डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -13)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi

एक तरफ !

पूरे घर को बड़ी अनब्याही बेटी के ब्याह की दुश्चिंता जकड़ रही थी।

दूसरी तरफ मां-बाबा की बढ़ती चिंता का कारण उनकी नजरों में मेरा बढ़ता हुआ स्वच्छंद व्यवहार था। जबकि ऐसा कुछ नहीं था।

बाबा अक्सर अवसाद में भर कर बोलते ,

” हे ईश्वर इस लड़की को सद्बुद्धि देना भगवान् इसके मार्ग प्रशस्त करना  “

उनके यह वक्तव्य  आने वाले कितने सालों तक मुझपर हावी रहे और मुझे उनके प्रति विद्रोह को उकसाती रहती “

” स्वच्छंद तो मैं थी।‌‌‌‌‌

क्यों कि  आकर्षण की कोई उम्र थोड़े ही ना होती है ? “

” शोभित जरा सोचो ना !

एक मासूम बच्चा भी आसमान में चांद को देखकर उसे पाने की लालसा कर बैठता है।

मैं घर में सबसे छोटी थी शायद इसलिए मुझे किसी से ना सुनने की आदत नहीं थी “

उस पूरे दिन गर्दन में मोच के कारण मैं दिन भर परेशान रही। मेरी गर्दन दाहिने  नहीं मुड़ रही थी।

दाहिने देखने के लिए मुझे पूरा दाहिने मुड़ना पर रहा था।

फिर सर की नाराज़गी से मैं हताश तो थी पर हतोत्साहित नहीं थी।

हिमांशु सर के पीरियड में पूरे टाइम मैं चुप थी और बार- बार घड़ी देखती रही।

सर  ने भी मेरी तरफ एक बार भी नहीं देखा था।

करीब पैंतालीस मिनट के बाद छुट्टी की बेल लगी। मैं अपने बैग को लेकर निकलने लगी थी।

कि सर की गर्म आवाज सुनकर ठिठक गया,

— हिमांशु, 

” रुको तुम कहां जा रही हो ? तुम अभी बहुत पीछे हो और इग्जाम सिर पर है तुम्हारी एक्स्ट्रा अभी चलेगी “

सुनकर

“मेरे होश उड़ गए ,‌‌‌‌ना जाने क्या होने वाला था?  सर , कहीं मेरी रिपोर्ट तो नहीं कर देंगे “

यह सब सोचते हुए सर के घर के सामने पहुंच ‌‌‌‌कर डोरबेल  पर हाथ रखने ही वाली थी ।

” सीधी अंदर चली आओ पानी पियोगी?

” हां! ” ‌मैं जल्दी में बोल पड़ी। सर जब अंदर पानी लाने गये तो मैंने जल्दी से सर की कुर्सी  जिस पर वो बैठे हुए थे अपने ओर खींच ली। हालांकि सर ने नोटिस कर लिया था पर चुपचाप ही रहे।

” यह लो पानी , पहले पी लो , फिर किताब खोलना “

मेरे और सर के  बीच खामोशी पसरी थी।

मैं गर्दन दर्द से बेहाल थी।

” गर्दन में क्या हुआ है ? “

” रात में ठीक से सो नहीं पाई थी । तकिया ठीक से नहीं लगा होने की वजह से गर्दन अकड़ गई है। “

” लाओ मैं ठीक कर देता हूं “

मैं चिढ़ कर बोली,

” ठीक है पर कैसे ? “

सर उठे  और मेरी कुर्सी के पीछे खड़े हो गये।

हिमांशु ने नैना की गर्दन पर हाथ रखा नैना कांप गई।

” डरो मत गला नहीं दबाऊंगा “

हिमांशु  धीरे – धीरे नैना की गर्दन पर हाथ से मालिश करने लगा …

रगड़ने का असर सिर्फ गर्दन पर नहीं हो रहा था।

नैना सूखे पत्ते की तरह कांप रही थी। उसका शरीर हिमांशु की गरमी से पिघलने को तैयार था।

” अभी कैसा लग रहा है ? “

कांपती आवाज़ में नैना ,

” अभी तक सिर्फ गर्दन में था अब सारे बदन में दर्द हो रहा है “

हिमांशु उसके कान के पास आ कर धीरे  से बोला‌ ,

” थोड़ा खड़ी तो हो जाओ  “

उसकी आवाज को जैसे कानों से पीती हुई नैना यंत्रवत खड़ी हो गई।

” हाथ को  गर्दन के पीछे ले जा कर बांध लो “

नैना ने खड़े हो कर ठीक वैसे ही किया जैसे हिमांशु ने कहा ।

पर उसे लग रहा था कि यह सब जो हो रहा है वह  सच नहीं सपना है।

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