आंगन के बाहर बने… बरगद के चबूतरे पर… नन्ही रिया बैठी चुपचाप अंदर हो रहे घमासान को देख रही थी….!
उसकी आंखों के आंसू सूख चुके थे… चेहरा पीला पड़ गया था…. आंगन में उसके पिता की लाश पड़ी थी…. मां तो उसे जन्म देते ही गुजर गई थी… और यह पिता जिन्होंने 10 सालों से उसका पालन पोषण किया था…. आज वे भी चल बसे….!
आंगन में चाचा चाची और बूआ के बीच में… पापा के हिस्से का बंटवारा चल रहा था….!
तभी किसी ने कहा..” पहले अंतिम संस्कार तो हो जाने दो”… बूआ गरजी…” हां अंतिम संस्कार तो हो ही जाएगा… पहले मुझे मेरा हिस्सा मिल जाए…!”
कोई और बोला….” और इस रिया को कौन लेगा…!” सब चुप… कोई कुछ ना बोला… थोड़ी देर बाद चाचा बोले…” चलो पहले अंतिम क्रिया कर लो… तभी बात होगी…!”
अंतिम क्रिया हो गई… घर में हर चीज का बंटवारा कर बूआ अपना हिस्सा समेटकर निकल गई…!
चाचा और चाची ने भी सीधे मुंह कह दिया…” जब दीदी हर कुछ में बंटवारा कर गई.. तो लड़की को क्यों छोड़ा उसे भी ले जाएं…!”
कोई उसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार न था.. दादा दादी तो पहले ही गुजर चुके थे.. नाना नानी भी नहीं थे… तेरहवीं पर रिश्ते के मामा आए… रिया के अपने मामा थे नहीं.. मौसी आई नहीं… यह मां के चचेरे भाई थे.. सुबोध मामा… कभी-कभी आते-जाते रहते थे.. इस दुख की घड़ी में भी आए…!
घर की हालत देख सहम गए… नन्ही बच्ची जिसकी आंखें रोते-रोते सूज गई थी…. आंसू सूख कर चेहरे पर निशान पड़ गए थे… उसे कोई पूछने वाला नहीं था…!
मामा से देखा ना गया… सबसे विचार विमर्श करके भी कोई हल ना निकला… लड़की को इस हालत में छोड़ ना सके… उसकी मां से बचपन से उन्हें बहुत लाड़ था.. सबसे छोटी बहन थी घर में.. एक तो वह ना रही.. अब उसकी आखिरी निशानी नन्ही सी जान को कैसे उस हाल में छोड़ आते… !
बहुत सोच विचार कर आखिर… रिया का दायित्व अपने कंधे पर लेकर उसे अपने साथ ले आए….!
सुबोध जी का परिवार खुद ही पांच लोगों का था… दो बेटी एक बेटा और सुनंदा उनकी धर्मपत्नी… यूं तो उन्हें अपनी सुनंदा पर भरोसा था… कि वह रिया के साथ गलत नहीं होने देगी… परंतु मनुष्य की मानसिकता.. कब क्या पलटी खाए कौन जानता है…!
बिन मां बाप की अनाथ बच्ची को लेकर घर आए तो सुनंदा देखती रह गई… यह क्या किया आपने.. पहले ही तीन बच्चों की जिम्मेदारी है… उस पर चौथा बच्चा… कैसे निभाएंगे यह दायित्व….!
सुबोध जी ने जब उसके घर का सब हाल सुनाया तो बेचारी सन्न रह गई… दरवाजे लगकर बैठ गई… आहिस्ते से बोली… अच्छा किया ले आए… मैं होती तो शायद मैं भी यही करती…! आखिर अब इसका अपना है ही कौन…!
सुनंदा जी ने रिया को पास बुलाया..रिया कभी भी अपने नानी घर नहीं आई थी… जब मां नाना नानी कोई थे ही नहीं.. ननिहाल कहां से होता… सुनंदा ने कहा…” मैं तुम्हारी मामी हूं बेटा… आओ मेरे पास…!” रिया धीरे-धीरे कदम बढ़ाते उसके पास गई तो… सुनंदा ने उसके गालों को प्यार से पुचकारा और अपने तीनों बच्चों को बुलाकर… उनसे परिचय करवाया.. बोली..” बच्चों यह भी तुम्हारी बहन है… आज से हम लोगों के साथ ही रहेगी…!”
सुबोध मामा ने उसका भी एडमिशन अपने बच्चों के साथ स्कूल में करवा दिया… वह भी बाकी तीनों भाई बहनों के साथ वहां रहने लगी… लेकिन यह इतना आसान नहीं था… लोगों को यह बात बर्दाश्त नहीं हो रही थी.. कि इतने आराम से किसी पराई लड़की को घर में रख लिया…!
आए दिन कोई चाची… कोई पड़ोसन… आकर सुनंदा को भूत.. भविष्य.. वर्तमान.. की शिक्षा देने लगे…” देख तेरे भले के लिए बोल रही हूं… आखिर है तो गैर ही ना..” कोई कहती…” कल को तेरी बच्चियों का हक छिनेगी…” कोई कहता… “जिस ननद को कभी देखा नहीं… उसके बच्चे से इतना लगाव ठीक नहीं…!” कहते हैं अगर बार-बार भजन सुनो तो इंसान भक्त… और बार-बार बुरी बातें सुनकर इंसान पर बुराई असर कर ही जाती है…!
ना चाहते हुए भी सुनंदा का व्यवहार रिया के लिए कठोर होने लगा… अपने बच्चों को पहले खाना देती.. उसे बाद में.. सबको टिफिन भर कर दे देती और बेचारी अंत तक हाथ फैलाए खड़ी रहती… कभी-कभी घर के काम भी उससे करवाने लगी…!
सुबोध जी को अपनी पत्नी पर पूरा भरोसा था…इसलिए वह इन सब बातों पर ध्यान नहीं देते…
सुनंदा का मन धीरे-धीरे अधिक कठोर होने लगा… कभी-कभी तो रात का बचा हुआ खाना रिया के आगे दे देती.. बाकी सब को गरम-गरम… वह बच्ची लेकिन कभी उफ्फ ना करती…!
सुनंदा कर तो जाती लेकिन उसे बुरा भी लगता… ऐसा कैसे कर रही हूं.. नन्ही सी बच्ची है.. और सबसे बड़ी बात कभी पलट कर कुछ नहीं कहती… धीरे-धीरे उसे लगने लगा.. कि ऐसे तो बच्चे पर बुरा असर पड़ेगा… अपने मन को समझाना मुश्किल हो रहा था… इसे कहीं हॉस्टल में डलवा दूं क्या… क्या करूं…!
सुबोध जी से कुछ कह नहीं पा रही थी… इतना सोचना उसकी सेहत को नुकसान कर गया… वह धीरे-धीरे बीमार पड़ने लगी… आखिर उसने बिस्तर पकड़ लिया…!
सुबह उठ ना पाई… तो रिया ने आकर सबसे पहले देखा.. सर पर हाथ रख कर बोली…” मामी आपको तो बुखार हो गया….!” मामा जी को बुला लाई.. मामा जी ने खाना बनाया… रिया ने सब का टिफिन पैक किया… सबको खाना खिलाया… मामा जी के साथ-साथ घर के कामों में लगी रही… सुबोध जी ने कहा…” जा बेटा तू भी स्कूल चली जा..!” तो बोली.. “नहीं मामा जी.. मामी ठीक हो जाए.. तब जाऊंगी..!” जिद करने लगी तो सुबोध जी ही अपने काम पर चले गए… पूरे दिन मामी की सेवा टहल में लगी रही…!
पूरे 5 दिन बाद सुनंदा कहीं जाकर ठीक हुई… घर को देखा तो घर जस का तस… कहीं कोई कमी नहीं… सुनंदा का जी भर आया… मन ही मन सोच बैठी…” ठीक ही कहते हैं सुबोध जी.. की मेरी बहन बहुत प्यारी थी… तभी तो उसकी बेटी इतनी प्यारी है..!” मन प्रेम से विभोर हो उठा… रिया को बुलाया.. तो..” जी मामी जी..!” कहकर एक कोने में खड़ी हो गई… सुनंदा का सोया प्यार फिर जाग उठा… उसे पास बुलाकर भरपूर सीने से लगा लिया… रिया की आंखें गीली हो गई… सुनंदा ने पूछा…” क्या हुआ.. तुम क्यों रो रही हो…!”
रिया बोली…” कभी किसी ने इतने प्यार से गले नहीं लगाया ना…!”
सुनंदा को अपने आप पर बहुत पछतावा हुआ… बिना मां की बच्ची के साथ कैसे वह बुरा कर रही थी…!”
कुछ दिनों बाद बगल में न्यौता था… चारों बच्चों को लेकर सुनंदा गई.. तो कोई पड़ोसन बोल उठी.. “वाह री किस्मत… दो बेटियां तो पहले से थी.. अब तीसरी बेटी का बोझ भी सर पर पड़ गया….!”
तभी सारे बच्चे किसी बात पर दौड़ते हुए आए… मम्मी.. मम्मी.. मम्मी.. मामी…! सुनंदा ने सब की बातें सुनी… उनको विदा किया… फिर पूरे आत्मविश्वास से अपनी पड़ोसन से बोली..” अगर भगवान ने पहले ही तीन बेटियां दी होती.. तो क्या मैं एक को कहीं फेंक देती… बेटियां अपना भाग्य खुद लिख कर आती हैं… मैं उनका भाग्य नहीं बनाऊंगी… फिर मम्मी और मामी में फर्क ही कितना होता है… एक मात्रा और एक आधे म का ही ना… वह मात्रा और आधा म दोनों से मुझे फर्क नहीं पड़ता… मेरी तीन बेटियां और एक बेटा है… आगे से कोई मुझे इस बारे में कुछ ना बोले….!”
सभी एक दूसरे का मुंह देखने लगी… और सुनंदा गहरे आत्मविश्वास से भरकर… अपने चारों बच्चों को साथ ले घर आ गई…….!
स्वलिखित
रश्मि झा मिश्रा
संवेदनशील रचना
यह सत्य लगा कहानी नहीं में पढकर रोया
Behad khubsurat