जिस शाम नैना ने जया से किए गए वाएदे ‘सुशोभित से कभी नहीं मिलने ‘ को तोड़ कर सुशोभित से मिलने चली गई थी।
और वहां सुशोभित के अनुरोध करने पर वह अपनी जिन्दगी के पिछले पन्नें खोल कर फिर से दुहराने लगी थी।
सुशोभित समझ गया था … ,
” नैना अपने दिल पर के बोझ हल्के कर लेना चाहती है “
बाहर शाम ढलने को है।
सुशोभित — फिर जब तुम हिमांशु के घर गयी तो वहां क्या हुआ था ?
नाटकीयता से भरी हुई नैना,
— एक सिगरेट है ?
हिमांशु अकचका गया। हामी में सिर हिलाया ,
” सिगरेट ? “
नैना ने हामी में सिर हिलाया। कुछ रुक कर ,
” जल्दी करो , कितनी देर लगाओगे ? “
इस बार सुशोभित ने थोड़ा मुस्कुरा कर उसकी ओर देखा।
वह खिड़की के पास जा कर खड़ी हो गई थी। जैसे बीते दिनों की कुछ कड़ियां संजोने के प्रयास कर रही है। शाम के ढ़लते हुए सूरज की सुनहरी रोशनी में वह खुद भी सुनहरी हो रही है ,
सुशोभित ने सिगरेट बढ़ाई तो नैना ने आतुरता से उसे थाम लिया और जल्दी – जल्दी कश लगाने लगी थी।
” नैना धीरे ” ,
तब तक नैना ने दो लंबे कश खींच लिए थे ।
सुशोभित उठा और उसके नजदीक आ कर सिगरेट उससे ले कर ऐश ट्रे में रख दी ,
” सुनाओ तो उस दिन क्या हुआ था ? “
उस शाम !
नैना भावातिरेक में बहती हुई हिमांशु के घर की सीढ़ियां चढ़ती गई थी।
और हर सीढ़ियों के साथ उसका बदन तेजी से गर्म होता गया था।
यह उत्सुकता भरी हरारत थी हिमांशु के पास जाने की उसे डर लग रहा था कि चाहत का यह रंगीन काफिला न जाने कहां जा कर रुकेगा ?
कहीं ऐसा ना हो कि चाहत की यह नाव जिस पर वह सवार है। उसका कोई नाविक ही ना हो?
घबराहट में इसके आगे नैना आगे और कुछ सोच पाती। सामने हिमांशु के घर का दरवाजा और दरवाजे पर एक औरत खड़ी थी ,
” हां कहो , किससे मिलना है तुम्हें ?
” जी, सर ? “
” सर ? ओहृ हिमांशु , उसने बुलाया है तुम्हें और तुम चली भी आईं ?
पढ़ाई तो स्कूल में होती है ना ?
नैना झल्ला गयी ,
” आंटी आप ऐसा किस तरह बोल रही हैं ? सर ने बुलाया है तभी आई हूं । एक्स्ट्रा क्लास के लिए ,
अच्छा अब आप अंदर आने देंगी या दरवाजे पर ही खड़ी रखेंगी ? “
वो औरत शायद हिमांशु की मां थी। नैना की इस हिमाकत पर गुस्सा होती हुई बड़बड़ाने लगीं,
” हिम्मत तो देखो? ऐसे ही किसी को अंदर घुस जाने दूंगी तो पूरा स्कूल ही नहीं घुस जाएगा घर पर ।
हिमांशु जैसे लड़के पर तो सभी लड़कियां मरती होंगी “
पर प्रकट तौर पर ,
अच्छा अब जल्दी से आओ , मेरा टाइम और नहीं वेस्ट करो , मुझे और भी बहुत से काम है।
नैना ने कोई जवाब नहीं दिया और अंदर चली आई।
सामने हिमांशु का कमरा है और उसकी बगल में एक छोटा सा कमरा जिसमें हिमांशु एक्स्ट्रा क्लास लेता है।
नैना को बैठना तो उसी कमरे में था लेकिन वह उस औरत की नजर बचा कर हिमांशु वाले कमरे में घुस गई।
अंदर घुसते ही उसके रोम- रोम सिहर उठे।सामने बिस्तर पर हिमांशु के कपड़े फैले हुए थे जिसमें से उसी परफ्यूम की भीनी- भीनी खुशबू आ रही थी जो सर की बाॅडी से आती है।
खुशबू ने अपना असर दिखाया ।
नैना ने अपने होश खो दिए। उसने कमरे का दरवाजा धीरे से बंद कर लिए, फिर धीमें कदमों से चल कर पलंग पर बैठ गई।
वह हाथ मलने लगी ,उसकी उंगलियां कांप रही है।
पहले उसने बिस्तर के सिलवटों को छूआ फिर अठखेलियां करती हुई उसकी उंगलियां हिमांशु के कपड़ों तक जा पहुंची।
नैना के पेट में गुदगुदी होने लगी ।
उसने अपने शरीर के कुछ हिस्सों में उत्तेजना महसूस किया लगा जैसे खून जम जाएगा।
हिमांशु की की शर्ट हाथ में लेते ही वह बेकाबू हो गया और उसकी की शर्ट को अपने गालों से रगड़ने लगी ।
वह उसे पागलों की तरह सूंघने लगी उसे समझ ही में नहीं आ रहा था आखिर वह उस की शर्ट के साथ करना क्या चाहती थी।
उसने अपनी आंखें बंद करली थीं ।
शायद हिमांशु के ख्याल से लिपटी अपनी सुध – बुध खो बैठी थी।
” नैना ? नैना ? ओ नैना ? ये क्या कर रही हो ?”
अचानक कानों में पड़ी यह आवाज और उसकी आंखों पर पड़ी हिमांशु के ख्यालों की धुंध छंट गयी।
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -12)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi