शाम को दफ़्तर से थकी हुई जब 7 बजे घर पहुंचीं ही थी वंशिका तो घर की हालत देख कर दिमाग फ़ट गया| गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया|
“ये क्या माँ, मीरा आज नहीं आयी? बिना बताये छुट्टी ले ली|”
“नहीं आयी बहू, पता नहीं क्या हुआ आज! कोई खबर भी नहीं की” मंजु देवी ने ज़वाब दिया|
“क्या माँ, आप मुझे एक कॉल तो कर देती| मैं पता करती ऑफिस से की क्या प्रॉब्लम है, आप भी ना” वंशिका ने चिढ़ते हुए बोला|
“पिछली बार किया था, तो याद है क्या कहा था तुमने? कि ऑफिस में ही टेंशन दे देती हो| इसलिए नहीं किया आज फोन तुम्हें,” तुनकते हुए मंजू जी ने ज़वाब दिया|
वंशिका को उनके अब इस समय मुँह नहीं लगना था, सो चुप हो कर सोचने लगी कि काम शुरू कहाँ से करे| जूठे बर्तनों का ढेर, सफ़ाई या रात का खाना| खुद भी थकी पडी थी ऑफिस के काम से|
इतने में पीयूष ने आवाज लगायी “मम्मी मैंगो शेक प्लीज”
पीयूष उसका 8 साल का बेटा है|
“बनाती हूँ, कहकर वंशिका पहले पीयूष के लिए दुध बनाने लगी,
तभी घंटी बजी, दरवाजे पर मीरा खड़ी थी,
उसको देखते ही जान में जान आयी,
और गुस्सा भी,
“हद करती है तू मीरा, कहाँ थी सुबह से? कितनी दिक्कत हो जाती है तेरे अचानक छुट्टी से| एक दिन पहले बता दिया कर तो मैं खुद सब कर के जाऊँ”|
बस वंशिका बोलती जा रही थी साथ में पीयूष के लिए मैंगी शेक भी बना रही थी||
जब मीरा ने ज़वाब नहीं दिया, तो मुड़ कर उसकी तरफ देखा,तो उसके पीछे उसकी 6 साल की लड़की पिंकी भी थी| उसे देख वंशिका को बुरा लगा कि बेकार बच्ची के सामने उसकी माँ को डांट दिया| पहले भी कभी कभी पिंकी आ जाती थी, उनके घर मीरा के साथ|
उसको देख कर वंशिका मुस्करा दी और mango shake को 2 गिलासों में कर दिया|
“चलो पिंकी, पीयूष भाई के साथ mango shake race लगाए” कह्ते हुए पिंकी को पीयूष के रूम में ले गयी|
पीयूष इकलौता था इसलिए बहुत अकेलापन महसूस करता था, सो पिंकी को देख कर खुश जो गया और खेलने लगा|
“वंशिका , अगर लोगों के बच्चों को दूध पिलाने से फुर्सत मिल गयी हो, तो मुझे भी चाय दे दे “मंजू जी के शब्द उसके कानो में ज़हर घोल गए, सीधे तो कुछ बोलती नहीं|
रसोई में आकर चाय चढ़ाई,
“अब बोल कुछ बोलेगी की चुपचाप बर्तन धोती जाएगी,” वंशिका ने मीरा से पूछा||
मीरा ने रोते हुए बोला,
” कल रात मेरे आदमी ने फिर मुझे बहुत मारा, जो आपने तनख्वाह दी थी, वो मैंने आधी राशन वाले को दी और आधी पिंकी की फीस के लिए रखी थी, उसको शराब के लिए पैसे चाहिए थे, पर मैं नहीं दी, तो बहुत मारा मुझको, पर फीस के पैसे मैंने छिपा लिए,| सुबह शरीर बहुत दुख रहा था, उठा ही नहीं गया, अभी भी बहुत दुख रहा है, पर मुझे पता था कि आपको दिक्कत होगी इसलिए हिम्मत मार कर आयी| “
वंशिका को खुद पे गुस्सा आया, कि सारे दिन की थकान मीरा पर निकल दी| उसके पति द्वारा उसको मारने पीटने के किस्से आए दिन बढ़ते ही जा रहे थे|
इतने में पति मनीष भी आ गए| दोनों मिया बीवी पढ़े लिखे और खुले विचारो के थे|
मनीष और माँ को चाय दी और मीरा को हल्दी वाला दूध दिया और साथ में एक दवाई भी दी दर्द की|
मीरा कुछ ना बोली बस हल्की सी मुस्कान आ गयी उसके होंठो पर, 3 घरों में काम कर के गुजारा करती थी, पर वंशिका सबसे अलग थी| बहुत अच्छी कितनी बार मीरा को कह चुकी थी पति को छोड़ने के लिए| पर भारतीय नारी कहाँ इतनी आसानी से ये बात मानतीं है, बस अपना नसीब समझ मानकर दिन काट रही थी|
” खैर, जल्दी जल्दी काम निबटाने लगी”
तभी वंशिका की आवाज आयी, “मीरा, बस बरतन माँज दे, बाकी काम कल सुबह कर लियो, और दोपहर की सब्जी बाँध देती हूँ,
दोनों माँ बेटी उस से रात का खाना खा लेना” कह्ते हुए वंशिका सब्जी पैक करने लगी| मनीष मीरा और पिंकी को छोडकर आ जाओ, रात हो गयी है|
कई बार पहले भी मनीष उसको छोड़ कर आता था|
रात को राघव ने वंशिका से पूछा कि क्या चल रहा है मीरा का?
” कुछ नहीं, वहीं उसके पति का आए दिन पैसे के लिए झगड़ा करना और मारना पीटना, बस बेचारी पिंकी इन सब में पिस रही है| उसका मासूम बचपन खो गया है, पीयूष के साथ खेल कर खुश हो जाती है|”
बस यू ही मीरा की बात करते करते दोनों सो गए, अचानक रात को 3 बजे वंशिका का फोन बजा, वंशिका ने हड़बड़ा कर फोन उठाया, किसी पुलिस वाले का कॉल था,
वंशिका ने घबरा कर फोन मनीष को पकडा दिया, मनीष ने फोन पर कहा कि हम अभी पहुँचते है “कहकर फोन रख दिया,
” क्या हुआ,?” वंशिका ने घबरा कर पूछा|
“जल्दी चलो, मीरा को बहुत मारा, उसके पति ने पिंकी ने पुलिस को तुम्हारा नाम बताया, जल्दी करो”
दोनों चुपचाप बाहर से ताला लगा कर निकल गए| जा कर देखा तो मीरा की लाश पडी थी उसका सिर किसी पत्थर से फोड़ दिया था, उसके पति को पुलिस ले गयी थी और पिंकी गुमसुम किनारे पर खड़ी थी| वंशिका को देखते ही भाग कर वंशिका को लिपट कर जोर जोर से रोने लगी|
पुलिस इंस्पेक्टर अच्छे आदमी थी| मनीष से बात चीत कर कर मनीष के घर का पता लेकर पिंकी को उनके साथ जाने दिया, कि आगे देखते है कि जैसे हालात होंगे वैसे करेंगे|
वंशिका ने 3 – 4 दिन के लिए छुट्टी ले ली ऑफिस से पीयूष पिंकी के साथ बहुत खुश था| उसको एक साथी मिल गया दिल लगाने को और पिंकी भी उसे पीयूष भाई कह कर सारा दिन उसके आगे पीछे घूमती और अपनी माँ का गम कुछ देर के लिए भूल जाती| पर मंजु देवी के कटाक्ष हर समय छोटी सी पिंकी को झेलने पड़ते| देखते देखते 1 माह बीत गया|
पीयूष भी बोलता मनीष को की अब पिंकी को हमारे घर ही रहने दो “
बीच बीच में पुलिस स्टेशन से भी पुलिस आ कर पिंकी को देख जाती थी| पिंकी के पिता को आजीवन कारावास की सजा हुयी| पुलिस स्टेशन से फोन आया, और पुलिस ने मनीष, वंशिका और पिंकी को थाने बुलाया|
“सर आप लोगों ने क्या फैसला किया, कि पिंकी को आप लोग गोद लेंगे या अनाथालय भिजवा दिया जाए,?” इंस्पेक्टर ने पूछा|
इस से पहले मनीष कुछ बोलता, वंशिका ने ज़वाब दिया, “इसे दिल्ली के ही किसी अनाथालय में भेज दिया जाए”
मनीष और पिंकी हैरान हो कर वंशिका का चेहरा देखते रह गए|
“ठीक है, मैं इंतज़ाम होने पर आपको बता दूँगा|”
रास्ते में मनीष बरस पड़ा पिंकी के सामने ही वंशिका के ऊपर कार में, “मुझे तो लगा तुम भी, पिंकी को गोद लेना चाहती हो| पर तुम में तो जरा दया भाव नहीं|”
“हाँ, ये इसी बात दया भाव की वज़ह से मैं पिंकी को गोद नहीं लेना चाहती, मैं नहीं चाहती पिंकी हर समय हमारे घर में सब सुख तो पाए पर हर दम यह महसूस करे कि वो एक नौकरानी की बेटी है,
परसों माँ जी पड़ोस में सत्संग पर गई तो सारे मोहल्ले में ढिंढोरा पीट आयी कि वो कितनी दयावान है, नौकरानी की बेटी को अपने घर में पालने का निर्णय किया “
कल पीयूष को अपने दोस्त को कह्ते सुना,” की बिचारी| अब हमारे घर रहेगी|
ऐसा लगा वो दूसरों पर रौब डाल रहा हो “
और आज तुमने भी बोल दिया दया भाव
मैं इसको प्यार से अपनाना चाहती हूं
और मैंनें इसे प्यार से अपने दिल में जगह दी हैं|
अगर ये हमारे घर रहेगी तो जिंदगी भर
अपने आप से नौकरानी का टैग नहीं उतार पाएगी, मैं चाहती हूँ यह एक खुशनुमा माहौल में अपने पंख फैलाए, जहां इस पर कोई अहसान ना हो||
हम तो हमेशा इसके साथ ही है, हमेशा इसकी मदद करुँगी, ये अनाथालय में भी बिना किसी तंगी के रहेगी, और जब ये अपने दम पर कुछ बन जाएगी तब मैं इसे अपने घर अपनी बेटी बना कर लाऊँगी और दुल्हन बना कर विदा करुँगी,
पर तब तक ये समाज के, माँ जी के तानों से दूर रहेगी ” कहकर वंशिका चुप हो गयी||
” अंकल, आंटी ठीक कह रही है, मुझे सब बात समझ में आ गयी, दादी मुझे बहुत घूरती है, उनसे मुझे पापा जैसा ही डर लगता है, आप आंटी को मत डांटों, बस मुझसे मिलने आते रहना “आज पहली बार पिंकी खुलकर बोली थी|
” हाँ हाँ ज़रूर बेटा, “मनीष ने मुस्कराकर उत्तर दिया|
दोस्तों, अगर आप किसी की सहायता करते समय उस पर उपकार दिखाते हैं या लोगों को दिखाने के लिए आप उस व्यक्ति को नीचा दिखाते हैं, तो इस से अच्छा आप कोई अहसान ना करें| क्यूंकि दिखावा कर के की जाने वाली सेवा का कोई मोल नहीं होता| सेवा अनमोल होती है, वो दिल से की जानी चाहिए| कई बार 2 प्यार के बोल ही एक सच्ची सेवा होती है|
पूजा अरोरा
बहुत ही सुंदर रचना, दिल से आभार