपको ऐतराज ना हो तो क्या हम अच्छे फ्रेंड  बन सकते हैं”? मैंने फिर वहीं मुस्कुरा कर बात खत्म की। तब तक बारिश थम चुकी थी। पर शायद हम दोनों के दिल में चाहतों की अनकही बारिश बरसने लगी थी ।

मैं तो मन ही मन चाह रही थी कि यह बारिश थमे ही ना ।पर जीवन के सभी निर्णय हमारे नहीं होते ।कुछ नियम प्रकृति के और कुछ समय के आधीन भी होते हैं ।मुझे घर ड्राप करने के बाद उसने मुस्कुराते हुए कहा….” प्रेम नाम है मेरा, याद तो रहेगा ना”? मैंने फिर गर्दन हिलाकर गर्दन झुका ली। उसकी नजरों की तपिश मुझसे बर्दाश्त नहीं हो रही थी। मैंने बाय कहा और भीतर जाने लगी। तभी उसकी आवाज मेरे कानों में पड़ी….” 

मैं कल फिर आऊँगा” ।अगली सुबह सबके लिए सामान्य थी। पर मेरे लिए काफी कुछ बदल चुका था ।ना चाहते हुए भी मैं प्रेम का इंतजार करने लगी। कॉलेज में भी दिल नहीं लगा। हर वक्त उसकी नजरों की तपिश मैं अभी भी महसूस कर रही थी। शाम हुई और मैंने मोटरसाइकिल की आवाज सुनी, मैं दौड़कर भागी। तभी देखा वह कोई और …..नहीं…. विवेक था, जो बाद में मेरी जिंदगी का साथी बना मगर अधूरा ।उसके बाद मैं प्रेम से कभी नहीं मिली।आज अचानक उसे देखकर मेरे मन में कितने ही विचार उथलपुथल मचाने लगे थे। मैं खुद को रोक ना पायी। सोचा पड़ोसी होने के नाते ही सही मिल आती हूँ । खाली हाथ जाना मुझे अच्छा नहीं लगा। 


फटाफट प्रेम की पसंद के प्याज के भजिए और चाय बनाकर परी को साथ लिया और थोड़ी ही देर में हम आमने-सामने थे ।प्रेम ने हाथ बढ़ाया और कहा …”प्रेम नाम तो याद है ना”? और मेरे चेहरे पर वही मुस्कान ।तभी उसने परी को देखा और कहा…” मैं प्रेम हूँ “।परी ने कहा… “आप मुझे प्रेम करोगे”? उसकी बात पर मैं अचंभित थी  कि वह ऐसा क्यों कह रही है? वह भी एक अजनबी से ।तभी मेरे सामने यह खुलासा हुआ कि प्रेम परी से पहले भी कई बार मिल चुका है तथा मेरे बारे में सब कुछ जानता है। जब मैंने शिकायती नजरों से उसे देखा तो उसने कहा…. 

“कुछ लगाव व चाहतें  ऐसी होती है कि हाथों में हाथ भले ही ना हो पर हम उनके साथ बंधे होते हैं। मैं उसी रात तुमसे जुड़कर अटूट रिश्ता कायम कर चुका था। दूसरे दिन मैं आया भी था। तभी विवेक जो मेरा जिगरी दोस्त था वह मुझे वहाँ  मिल गया। जब उसने मुझे तुमसे रिश्ता पक्का होने की बात बताई तो मैं वहाँ से एक कसक लिए लौट आया। पर मेरा दिल लग नहीं रहा था । नई जगह में शायद दिल को सुकून मिल जाए, यह सोचकर मैं दूसरे शहर में जाकर बस गया ।इतने सालों से जिंदगी यूं ही तमाम हो रही थी। तभी मुझे विवेक के बारे में पता चला और मैं इस शहर में फिर लौट आया ।मैं परी से मिला और हमारे बीच दोस्ती हो गई ।

परी ने ही मुझे इस खाली घर के बारे में बताया”। कहकर उसने निगाहें मुझ पर टिका दी। थोड़ी देर बाद बोला…. “मैंने कोई गलती तो नहीं की ना”? अबकी बार मैंने गर्दन नहीं झुकाई ।उसे देखते हुए कहा …”नहीं”। तभी परी ताली बजाने लगी और प्रेम के पास जाकर खड़ी हो गई। मैंने कहा ….”चाय ठंडी हो गई”। उसने कहा…” गरम भजियों के साथ ठंडी चाय पी लेंगे”। 5 दिनों बाद ही दीवाली थी। दिवाली की सुबह से ही  मैं उदास व मायूस थी। विवेक के जाने से जो अंधेरा दिल और जिंदगी में पसरा था ,

वह आज उतरकर आँगन में भी पसर गया था।मैं बीते दिनों की याद में इस कदर खोयी हुई थी कि मुझे दिन ढलने का आभास ही नहीं हुआ। तभी अचानक चारों ओर रोशनी ही रोशनी। देखा तो प्रेम और परी ढेर सारी मिठाई, पटाखे, आकाशदीप  और कैंडल्स लेकर खड़े थे। परी की आँखें जो सूनी हो चुकी थी,उनमें मुझे आशा के दीप जगमगाते  नजर आए। मुझे ना जाने क्या हुआ। मैं एक छोटी बच्ची की तरह रोते हुए प्रेम के सीने से लग गई। उसने मुझे व परी को जैसे अपने में समा लिया और उस दिवाली खुशी के दीप फिर से जल उठे।

विजया डालमिया

 

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