दस्तक दूरियों की – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

अभी अभी जो कुछ अवनी ने अपनी भाभी के मुँह से सुना उससे उसका जी खट्टा हो गया ….क्या सोच कर वो मायके आई थी और यहाँ वो उसकी भाभी के लिए बोझ बन रही थी… आख़िर उसे रहना ही कितने दिन था मायके में…बमुश्किल एक सप्ताह भी तो नहीं …

पर आज तो दूसरा ही दिन था और भाभी नीति के अपने लिए ये सब सुन कर उसका जी कर रहा था अभी के अभी यहाँ से निकल जाऊँ। वो चुपचाप जाकर कमरे में बैठ गई । “ क्या हुआ अवनी…तू तो भाभी से चाय के लिए पूछने गई थी ना फिर उसे बोला क्यों नहीं?

” माँ सुमन ने पूछा “ कुछ नहीं माँ… बस ऐसे ही।” अवनी ने कह तो दिया पर अब आँसूओं को बहने से रोक ना सकी “ क्या हुआ बेटा ऐसे क्यों रो रही है… बता तो सही?” सुमन जी अवनी को रोता देख पूछने लगी “ माँ सच सच बताना… क्या मेरे आने से भाभी को बहुत परेशानी होने लगती हैं..

मेरे लिए वो क्या कुछ स्पेशल बनाती हैं… तुम लोग क्या खाना नहीं खाते…एक मैं और दो बच्चों के आने से उन्हें इतनी परेशानी होती की वो अपनी माँ से कह रही थी… बाद में बात करती हूँ अवनी और उसके बच्चों की ख़िदमत करने में व्यस्त हूँ….भाभी सब भूल गई ना माँ… जब उनके कुश की तबियत ख़राब थी…

महीने भर अस्पताल के चक्कर लगते रहे.. मैं अपने बच्चों को छोड़कर उनके साथ लगी रही…क्या ही उम्र थी तब मेरे बच्चों की दस और सात साल…तब तुम उनके पास थी और हम दोनों पति पत्नी भाई भाभी की मदद को दिन रात लगे रहे …

मेरे लिए आसान नहीं होता ना माँ बच्चों की परीक्षा चल रही थी और मैं उन्हें छोड़ कर आ गई थी बच्चों ने भी कहा हम नानी के साथ रह लेंगे आप कुश का ध्यान रखना … तब हर तरीक़े से हमारी मदद भाई भाभी के लिए भगवान के आशीर्वाद जैसे थी कहती रहती थी

अवनी आपका ये एहसान रहेगा हमपर… और मैं बस अपने भतीजे के मोह में सब भूल कर लगी थी… और आज उसी भाभी ने कैसे कह दिया ख़िदमत में लगी रहती…सुन कर बहुत दिल दुखा है माँ… भाभी के लिए ऐसे जी खट्टा होगा कभी सोचा नहीं था…

मैं पहले की टिकट करवा कर जा रही हूँ… अपनी ख़िदमत करवाने नहीं आती हूँ मैं अपनों से मिलने आती हूँ ।” कहकर अवनी फफक पड़ी संजोग से दरवाज़े पर खड़े उसके भाई अमन ने ये सब सुन लिया दबे पाँव वहाँ से जाकर नीति पर बरस पड़ा ।

“ नीति कान खोलकर सुन लो….. मैं बड़ा भाई होकर कभी अवनी और जीजू के लिए कुछ ना कर पाया पर हमारे कुश के लिए जो दोनों ने अपना समय पैसा दिया वो हम कभी चुका नहीं सकते जो कुश तुम्हें अब स्वस्थ दिख रहा है वो बस उन दोनों की मेहरबानी से..और तुमने क्या कहा ख़िदमत करती हो उनकी…

अरे थोड़ी शर्म करो….तुम उनसे प्यार से बात कर लो वही बहुत है..आज के बाद अगर तुमने ऐसा कुछ किसी ले कहा तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा… इतनी एहसान फ़रामोश मत बनो…. अवनी ने तुम्हें अपनी माँ से बाते करते सुन लिया है अच्छा होगा खुद जाकर उससे बात कर उसे मना लो…

मेरी बहन साल में एक बार आती हैं उसको इज़्ज़त देना सीखो।” तमतमाते हुए अमन ने कहा नीति ये सब सुन कर भक रह गई.. पुरानी बातें याद आते उसे एहसास होने लगा सच में नीति ने सुना होगा तो उसका जी खट्टा हो गया होगा …

वो जाकर अवनी से माफ़ी माँगते हुए बोली,” अवनी वो बस मैं ऐसे ही कह रही थी…तुम उस बात को दिल पर मत लो मुझे माफ कर दो।” अवनी कुछ ना बोली पर उसे समझ आ गया था अब मायके के दरवाज़े पर दस्तक सोच समझ कर देगी । 

 रचना पर आपकी प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहेगा ।

 धन्यवाद 

 रश्मि प्रकाश 

 #मुहावरा # जी खट्टा होना

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