अगले दिन वह अपने सारे शेड्यूल कैंसिल कर हिमांशु के घर पहुंची थी।
जहां पहुंच कर रघु से,
” मैं हिमांशु को यहां से ले जाने के लिए आई हूं “
फिर रघु की मदद से उसे गाड़ी में और बिल्डिंग के चौकीदार की हेल्प से ऊपर बिस्तर पर लिटाकर वह उसके उठने का इंतजार करती हुई वहीं चेयर पर बैठ गई।
थोड़ी देर बाद हिमांशु ने तंद्रा से भरी बोझिल आंखें खोली थीं।
मुन्नी चाय बना कर ले आई, जिसे पीता हुआ वह लगातार खिड़की के बाहर देखता हुआ मानों तारतम्य बैठाने की कोशिश कर रहा हो।
चेहरे पर शर्मिंदगी से भरे भाव भरे हैं।
” मैं कैसे इस कीचड़ के दलदल में फंस गया हूं ?”
उसने फिर से सिगरेट सुलगा ली। नैना टूट कर बिखरने को हुई, चुभती हुई निगाह से उसे देखती हुई,
” अब ये क्या हैं हिमांशु ? लगभग दांत पीसते हुए कहा।
हिमांशु के चेहरे पर मुर्दनी के भाव फैल गये।
उसने सिगरेट नीचे फेंक सख्ती से उसे पैरों तले कुचल दिया।
” मैं तुम्हारे डिटाॅक्सीफिकेशन के बारे में सोच रही हूं “
उसने हिमांशु को झिंझोड़ कर उसकी दुखती रग पर उंगली रख दी है। अपने अंदर उफनते हुए सैलाब को रोक कर,
” हिमांशु, अभी भी देर नहीं हुई है , मैंने डिटाॅक्सीफिकेशन सेंटर पर बात की है।
उसे आशंका थी,
“कि हिमांशु अपने दुर्व्यसनी होने की बात कभी नहीं स्वीकार करेगा। और उसे इसके लिए महीने दो महीने मनाना पड़ेगा “
लेकिन उसकी आशंका निर्मूल साबित हुई है।
उसकी प्रतिक्रिया देख कर नैना मन ही मन चकित रह गई।
” जीवन असीम संभावनाओं से भरा हुआ होता है ” उसने सोचा
हिमांशु ने खुद को संभालने का प्रयत्न करते हुए लड़खड़ाते शब्दों में ,
” जो भी इस समय मुझे तुम्हारे साहचर्य की बहुत जरुरत है “
हालांकि उन शब्दों में आत्मा नहीं थी।
वहां फिर काफी देर तक वहां मौन पसरा रहा था।
” यदि सच में तुम यह सोचते तो … ?
मैं तुमसे यही उम्मीद करती थी।
अगला भाग
डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -106)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi