करीब आधे घंटे बाद हिमांशु सर क्लास में थे।
क्लास में नैना रुक- रुककर लुके- छिपी अपनी आंखों की पूरी गहराई से उन्हें देख रही है।
उन्होंने नैना के छोटे से संसार में नमी रोशनी बिखेरी है।
नैना को पहली बार लगा है जीवन इतना रसभरा भी हो सकता है।
पर कैसे ? किस तरह ?
नैना – इस समय सिर नीचे किए हुए यही सोच रही थी जब अचानक उसने सिर उठाया तो उसकी नजर सीधे हिमांशु सर की नजर से टकरा गई …
उफ्फ … कितना नशा भरा हुआ है सर की आंखों में ?
हिमांशु सर ने तुरंत अपनी नजर उधर से फेर कर अपनी बात जारी रखी है।
इस नजरें दो – चार होने की प्राइवेसी और उसके मजे उन दोनों के बीच ही सीमित रहा।
नैना ने धड़कते दिल से छोटा- सा फासला तय किया।
उसे हिमांशु सर की नज़र अपने दिल की गहराइयों तक उतरती लगी। उसकी हथेलियां पसीने से नम हो गई।
क्लास खत्म हो गई। सबने एक- एक करके अपनी काॅपी दिखाई तब हिमांशु ने सबकी काॅपी जांच कर उसमें से तीन लड़कियों को स्कूल खत्म होने के बाद वहां रुकने को कहा।
यह सुनकर नैना बीच में ही बोली पड़ी,
” सर मुझे भी दिक्कत है एक चैप्टर में मैं भी रुक जाऊं ? “
” नैना तुम, तुम्हें भी ?
यहां दिक्कत होगी तो फिर ऐसा करो तुम सब वहीं मेरे घर पर चली आओ मैं पहुंचता हूं खाना खा कर रेडी रहता हूं “
नैना उन सबके साथ चल पड़ी है।
टीचर्स क्वार्टर का गेट खुला हुआ है। अंदर माली हाथ में खुरपी लिए हुए क्यारियों में से घांस निकालने में लगा हुआ है।
लाॅन में खुले पाइप से पानी के कल- कल की आवाज आ रही है।
यह कैसा रंगारंग संसार है ? नैना विचित्र पुलक से भर गई।
हिमांशु सर सामने सोफे पर बैठे हैं। सामने काॅपियों का गट्ठर रखा हुआ है।
सर ने उन सबों को सामने रखे सोफे पर बैठने का इशारा किया।
नैना चौकन्नी हो कर बैठ गई।
बैठक सादा और आकर्षक ढंग से सजी है।
हिमांशु एक- एक करके सबकी काॅपी देख रहे थे।
तभी नैना ने लपकते हुए बीच में घुस कर यह कहती हुई ,
” सर इसका ये वाला चैप्टर मुझको नहीं समझ में आ रहा है “
अपनी किताब सर के हाथों में पकड़ा दी।
हिमांशु ने हल्के से किताब देखा फिर अन्य लड़कियों के लिए गए सवाल हल करने लगा।
इस बीच वह नैना को भूल ही गया।
थोड़ी देर बाद हिमांशु ने घड़ी देखी और कलम रख कर बोला,
काफी देर हो गई है अब तुम लोग जाओ बाकी का कल क्लास में देखता हूं “
नैना के हाथ- पैर ढ़ीले हो गया , पेट में हलचल सी पैदा हो गई। मन में ऐसी कुलबुलाहट पैदा हो गई जैसे किसी बच्चे को उसकी मनचाही चीज दिलाने को कह कर फिर उसे ना दिलाई जाए।
बिना कुछ कहे उसने अपना बैग टांग लिया और झटक कर उठ खड़ी हो कर पैर से ही दरवाजा खोल कर मिनमिनाती हुई बाहर निकल गई।
नैना हिमांशु के घर से बहुत खीझ कर यह बुदबुदाती हुई निकली ,
” सबने सर को ऐसे घेर लिया था जैसे वह कोई नयी- नवेली दुल्हन हैं “
हिमांशु के मामले में उसे कोई समझौता नहीं पसंद है। घर पहुंच कर उसका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच चुका था।
उसे लगा जैसे उन लड़कियों ने जानबूझकर कर उसके खिलाफ साजिश करते हुए उसके मुंह का निवाला छीन लिया है ।
घर में घुसते ही अपने बैग को उछाल कर टेबल पर रखा और तैश से भरी हुई पलंग पर जा कर लेट गई।
मां के लाख कहने के बावजूद उसने खाना भी नहीं खाया
अचानक कुछ याद आते ही फिर झटके से बैठ गई। उसके होश फाख्ता हो गए।
उसने टेबल पर रखे अपने बैग को पलंग पर पलट कर देखा उसकी बुक जिसमें उसने उस गुलाबी कार्ड को छिपा कर रखा था वो कहीं नजर नहीं आ रही है ,
” ओह ! गाॅड ! कहां गयी वो बुक ! उसमें ही तो तो कार्ड छिपा कर रखा था ।
पर बुक आखिर गयी कहां ? “
उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
दिमाग पर बहुत जोर डाला पर याद नहीं आ रहा है। उसे टेंशन होने लगी है।
आगे …
अगला भाग
डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -10)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi