“बहू!.तुमसे एक बात कहनी थी।”
“जी मम्मी जी!”
अभी-अभी दफ्तर से लौटकर झटपट फ्रेश होकर रसोई में पहुंच सभी के लिए चाय बना रही सौम्या ने चूल्हे की आंच थोड़ी कम कर दी।
“आज पड़ोस में रहने वाली मिसेज शर्मा हमारे घर आई थी।” धीमी आंच पर खौलते चाय को संभालती सौम्या ने हुंकार भरी..
“जी मम्मी जी!”
“उनके बेटे की शादी पिछले वर्ष हुई थी और तुम्हारी तरह उनकी बहू भी घर के सारे काम अच्छे से संभालती है।”
चाय का स्वाद बढ़ाने के लिए अपनी सास की मनपसंद इलायची कूटकर चाय ने मिलाती सौम्या मुस्कुराई कुछ बोली नहीं।
लेकिन प्रभा जी ने अपनी बात आगे बढ़ाई..
“थोड़ी कम पढ़ी लिखी है इसलिए तुम्हारी तरह ऑफिस नहीं जाती लेकिन उसके माथे से पल्लू कभी नहीं हटता।”
अपनी सास के मन की बात समझने की कोशिश करती सौम्या ने काफी देर उबल चुके चाय का स्वाद कड़वा होने से पहले ही चूल्हे की आंच बुझा दी लेकिन सौम्या की सास प्रभा जी ने अपनी बात पूरी की..
“लोग ऐसी-वैसी बातें करें मुझे पसंद नहीं!.इसलिए तुम कल से सूट-सलवार या ट्राउजर नहीं!.साड़ी पहनकर अपने ऑफिस जाया करना।”
सास की बातों पर सर हिलाकर हांमी भरती सौम्या ने छन्नी रख प्याली में चाय छानकर अपनी सास को थमा दिया और घर के अन्य सदस्यों को चाय देने रसोई से बाहर चली गई।
सास-बहू के बीच हुए बातों की चर्चा बिना किसी से किए अगले दिन दफ्तर जाने के लिए सौम्या एक सुंदर
..सी साड़ी में तैयार हुई।
हमेशा सूट-सलवार या ट्राउजर पहनकर ऑफिस जाने वाली सौम्या को साड़ी में देख उसका पति मुस्कुराया लेकिन उसके ससुर तनिक हैरान हुए।
रोज की तरह सौम्या ने अपने पति के साथ दफ्तर के लिए निकलने से पहले सास-ससुर के पांव छुए और रोज की तरह प्रभा जी और उनके पति ने हाथ हिलाकर खुशी-खुशी बेटे बहू को दफ्तर के लिए विदा किया।
“आज सौम्या के ऑफिस में कोई फंक्शन है क्या?”
वहीं बरामदे में रखी कुर्सी पर बैठते हुए सौम्या के ससुर ने आखिर अपनी पत्नी से पूछ ही लिया।
“ऐसा कुछ तो उसने मुझे नहीं बताया।”
“असल में आज सौम्या साड़ी पहनकर ऑफिस के लिए निकली इसलिए मैंने तुमसे पूछा।”
“अब से रोज साड़ी पहनकर ऑफिस जाने के लिए मैंने ही उसे कहा है।”
नई-नवेली बहू पर अपने सास होने का धौंस जमाने की कोशिश करती पत्नी की ओर देख सौम्या के ससुर मुस्कुराए लेकिन आज प्रभा जी अपने पति पर भी तनिक नाराज हुई।
“और तुम!.बहू को हमेशा उसके नाम से क्यों पुकारते हो?”
“अरे! तो क्या कह कर पुकारूं?” सौम्या के ससुर हैरान हुए।
“बहू कहा करो!” प्रभा जी ने सलाह दी।
“क्यों?”
“अच्छा लगता है।”
प्रभा जी की बात सुन सौम्या के ससुर मुस्कुराए..
“जैसी तुम्हारी मर्जी!.लेकिन आज मैंने एक बात गौर किया।”
“क्या?”
“बहू ने रोज की तरह ऑफिस के लिए निकलने से पहले तुम्हारे पांव छुएं लेकिन रोज की तरह आज तुम्हारे गले नहीं लगी।”
“अगर सास को मांँ की तरह समझती तो जरूर गले लगती।”
पति की बात सुन कर प्रभा जी तनिक चिढ़ गई लेकिन पत्नी के चेहरे के भाव पढ़ते सौम्या के ससुर जी अपने मन की बात कहने से नहीं चूके..
“मुझे लगता है कि,.अगर तुम बहू को बेटी की तरह समझती तब भी वह जरूर तुम्हारे गले लगती!”
पति की बात सुनकर प्रभाजी गहरी सोच में पड़ गई।
शाम को दफ्तर से घर लौटी सौम्या ने महसूस किया कि घर के भीतर सौंधी खुशबू फैली थी। उसकी सास रसोई में कुछ पका रही थी।
सौम्या ने घड़ी पर नजर डाली। उसे ऑफिस से आने में बिल्कुल देर नहीं हुई थी वह रोज की तरह वक्त पर घर पहुंची थी। खैर सौम्या झटपट फ्रेश होकर रसोई में पहुंची।
रसोई में उसकी सास चूल्हे पर एक ओर पकौड़े तल रही थी और दूसरी ओर चाय चढ़ी हुई थी। सौम्या ने आगे बढ़कर सास के हाथ से कलछी ले ली..
“मम्मी जी!.मैं तो बस आ ही गई थी,.आपने खामखा इतनी मेहनत कर दी।”
“बहू!.तुम रोज दुगनी मेहनत करती हो मैंने तो आज बस यूंँही मन बहलाने के लिए”..
प्रभाजी मुस्कुराई लेकिन सौम्या बीच में ही बोल पड़ी..
“मेरे रहते आपको यह सब करने की क्या जरूरत?”
“जरूरत है बहू!”
“क्यों मांँजी?”
“एक समझदार बहू अपनी सास को मांँ समझती है लेकिन एक सास को भी समझदारी के साथ अपनी बहू को बेटी मानने का अभ्यास करना चाहिए।” प्रभाजी भावुक हो उठी।
सौम्या ने आगे बढ़कर अपनी सास को गले लगा लिया.. “मैंने तो हमेशा ही आपको अपनी मांँ समझा है!”
“लेकिन बहू मैंने तो दूसरों की बातों में आकर तुम्हें सिर्फ बहू समझने की भूल की है।”
प्रभा जी ने अपनी गलती मान मांँ बनकर अपनी बहू के माथे पर हाथ रखा और रसोई में सास-बहू के रिश्तो में आए बदलाव से पूरा घर महक उठा।