नैना,
जब सुबह उठी थी, उसे लगा जैसे खूब गहरी नींद के बाद जागी है — दिमाग एकदम साफ , उजला … सुबह की धूप जैसा पारदर्शी
हिमांशु कितनी दफा यहां आ चुका है पर रुका पहली बार था।
इस समय वो मेरे कमरे में टेबल पर रखी पत्रिकाएं उलट-पलट कर खुद को व्यस्त दिखाने की कोशिश कर रहा है।
…जान रही हूं भावावेग में बहने से कुछ सही नहीं होता।
लेकिन एक बार कहीं पढ़ा था,
” सबको सही और सुंदर जीवन नहीं मिलता है।
वैसे एक बात और है।
इस दुनिया में अपनी जिंदगी को अक्सर हम ही मुश्किल बनाते हैं।
वरना जीवन सहज – सरल – प्रवाहमय ही होता है “
” पक्षियों को ही देख लें , किस तरह एक तिनके, एक दाने पर जी लेते हैं। जब चाहा पंख पसार कर उड़ जाते हैं “
जबकि हम बसने, सहेजने और समेटने की धुन में कैद हो जाते हैं। “
खैर …
नैना, खुद को इच्छाओं की कैद में महसूस करती है।
एक छोटी सी चुप्पी उन दोनों के बीच में छाई थी जिसे नैना ने तोड़ कर ,
” जानते हो , विषाद में होने से अधिक दुःख देता है विषाद में नहीं होने का नाटक करना “,
यह सब मैं ने सालों किया है और थक चुकी हूं ।
अब और नहीं,
वो जानती है ।
” जरुरत से ज्यादा साकारात्मकता कई बार इंसान को स्वार्थी और आत्मकेंद्रित बना देती है
— शोभित …
एक अर्से तक मैं ने नैना को अपने मानसिक सुख और व्यवसायिक उन्नति का दायी मानता रहा हूं।
एवं अक्सर हिमांशु के उतावलेपन को देख कर कहता रहा हूं देखना ,
” हिमांशु तुम्हारे दुःख का साथी नहीं बल्कि सुख का शिकारी साबित होगा “
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -100)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi