माँ की यादोँ मे खोया मनुज कार ड्राईव कर रहा था।आँखों से अश्रुधार बह रही थी।माँ उसे एक बार देखने की इच्छा मन में लिए परलोक सिधार गईं, कितनी कोशिश के बावजूद भी वह माँ के अंतिम संस्कार पर समय से नही पहुंच पाया।बार बार यही बात उसके दिल को कचोटती है।उसके बाद विदेश से मन ऐसा उचटा कि दोबारा वहाँ का रुख नही किया।
“आ..आ…आई” अचानक गाड़ी के सामने कोई आ गया, मनुज ने जल्दी से ब्रेक लगाया।उसने देखा, एक वृद्धा गाडी से टकराकर गिर पड़ी है।वह जल्दी से नीचे उतरा।
“मांजी, मांजी… मुझे माफ़ कर दीजिए, आईए, आपको जल्दी से अस्पताल ले चलता हूँ””मनुज ने वृद्धा को बाँहों मे उठाते हुए कहा।
“नही, बेटा.. अस्पताल की ज़रूरत नहीं है, ज़्यादा चोट नहीं आई है, हल्की सी खरोंचे है , चिंता मत करो” वृद्धा ने खरोंचों को फूक मारते हुए कहा।
“एक मिनिट मांजी” कहकर मनुज गाड़ी में से एंटीसेप्टिक क्रीम निकालकर लाया।
“लाईए, मैं आपको ये क्रीम लगा देता हूँ” मनुज ने अपने रुमाल से चोट को साफ़ करते हुए कहा, और उसपर अच्छी तरह क्रीम लगा दी।
“आईए मांजी, आपको कहाँ जाना है, मैं आपको छोड़ देता हूँ” मनुज बोला।
“नही बेटा, मैं चली जाऊंगी”वृद्धा ने कहा।
“नही, ऐसी हालत में मैं आपको अकेले नहीं जाने दूंगा, बताईये कहाँ रहती हैं आप” मनुज ने पूछा।
“अपना घर वृद्धाश्रम” वृद्धा ने धीरे से कहा।मनुज स्तब्ध रह गया।
मनुज ने वृद्धा को गाडी मे बैठाया, गाडी वृद्धाश्रम की ओर जा रही थी लेकिन मनुज के ख्यालों में माँ घर की ओर आ रहीं थीं।
वृद्धाश्रम मे उत्सव का माहौल था, आज पहली बार किसी वृद्धा को माँ के रूप में गोद लेने की कार्यवाही की जा रही थी।
*नम्रता सरन ‘सोना”*
भोपाल मध्यप्रदेश