दस्तूर – अंजना ठाकुर : Moral Stories in Hindi

पीहू ससुराल से पहली बार मायके रहने के लिए आई थी  जब से आई थी तब से उसे सब बदले बदले लग रहे थे

पिताजी जिन्होंने हमेशा इस बात के लिए डांटा की वो ठेले वाले की  पानी पूरी मत खाया करो कितना गन्दा रहता है उसका ठेला पर पीहू को उसी का पानी पसंद था  बही पूछ रहे थे कि पीहू बेटा तेरे लिए पानी पूरी ले आऊं पीहू आश्चर्य से देख रही थी पापा को 

छोटा भाई जो हमेशा मोटी मोटी करके छेड़ता था पीहू चिल्लाती दीदी बोला कर तो और मोटी कहकर भाग जाता।  आज दीदी – दीदी कह कर आगे पीछे घूम रहा था।

और मां का तो समझ ही नही आ रहा क्या क्या कर ले

कभी कुछ खाने को ले आए कभी कुछ बातों मैं चिंता की सब ठीक है  पीहू दिन भर से सब को देख रही थी शाम को खाने मैं मदद कराने पहुंची तो मां बोली अरे बेटा तू आराम कर मैं कर लूंगी

पीहू बोली क्यों मां मैं पहले भी तो करती थी मां बोली पहले की बात और थी अब तू मेहमान है इस घर की

पीहू को इस बात का बहुत बुरा लगा और उसने मुंह फूला लिया और कमरे मै आ गई उसकी आंख से आंसू आ गए पीछे पीछे मां भी आ गई

मां बोली बेटी इसमें मुंह फुलाने और रोने की क्या बात है ये तो दस्तूर है

पीहू बोली पर मां आप बताओ क्या ये दस्तूर सही है माना ससुराल से आकर मायके मैं लगता है की आराम करे पर आराम पहले भी करते थे अब आप सबका व्यवहार ही बदल गया यूं अपने घर मैं मेहमान सा लगना दिल को खुशी देता है क्या

दस्तूर ऐसे हो जो दिल को खुशी दे 

पापा ,आप , छोटू,सब ऐसे पेश ए रहे है जैसे मैं पराई हूं मुझे नहीं रहना ऐसे अपने घर मैं

मां बोली अच्छा मुंह मत फूला हम सब इस बात का ध्यान रखेंगे वो तो बेटी जब ससुराल जाती है तो  लगता है की वहां मन का खा पा रही है की नही काम मै थक जाती होगी तो मायके मैं आराम करे पर इस बात मै हम भूल जाते है की दिल को दुख तो होता है

पर तू चिंता मत कर अब तुझे ऐसा नहीं लगेगा तभी बाहर खड़ा छोटू बोला ए मोटी ज्यादा झूठे आंसू बहा कर मम्मी से प्यार मत मांगो मां मुझे ज्यादा प्यार करती है

पीहू बोली मुझे और दोनों बहस करने लगे पीहू के चेहरे पर खुशी देख कर मां को सुकून मिला

मुहावरा प्रतियोगिता

गाल फुलाना

स्वरचित

अंजना ठाकुर

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