अब तक आपने पढ़ा….
लाजो और भुवन की शादी हो जाती है….. आदित्य के घर में कावेरी की सगाई की तैयारी हो रही है…..
अब आगे…..
कैफे में आकांशा विक्रम के साथ बैठी हुई बातें कर रह थी……
आकांशा पूछती है – अब हमें आगे क्या करना है कोई प्लान है तुम्हारे पास…
फिल्हाल तो जो हो रहा है होने दो…. हमारी शादी के बाद देखेंगे….. मैं नहीं चाहता कि शादी में कुछ भी परेशानी हो
आकांशा ने विक्रम की तरफ देखा और बोली – तुम्हें सब पता है फिर भी तुम मुझसे शादी करना चाहते हो?? तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता??? इस बच्चे को लेकर भी नहीं??
विक्रम ने कहा – हाँ शादी करना चाहता हूँ तुमसे….. क्योंकि मैं तुम्हें तब भी चाहता था जब तुम आदित्य से प्यार करती थी…..
जब तुम्हारे london जाने का पता चला… तब भी मैं आया था लेकिन जब तक मैं पहुँचा तुम जा चुकी थी…. और रही बात इस बच्चे की तो जैसे तुमने मुझे मुझे अपनाया मेरी हर बात जानते हुए तो मैं तो तुमसे पहले से प्यार करता हूँ और क्या फर्क पड़ता है ये किसका बच्चा है जब तक तुम या मै किसी को नहीं बताए…
आकांशा ने विक्रम से कहा – मैं शायद तुम्हें कभी प्यार ना कर पाऊँ
वो मैं देख लूँगा उसकी परवाह तुम मत करो…. तुम बस अपना ध्यान रखो बाक़ी मैं हूँ सब देख लूँगा अब चलें….
आकांशा ने हाँ में सिर हिलाया और कैफे से दोनों बाहर निकल आए….
आकांशा घर पहुँची और सीधे अपने कमरे में चली गयी …. उसने कपड़े बदले और बेड पर सीधे लेट गयी ….. उसने आँखें बंद की तो आदित्य का चेहरा उसके सामने आ गया….. उसने अपनी आँखें खोली आँसू उसकी आँखों के कोने से बहने लगे – तुमने ऐसा क्यों किया आदि उसने मन में ही बोला
तभी दरवाज़े पर दस्तक हुयी आकांशा उठी उसने अपने आँसू पोछे और दरवाज़ा खोला …. सामने कांता प्रसाद और रेखा दोनों खड़े थे…. आकांशा ने दोनों को अंदर आने के लिए बोला….. दोनों अंदर आए और बैठ गए
आप दोनों एकसाथ आए कुछ बात है?? आकांशा ने पूछा
रेखा ने आकांशा को अपने पास बैठने के लिए बोला आकांशा उनके पास बैठ गयी….. उसने आकांशा का हाथ अपने हाथों में लिया और बोली – हमें पता है तुम इस रिश्ते से खुश नहीं हो……हो सके तो भूल जाओ आदित्य को…… अपने नए रिश्ते को संभालो ….. ओम जी को सब पता है फिर भी वो तुम्हें अपने घर की बहू बनाने के लिए तैयार है
आकांशा रेखा का हाथ छुड़ा कर खड़ी हो गयी और बोली – मैं कभी नहीं सकती…. और रही बात विक्रम से रिश्ते की तो वो मैं देख लूँगी….उसकी फिकर आप मत कीजिए…..
आकांशा…… कांता प्रसाद जी ने थोड़ा ज़ोर से कहा
क्या पापा आप भी यही चाहते हैं मैं भूल जाऊँ सब….
तुमने राधिका पर हमला करवाया????
उनकी इस बात पर आकांशा ने उनकी तरफ हैरानी से देखा….
बोलो – कांता प्रसाद ने और ज़ोर से कहा
आकांशा थोड़ा डर गयी और बोली – हाँ…लेकिन आपको कैसे??
मैं कुछ सालों से ही बाहर था इसका मतलब ये नहीं कि मुझे कुछ पता नहीं… जानती भी हो अगर वो आदमी पकड़ा जाता और उसने तुम्हारा नाम ले लिया होता तो पुलिस बाद में पता करती आदित्य तुम्हें जिंदा नहीं छोड़ता और कहाँ तुम गायब होती ये किसी को पता भी नहीं चलता….वो राजा है यहाँ का पत्ता भी हिलता है ना तो उसे बता कर हिलता है ….तुम समझती क्यों नहीं हो….. ये हरकते करना बंद करो वरना मैं तुम्हें बचा नहीं पाऊँगा…. उसे पता तो चल हि गया होगा….. लेकिन उसने अब तक कुछ किया नहीं मुझे हैरानी इस बात की है
उस राधिका ने मेरा सब कुछ छीन लिया मेरा था आदि….. वो बीच में आ गयी उसकी वजह से आदि मुझसे दूर हो गया वरना वो जिसने कभी किसी लड़की से बात तक नहीं की मेरे अलावा उसने राधिका से शादी कर ली ..
बस करो तुम……. अब से तुम इस कमरे से बाहर नहीं जाओगी जब तक तुम्हारी शादी विक्रम से नहीं हो जाती समझी…. चलो रेखा….
पापा…. आकांशा ने कहा
कांता प्रसाद ने घूर कर तरफ देखा आकांशा एक कदम पीछे हुयी और उसने नज़रे नीची कर ली..
कांता प्रसाद जी ने कमरे का दरवाज़ा बाहर से बंद किया और अपने कमरे में चले गए……
बीत वक़्त उनकी आँखों के सामने आ गया
कैसे उदय ठाकुर को उनके पिताजी की गद्दी मिलने के बाद उन्होंने उदय ठाकुर के साथ मिल कर किशनगढ़ के लिए काम किए…
इस गाँव को खुशहाल बनाने में दिन -रात एक कर दिया….. दिन -रात का उठना बैठना था घर जैसे संबंध हो गए थे….. आदित्य उनकी गोदी में खेल कर बड़ा हुआ….. और आकांशा तो जैसे आदित्य के बिना रहती ही नहीं थी…… दोनों को साथ देख कर कांता प्रसाद जी ने सपने सजा लिए कि आकांशा की शादी वो आदित्य से करेंगे …..
आदित्य की माँ के गुज़र जाने के बाद एक दिन कांता प्रसाद उदय ठाकुर के पास आकांशा और आदित्य की बात करने के लिए गए…… वहाँ देवेंद्र जी भी बैठे थे…
उदय ठाकुर ने तब कांता प्रसाद जी को बताया कि देवेंद्र जी के छोटे भाई की बेटी से आदित्य का जो रिश्ता हमने बचपन में जोड़ा था …. उसे अब अंजाम देने का वक़्त आ गया….. हम आदित्य की शादी राधिका से करने की बात कर रहें हैं….
कांता प्रसाद जी फीकी सी हँसी के साथ बोले – ये तो बहुत अच्छी बात है… आदित्य को पता है ना सब?
नहीं उसे कुछ नहीं पता…..
क्या नहीं पता?? दरवाज़े से आते हुए वीर प्रताप जी ने कहा..
वीर प्रताप जी आइए बैठिए…..
तो क्या नहीं पता वीर प्रताप जी ने बैठते हुए पूछा
उदय ठाकुर ने सारी बात उन्हें बतायी….
सारी बात सुनकर वीर प्रताप जी ने कहा तो देर किस बात की है चलते है बारात लेकर और ले आते है इस घर की होने वाली बहू को….
लेकिन बच्चों को पता नहीं है…. देवेंद्र जी ने कहा
वीर प्रताप जी ने कहा अरे तो इसमें कौन सी बड़ी बात है बता देंगे…. क्यों कांता प्रसाद जी सही है ना??
जी सही कह रहे हैं आप…. अच्छा मैं चलता हूँ मुझे थोड़ा काम है…
आप किसी काम से आए थे? उदय ठाकुर ने पूछा
नहीं…. कुछ ज़रूरी नहीं था आप लोग बात कीजिए मैं फिर आता हूँ.. …. कह कर उदास मन से कांता प्रसाद जी चले गए
वो घर पहुँचे तो उन्होंने सारी बात रेखा और आकांशा को बतायी……. आकांशा जिसके मन में आदित्य बस चुका था वो मानने को तैयार नहीं थी कि आदित्य किसी और से शादी कर सकता है…….लेकिन कर कुछ नहीं हो सकता था…. सब जानते थे कि उदय ठाकुर की कही गयी बात को कोई नहीं टाल सकता और आदित्य तो बिल्कुल भी नहीं….
कांता प्रसाद मन में जहाँ उदय ठाकुर के लिए मान सम्मान था सब एक पल में ख़तम हो गया …. उन्हें नफरत हो गयी उदय ठाकुर से…… उस नफरत का अंजाम ये हुआ कि उन्होंने अपना सब कुछ बरबाद कर लिया…….
कहते है दुश्मन दुश्मन दोस्त होता है….. ओम ठाकुर को जब ये खबर मिली कि कांता प्रसाद उदय ठाकुर के साथ अब नहीं हैं… धीरे – धीरे उन्होंने कांता प्रसाद को उदय के खिलाफ भड़काना शुरू कर दिया …. ओम ठाकुर पहले से ही अपने पिता की जायदाद में से कुछ ना मिलने से उदय ठाकुर का दुश्मन बना बैठा था……महफ़िले जमने लगी और इसी सब के चक्कर में कांता प्रसाद की ज़मींदारी हाथ से निकल गयी सब कुछ बिक गया… जब तक उन्हें होश आया वो सब कुछ खो चुके थे उन्होंने सब जो बचा था उसे बेच कर london जाने कर मन बना लिया.. जहाँ उनके एक दोस्त ने उन्हें वहाँ आकर पैसा कमाने के लिए कहा … आकांशा नहीं जाना चाहती थी लेकिन कांता प्रसाद ने उसे जल्दी वापस आने के लिए बोला…. तो वो मान गयी
आकांशा पूरी तरह टूट चुकी थी….. दूसरी दुनियाँ दूसरे लोग जो उसकी दुनिया से बिल्कुल अलग थे धीरे – धीरे उसकी जिंदगी में आने लगे…..आकांशा ने वापस इंडिया आने का इरादा बदल दिया और वहीं के लड़के से शादी कर ली….. सब ठीक था लेकिन जिस से आकांशा ने शादी की एक एक्सीडेंट में वो दुनिया छोड़ कर चला गया…..
कांता प्रसाद को पता चला कि उदय ठाकुर अब नहीं रहे और आदित्य की शादी राधिका से हो गयी है ….उन्होंने वापस आने का और आदित्य से बदला लेने का मन बना लिया…… उन्हें लगता था कि आदित्य की वजह से आकांशा की ऐसी हालत हुयी है…..
वो सब वापस आ गए दो हफ्ते पहले ही आकांशा को पता चला कि वो प्रेग्नेंट है…. उसने ये बात कांता प्रसाद और रेखा को नहीं बतायी…..
ओम ठाकुर से कह कर विक्रम ने ही आकांशा से शादी करने की बात कही…. ओम ठाकुर तो खुश हो गए….. उन्होंने कांता प्रसाद जी से बात की…. वो मान गए लेकिन उन्होंने बता दिया कि आकांशा की शादी हो चुकी है……
ओम ठाकुर को कोई एतराज़ नहीं था उन्होंने विक्रम को जाकर बात बतायी तो वो भी तैयार हो गया……. आकांशा ने उस से मिल कर बच्चे की बात उसे बतायी और ये भी कि उसे ऐसे ही आकांशा को अपनाना होगा वरना वो ये शादी नहीं करेगी…… विक्रम उसकी इस बात को मान गया और दोनों की शादी तय हो गयी ……
शाम हो चली थी आदित्य का घर चारों तरफ लगी हुयी लाइट्स की रोशनी से जगमगा रहा था…. … आदित्य राधिका का हाथ थामे हुए सारा इंतज़ाम देख रहा था…… भुवन और लाजो सभी काम में लगे हुए थे …. राधिका आदित्य को वही छोड़ कर कावेरी के कमरे के कमरे में चली गयी…….
कावेरी बहुत प्यारी लग रही थी ….. थोड़ा सा टच – अप राधिका ने भी करवाया तभी शीतल जी कमरे में आयी और बोली – अरे मेरी बेटियाँ तो पहचान में नहीं आ रही इतनी सुंदर लग रहीं है दोनों उन्होंने अपने आँख के कोने से काजल निकाल कर दोनों को लगाया
वो बोली मेहमान आना शुरू हो गए अभी वीर प्रताप जी भी सबके साथ आते होंगे…. राधिका ये दोनों की सगाई की अंगूठी तुम रखो…. जब कावेरी को बाहर लाओगी तब लेती आना राधिका ने हाँ बोला…शीतल बाहर जाने लगी तो कावेरी ने कहा – ऑन्टी ये…. उसने अपने हाथ से फोल्ड किया हुआ पेपर शीतल को दिया
ये क्या है कह कर शीतल ने वो पेपर खोला वो बैंक का चेक था शीतल और राधिका दोनों हैरानी से उसकी तरफ देखने लगे….
शीतल ने पूछा – ये क्या है बेटा ??
ये मम्मी ने मुझे दिया था मेरी शादी के लिए उन्होंने ये…… कहते हुए आँखें भर आयी
राधिका ने उसे साइड से पकड़ा
शीतल ने उस से कहा – इसकी कोई ज़रूरत नहीं क्या हम अपनी बेटी की शादी नहीं कर सकते …इसे तुम अपने पास रखो
शीतल ने उसे गले से लगा कर कहा मैं माँ तो नहीं बन सकती …. लेकिन मासी ज़रूर बन सकती हूँ….. सबकी आँखे भर आयी…. तभी लाजो आयी और बोली – कावेरी दीदी आ गए आपके साहब….
शीतल ने राधिका और लाजो को कावेरी को बाहर लाने को बोला और खुद बाहर चली गयी
देवेंद्र जी , शीतल , आदित्य और भुवन वीर प्रताप जी , रुपाली और राघव को लेने दरवाज़े तक आए……
बधाई हो समधी जी कहते हुए देवेंद्र जी ने वीर प्रताप जी को गले से लगा लिया….. आपको भी बहुत बहुत बधाई… वीर प्रताप जी ने कहा
रुपाली और शीतल ने भी एक दूसरे को बधाई दी…..
आदित्य ने राघव को गले से लगा लिया और बोला – बधाई हो मेरे यार
राघव ने भी कस के आदित्य को गले से लगा लिया भुवन ने भी राघव को बधाई दी
सब लोग अंदर आ गए…. राघव को ले जा कर आदित्य ने स्टेज पर रखे हुए सोफे पर बैठा दिया…..राघव ने इधर उधर देखते हुए आदित्य से पूछा भाभी कहाँ है और लाजो जी दोनों कहीं दिखायी नहीं दे रहीं??
वो दोनों अंदर हैं .. आदित्य ना कहा
वीर प्रताप जी और रुपाली आए हुए मेहमानों से मिल रहे थे …साथ में देवेंद्र जी और शीतल को भी मिलवा रहे थे…
कुछ देर बाद रुपाली ने शीतल कहा – हमारी बहू को बुला लीजिए… शीतल ने मुस्कुराते हुए हाँ कहा और एक नौकर को कावेरी को बुलाने के लिए बोला उसने जा कर राधिका का कहा कि आपको नीचे बुला रहें हैं
राधिका ने कावेरी को चेयर पर से उठाया उसका दुपट्टा ठीक किया और उसे लेकर बाहर आ गयी …. कावेरी के एक तरफ राधिका और दूसरी तरफ लाजो थी…..
राधिका कावेरी को स्टेज पर ले कर गयी राघव कावेरी को देख कर खड़ा हो गया
राधिका ने दोनो का एक दूसरे के आमने – सामने खड़ा कर दिया
राधिका ने साथ में लायी हुयी अंगूठियाँ दोनों को दी और राघव से कहा – राघव जी पहले आप कावेरी को अंगूठी पहनाओ
राधिका ने कावेरी का हाथ आगे किया राघव ने कावेरी के हाथ को पकड़ा और बड़े प्यार से उसे अंगूठी पहनाई….. सबने ताली बजायी …. राधिका ने कावेरी को अंगूठी दी और कावेरी ने थोड़ा सा शर्माते हुए अंगूठी राघव को पहना दी जैसे ही कावेरी ने राघव को अंगूठी पहनायी …ऊपर से फूल गिरने लगे….सबने ताली बजायी …. दोनो को बैठा कर आदित्य और राधिका स्टेज पर से उतर आए ……!!!!
कहानी का ये भाग आशा करती हूँ पसंद आया होगा
अगला भाग
दास्तान इश्क़ की (भाग -28)- अनु माथुर : Moral stories in hindi
धन्यवाद
स्वरचित
कल्पनिक कहानी
अनु माथुर